यूपी का गजब केस... एक आदमी, छह जिलों में एक साथ नौकरी और 3 करोड़ की सैलरी

UP News: यूपी के स्वास्थ्य विभाग में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है. अर्पित सिंह नाम का शख्स, पिता अनिल कुमार सिंह, पता प्रताप नगर शाहगंज, आगरा एक ही पहचान के साथ 6 जिलों में 9 साल तक नौकरी करता रहा. अलग-अलग आधार नंबर पर 3 करोड़ से ज्यादा की सैलरी निकाल ली और सिस्टम को भनक तक नहीं लगी.

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अर्पित सिंह का केस खुलने के बाद जांच तेज हो गई है (Photo: AI-generated) अर्पित सिंह का केस खुलने के बाद जांच तेज हो गई है (Photo: AI-generated)

संतोष शर्मा

  • लखनऊ,
  • 09 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 3:45 PM IST

यूपी के स्वास्थ्य विभाग से एक ऐसा हैरान करने वाला मामला सामने आया है, जिसने पूरे सिस्टम की पोल खोलकर रख दी है. यह कहानी किसी फिल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं लगती. सोचिए, एक ही नाम और पते वाला शख्स 6 अलग-अलग जिलों में 9 साल तक नौकरी करता रहा. करीब 3 करोड़ से ज्यादा की सैलरी निकाल चुका हो और किसी को कानों कान खबर तक ना हुई. जी हां, ये सब यूपी के अलग-अलग जिलों में हुआ है.

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नाम: अर्पित सिंह, पिता: अनिल कुमार सिंह, पता: प्रताप नगर शाहगंज, आगरा और जन्मतिथि भी सभी की एक ही. लेकिन बस आधार कार्ड अलग-अलग. इसी जालसाजी की वजह से अर्पित नाम के युवक की 6 जिलों में नौकरी चल रही थी.

कब और कैसे हुआ खुलासा

2016 में एक्स-रे टेक्नीशियन की 403 भर्ती हुई थी. नौ साल तक सब सामान्य रहा. लेकिन हाल ही में जब विभाग ने मानव संपदा पोर्टल से मिलान किया तो खुलासा हुआ कि एक ही शख्स अलग-अलग जगहों पर नौकरी कर रहा है.

अर्पित सिंह की छह पहचान

- हाथरस: मुरसान सीएचसी पर तैनात.

- बलरामपुर: तुलसीपुर सीएचसी में पोस्टिंग.

- रामपुर: बिलासपुर सीएचसी से लेकर जिला क्षय रोग कार्यालय तक काम किया.

- बांदा: नरैनी सीएचसी पर 2017 से तैनात, मामला खुलते ही फरार.

- शामली और अमरोहा: दोनों जिलों में भी रिकॉर्ड पर अर्पित सिंह एक्स-रे टेक्नीशियन दर्ज.

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हर जगह वही नाम, वही पिता और वही पता. लेकिन आधार नंबर अलग-अलग. साफ है कि फर्जी आधार कार्ड के सहारे यह जालसाजी रची गई थी.

कितना पैसा हड़पा गया

अगर औसतन देखा जाए तो एक एक्स-रे टेक्नीशियन को करीब 50 हजार रुपये मासिक वेतन मिलता है. ऐसे में 1 साल में कुल 6 लाख रुपये ले चुका है. इस तरह नौ साल में 54 लाख रुपये हुए. छह अलग-अलग जिलों में अर्पित सिंह नौकरी करते रहे तो कुल रकम निकलकर आई 3 करोड़ 24 लाख रुपये. यानी सरकारी खजाने से करोड़ों रुपये की चपत लगी और विभाग को भनक तक नहीं लगी.

पुलिस में दर्ज हुई एफआईआर

मामले के खुलासे के बाद डीजी हेल्थ रतन पाल सुमन ने इस घोटाले की जांच के लिए विशेष कमेटी बनाई. डायरेक्टर पैरामेडिकल डॉ. रंजना खरे की अगुवाई में जांच हुई और रिपोर्ट के आधार पर लखनऊ की वजीरगंज कोतवाली में एफआईआर दर्ज कराई गई. फिलहाल पुलिस आरोपी अर्पित सिंह की तलाश में जुटी है.

सिर्फ अर्पित नहीं, और भी नाम जांच के घेरे में

यह कहानी सिर्फ एक अर्पित सिंह तक सीमित नहीं है. जांच समिति की पड़ताल में ऐसे कई और नाम सामने आए हैं जैसे अंकुर (मैनपुरी निवासी) मानव संपदा पोर्टल में दो जगह दर्ज, एक बार मुजफ्फरनगर की शाहपुर सीएचसी और दूसरी बार मैनपुरी की भोगांव सीएचसी में. अंकित सिंह (हरदोई निवासी) – पांच जिलों ललितपुर, लखीमपुर, गोंडा, बदायूं और हरदोई में एक्स-रे टेक्नीशियन के तौर पर काम करता दिखा. इन मामलों पर भी जांच जारी है और जल्द ही एफआईआर दर्ज होने की संभावना है.

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आसान नहीं होगी वसूली और कार्रवाई

इस मामले में सबसे बड़ी चुनौती सिर्फ आरोपी की गिरफ्तारी नहीं, बल्कि हड़पे गए पैसे की वसूली है. जिन आधार कार्ड से नौकरी मिली वे फर्जी निकले. जिन बैंक खातों में तनख्वाह गई, वे भी फर्जी दस्तावेजों से खुले हो सकते हैं. भर्ती के नौ साल बाद कई अधिकारी रिटायर हो चुके हैं, इसलिए जिम्मेदारी तय करना आसान नहीं होगा. कानून विशेषज्ञों का मानना है कि वसूली के लिए लंबी कानूनी प्रक्रिया चलानी पड़ेगी और इसमें कई साल लग सकते हैं.

भर्ती प्रक्रिया पर सवाल

यह पूरा मामला 2015-16 में समाजवादी पार्टी की सरकार के दौरान की भर्ती से जुड़ा है. उस समय 403 पदों पर नियुक्ति हुई थी. अब जब जांच हो रही है तो भर्ती प्रक्रिया की पारदर्शिता और अधिकारियों की मिलीभगत पर भी सवाल उठ रहे हैं. क्या वाकई यह सिर्फ एक जालसाज का खेल था या फिर सिस्टम के भीतर से भी मदद मिली थी? यह जांच का अहम बिंदु है.

जनता और कर्मचारियों की प्रतिक्रिया

मामला सामने आते ही प्रदेश भर में चर्चा का विषय बन गया है. सोशल मीडिया पर लोग सवाल उठा रहे हैं कि नौ साल तक विभाग को भनक कैसे नहीं लगी? सैलरी अकाउंट में जाने के बावजूद ट्रैकिंग क्यों नहीं हुई? क्या मानव संपदा पोर्टल सिर्फ कागजों तक सीमित है? स्वास्थ्य विभाग के कई कर्मचारियों का कहना है कि ऐसे घोटाले उनकी मेहनत पर पानी फेर देते हैं और विभाग की छवि को धूमिल करते हैं.

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नतीजा क्या होगा?

फिलहाल एफआईआर दर्ज हो चुकी है और जांच तेज़ी से चल रही है. मगर असली चुनौती है आरोपियों की गिरफ्तारी की. इसी के साथ हड़पे गए 3 करोड़ से ज्यादा की वसूली कैसे होगी और सबसे जरूरी भर्ती प्रक्रिया की पारदर्शिता को लेकर विश्वास बहाल करना.

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