उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शनिवार शाम दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की. इसके बाद बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिले. इससे पहले डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक ने दिल्ली में ही अमित शाह और जेपी नड्डा से मुलाकात की थी. केशव और पाठक के बाद सीएम योगी की बीजेपी के टॉप थ्री नेताओं से मुलाकात ने सूबे की सियासी तपिश को काफी बढ़ा दिया है, जिसके राजनीतिक मायने भी तलाशे जाने लगे हैं.
2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सबसे बड़ा झटका उत्तर प्रदेश में लगा था, जिससे उसकी सीटें ही नहीं घटी थी बल्कि सियासी समीकरण भी गड़बड़ा गया था. बीजेपी शीर्ष नेतृत्व प्रदेश संगठन से लेकर सत्ता के समीकरण में सियासी बदलाव करने की पटकथा लिखी जा रही है. ऐसे में सीएम योगी का पीएम मोदी आवास पर करीब एक घंटे की मुलाकात करना, इसके दूसरे ही दिन पश्चिमी यूपी में सीएम योगी, केशव प्रसाद मौर्य और बृजेश पाठक के एक मंच पर नजर आना बीजेपी की सियासत के लिए अहम माना जा रहा है.
यूपी बीजेपी अध्यक्ष पर सियासी मंथन
यूपी में बीजेपी अभी तक अपना प्रदेश अध्यक्ष नहीं बना सकी. भूपेंद्र चौधरी का कार्यकाल इस साल शुरू में खत्म हो गया है और नए अध्यक्ष को लेकर सियासी मंथन के बीच पहले केशव, उसके बाद पाठक और अब सीएम योगी का बीजेपी नेतृत्व से दिल्ली में मुलाकात को उसी से जोड़कर देखा जा रहा है. सूबे के तीनों ही नेताओं के दिल्ली में बीजेपी हाईकमान से मुलाकात के दौरान प्रदेश अध्यक्ष को लेकर चर्चा की है. सीएम योगी ने प्रदेश अध्यक्ष के लिए अपनी पसंद और न पसंद की राय भी रख दी है.
सूत्रों के मुताबिक पार्टी राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश अध्यक्ष का फैसला करेगी. ऐसा इसलिए क्योंकि यूपी का मामला बहुत पेचीदा हो गया है. लोकसभा चुनाव में बीजेपी के खराब प्रदर्शन के बाद पार्टी हाईकमान कोई रिस्क लेने के मूड में नहीं है. इस वजह से जिसे भी प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी जाएगी उसके सीएम योगी आदित्यनाथ से रिश्तों का भी ख्याल रखा जाएगा, लेकिन साथ ही साथ केशव और पाठक के साथ उसके सियासी संतुलन को देखा जाएगा.
सूत्र बता रहे हैं कि पहले बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होगा और फिर यूपी के प्रदेश अध्यक्ष का फैसला होगा. मतलब ये है कि यूपी बीजेपी अध्यक्ष के चुनाव में कई सारे पेंच हैं.नया अध्यक्ष की जाति को लेकर मंथन किया जा रहा. पूर्वांचल से सीएम योगी हैं तो फिर पश्चिमी यूपी, अवध से अध्यक्ष बनाकर क्षेत्रीय बैलेंस बनाने की है. यूपी के नेताओं की मुलाकात के पीछे प्रदेश अध्यक्ष के नाम पर सहमति बनाने की है.
बिगड़े समीकरण को सुधारने का चैलेंज
2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सबसे बड़ा नुकसान यूपी में उठाना पड़ा है. यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से बीजेपी को 33 सीटें मिली हैं जबकि सपा 37 और कांग्रेस 6 सीटें जीतने जीतने में कामयाब रही. 2019 की तुलना में बीजेपी को 34 सीटों कम हो गई है और आठ फीसदी वोट शेयर भी घटा है. अखिलेश यादव के पीडीए समीकरण से बीजेपी की सीटें ही नहीं घटी बल्कि पार्टी का जातीय समीकरण भी गड़बड़ा गया है. इसीलिए बीजेपी नेतृत्व ने यूपी की टॉप थ्री लीडरशिप के साथ चर्चा करके नए अध्यक्ष के नाम को फाइनल करना चाहती है, जिसके चलते ही मुलाकातों का दौर जारी है.
2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को गैर-यादव ओबीसी वोटों खासकर पटेल, कुर्मी, सैनी और शक्य बिरादरी का एक बड़ा तबका बीजेपी से छिटक गया था. निषाद पार्टी से गठबंधन के बाद भी मल्लाह जाति का एक हिस्से ने सपा को वोट किया था. इसके अलावा दलित वोट भी सपा से दूर हुआ है. ऐसे में बीजेपी हाईकमान सूबे में पार्टी की सोशल इंजीनियरिंग को मजबूत करने की कवायद में है, जिसके लिए प्रदेश अध्यक्ष की कमान ओबीसी समुदाय के हाथों में देने की स्टैटेजी बनाई जा रही है.
2027 में सत्ता की हैट्रिक लगाने की चुनौती
लोकसभा चुनाव में घटी सीटों ने बीजेपी के लिए 2027 के विधानसभा चुनाव में सत्ता की हैट्रिक लगाने की उम्मीदों को बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है. बीजेपी गुजरात की तरह यूपी को भी अपनी राजनीति की नई प्रयोगशाला बनाना चाहती है, जिसके लिए अपने जीत के सिलसिले को बरकरार रखने की चुनौती 2027 में खड़ी हो गई है. बीजेपी 2017 और 2022 में लगातार दोनों बार जीतने में सफल रही है, लेकिन 2024 के नतीजों ने 2027 के लिए चिंता पैदा कर दी है.
बीजेपी यूपी में जिसे प्रदेश अध्यक्ष बनाएगी, उसी की अगुवाई में विधानसभा चुनाव होंगे. ऐसे में बीजेपी हाईकमान ने नए प्रदेश अध्यक्ष के चयन से पहले सीएम योगी से लेकर डिप्टी सीएम केशव मौर्य और बृजेश पाठक के साथ सियासी मंथन किया है. यूपी में अब डेढ़ साल के बाद विधानसभा चुनाव होने हैं, जिसके लिए अभी सी सियासी बिसात बिछाने की कवायद में है ताकि सत्ता की हैट्रिक लगाकर इतिहास रचा जा सके.
यूपी बीजेपी में समन्वय बनाने का प्लान
उत्तर प्रदेश में बीजेपी की लीडरशिप में सियासी अदावत की खबरें मीडिया में आए दिन आती रहती हैं. सीएम योगी आदित्यनाथ का दोनों डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक से उनके रिश्ते अच्छे नहीं है. पार्टी के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी थे साथ भी योगी का वही संबंध है. ऐसे में पहले केशव प्रसाद का दिल्ली आकर अमित शाह से मुलाकात करना और उसके बाद यूपी गवर्नर से लेकर विधानसभा अध्यक्ष से मुलाकात करना. इसके बाद बृजेश पाठक दिल्ली आए और उन्होंने भी अमित शाह से मुलाकात की और उसके दो दिन बाद सीएम योगी दिल्ली आकर पीएम मोदी से लेकर जेपी नड्डा और अमित शाह से मिले.
यूपी बीजेपी के टॉप थ्री नेताओं का अलग-अलग दिल्ली में पार्टी नेतृत्व से मिलना और उसके बाद एक मंच पर साथ नजर आना, साफ है कि इस तरह से बीजेपी ऑल इज वेल का सियासी संदेश देने की कवायद कर रही है. पिछले दिनों अमित शाह और योगी की बीच बेहतर तालमेल देखने को मिला है और अब यूपी नेताओं के बीच उसी तरह का समन्वय बनाने का तानाबाना बुना जा रहा है.
सत्ता-संगठन में संतुलन बनाने की स्टैटेजी
यूपी के बीजेपी नेताओं की दिल्ली में हाईकमान से मुलाकात के पीछे सत्ता और संगठन के बीच संतुलन बनाने की स्टैटेजी मानी जा रही. पीएम से मुलाकात के दौरान सीएम योगी ने नाराज पार्टी नेताओं की चिट्ठा खोलकर रख दिया, क्योंकि बीजेपी और सहयोगी दलों के कई नेताओं ने पिछले दिनों खुलकर अपनी नाराजगी जाहिर की थी. इसके अलावा कैबिनेट में फेरबदल किए जाने की चर्चा है, जिसके चलते केशव, पाठक और योगी का बीजेपी हाईकमान से मुलाकात के सियासी मायने साफ हैं.
2027 के विधानसभा चुनाव पहले बीजेपी यूपी में प्रदेश अध्यक्ष ही नहीं कैबिनेट में फेरबदल करने का दांव चल सकती है. योगी कैबिनेट से कई नेताओं की छुट्टी हो सकती है तो कुछ नए चेहरों को जगह देने का प्लान है. सूबे के सियासी समीकरण और क्षेत्रीय बैलेंस बनाने की रणनीति के तहत कई कैबिनेट से लेकर संगठन तक में बदलाव करने का दांव चलेगी. सत्ता और संगठन के बीच संतुलन बनाने की है, क्योंकि 2024 चुनाव के बाद सत्ता और संगठन में सियासी टकराव की बात सामने आई थी.
कुबूल अहमद