श्रीकृष्ण जन्मभूमि से जुड़े सभी मामलों की एक साथ सुनवाई का रास्ता साफ, मस्जिद कमेटी की याचिका खारिज

जस्टिस संजीव खन्ना की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि आदेश को वापस लेने की मांग करने वाली समिति का आवेदन पहले से ही हाईकोर्ट के पास पेंडिंग है. अदालत ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि याचिकाकर्ता रिकॉल आवेदन पर आदेश के बाद एसएलपी को फिर से उठा सकते हैं.

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मथुरा शाही ईदगाह और श्रीकृष्ण जन्मभूमि मामले में मस्जिद कमेटी को झटका मथुरा शाही ईदगाह और श्रीकृष्ण जन्मभूमि मामले में मस्जिद कमेटी को झटका

संजय शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 19 मार्च 2024,
  • अपडेटेड 8:36 PM IST

मथुरा श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद मे सुप्रीम कोर्ट से मस्जिद कमेटी को जोरदार झटका लगा है. कारण, कोर्ट ने मस्जिद कमेटी की याचिका खारिज कर दी है. वहीं मामले में सभी याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई का रास्ता भी साफ हो गया है. जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ मामले में निचली अदालत से मामलों की सुनवाई को हाईकोर्ट ट्रांसफर करने और उसके बाद हाईकोर्ट द्वारा जारी आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने वाली याचिका पर अप्रैल के दूसरे हफ्ते में सुनवाई करेगी. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के सर्वे के आदेश पर अंतरिम रोक लगा रखी है. 

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दरअसल, मथुरा में कथित तौर पर श्रीकृष्ण जन्म स्थान पर बनी शाही ईदगाह मस्जिद की इंतजाम कमेटी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें कोर्ट ने इस विवाद से जुड़े 15 मुकदमों को एक साथ जोड़कर सुनवाई करने का फैसला लिया था. 

आदेश में हाईकोर्ट ने आधार बताया था कि ये सभी मुकदमे एक ही तरह के हैं. इन सबमें एक ही तरह के सबूतों के आधार पर फैसला होना है. लिहाजा कोर्ट का समय बचाने के लिए ये बेहतर होगा कि इन मुकदमों पर एक साथ सुनवाई हो. सुप्रीम कोर्ट ने अर्जी खारिज करते हुए कहा कि हाईकोर्ट के आदेश में दखल देने का कोई कारण नजर नहीं आता है. 

जस्टिस संजीव खन्ना की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि आदेश को वापस लेने की मांग करने वाली समिति का आवेदन पहले से ही हाईकोर्ट के पास पेंडिंग है. अदालत ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि याचिकाकर्ता रिकॉल आवेदन पर आदेश के बाद एसएलपी को फिर से उठा सकते हैं.

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बता दें कि शाही मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट की प्रबंधन समिति द्वारा दायर याचिका में तर्क दिया गया था कि 15 अलग-अलग मामलों को उचित सुनवाई के बिना जल्दबाजी में एक साथ शामिल किया गया है और एक मुकदमे को मुख्य मामले के रूप में नामित किया गया है.
याचिकाकर्ता के वकील ने एक साथ मामले का निपटान किए जाने पर न्याय के गंभीर नुकसान की आशंका जताई. याचिका में तर्क दिया गया कि हाई कोर्ट का आदेश कानून और मामले के तथ्यों के हिसाब से गलत है.

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