फिरोजाबाद, शिकोहाबाद, फतेहपुर... शहर-शहर विवाद की लहर, समझें- मकबरे और मंदिर का पूरा मामला

उत्तर प्रदेश में शहर-शहर मंदिर खोजने की लहर चल रही है. फिरोजाबाद के सिकंदरपुर में मजार हटाने के लिए चालीसा हो रही है. शिकोहाबाद के मलखानपुर में कथित मजार के अंदर मूर्ति रख दी गई और फतेहपुर में तो ऐसा उपद्रव हुआ है कि यूपी पुलिस के हाथ-पांव फूल गए थे. फतेहपुर के सैकड़ों साल पुराने मकबरा-ए-संगी तक पहुंच रोकने के लिए पुलिस ने जबरदस्त सुरक्षा कर रखी है.

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फतेहपुर में मकबरे को मंदिर बताकर हिंदू संगठनों ने प्रदर्शन किया (File Photo- ITG) फतेहपुर में मकबरे को मंदिर बताकर हिंदू संगठनों ने प्रदर्शन किया (File Photo- ITG)

आजतक ब्यूरो

  • नई दिल्ली,
  • 13 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 9:38 PM IST

उत्तर प्रदेश में 2047 के विजन को लेकर विशेष सत्र बुलाया गया है तो दूसरी तरफ राज्य के ही 6-7 जिलों की पुलिस फतेहपुर में करीब 400 साल पुराने एक मकबरे की सुरक्षा में तैनात करनी पड़ी है. कारण, उत्तर प्रदेश की राजनीति में विकास की चर्चा कम और हिंदू-मुस्लिम, मंदिर-मस्जिद, मकबरा-धाम जैसी चीजों और विवादों की चर्चा ज्यादा होती है. इन दिनों भी यूपी के फतेहपुर में एक मकबरे का विवाद ऐसा बढ़ा है कि जिला प्रशासन की सांसें फूली हुई हैं.

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दरअसल, उत्तर प्रदेश में शहर-शहर मंदिर खोजने की लहर चल रही है. फिरोजाबाद के सिकंदरपुर में मजार हटाने के लिए चालीसा हो रही है. शिकोहाबाद के मलखानपुर में कथित मजार के अंदर मूर्ति रख दी गई और फतेहपुर में तो ऐसा उपद्रव हुआ है कि यूपी पुलिस के हाथ-पांव फूल गए थे. फतेहपुर के सैकड़ों साल पुराने मकबरा-ए-संगी तक पहुंच रोकने के लिए पुलिस ने जबरदस्त सुरक्षा कर रखी है. बांस-बल्लियों से तीन लेयर की बैरिकेडिंग की गई है. गलियां भी बंद कर दी गई हैं. मकबरे के बाहर चबूतरे पर पुलिसकर्मी तैनात हैं.

दूसरी बैरिकेडिंग में पीएसी के जवान तैनात हैं. ड्रोन सीसीटीवी से निगरानी चल रही है. बांदा, चित्रकूट, हमीरपुर, कौशांबी, प्रतापगढ़ से पुलिस टीमें बुलाई गई हैं. मौके पर एडीजी प्रयागराज जोन संजीव गुप्ता और आईजी रेंज अजय मिश्रा तक पहुंच चुके हैं. अब कम से कम जन्माष्टमी तक ऐसी ही व्यवस्था बनी रहने की उम्मीद है.

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फतेहपुर में क्या विवाद?

विवाद जमीन का है लेकिन सियासत धर्म-मजहब की. और इसी चक्कर में हिंदूवादी संगठनों ने 11 अगस्त को पुलिस की मौजूदगी में मकबरे के अंदर घुसकर तोड़फोड़ की थी. इसके बाद मुस्लिम समुदाय की ओर से पत्थरबाजी की गई लेकिन किसी तरह पुलिस ने हालात संभाल लिए. इसके बाद पुलिस ने 10 नामजद समेत 150 आरोपियों के खिलाफ मुकदमा कायम किया.

इसमें अभिषेक शुक्ला, बजरंग दल जिला संयोजक धर्मेंद्र सिंह, आशीष त्रिवेदी, समाजवादी पार्टी नेता पप्पू सिंह चौहान, बीजेपी युवा मोर्चा जिला महामंत्री प्रसून तिवारी, सभासद ऋतिक पाल, सभासद विनय तिवारी, बीजेपी जिला महामंत्री पुष्पराज पटेल, जिला पंचायत सदस्य अजय सिंह और देवनाथ धाकड़े नामजद हैं. इसके अलावा, 150 अज्ञात व्यक्तियों को भी इस मामले में शामिल किया गया है. इन आरोपियों को पकड़ने के लिए 5-5 पुलिस टीमें बनाई गईं लेकिन ये पकड़े नहीं जा सके.

आरोपियों के नाम पर सियासत शुरू

ऊपर से इनके नाम पर सियासत शुरू हो गई है. अखिलेश यादव ने एक वीडियो ट्वीट किया, जिसमें दिखाया और दावा किया कि मंत्री सुरेश खन्ना जब सदन में फतेहपुर के आरोपियों के नाम पढ़ने ही जा रहे थे तभी सीएम योगी ने उन्हें इशारा करके नाम नहीं पढ़ने को कहा. फिर सुरेश खन्ना ने आरोपियों के नाम नहीं पढ़ा.

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समाजवादी पार्टी सवाल उठा रही है कि हिंसा कराने वाले और पुलिस को चैलेंज करने वाले नेताओं के खिलाफ न तो केस हो रहा है, न ही आरोपी पकड़े जा रहे हैं.

मकबरा-मंदिर का झगड़ा क्या है?

फतेहपुर के आबूनगर के रेडइया इलाके में औरंगजेब के फौजदार अब्दुल समद और उसके बेटे अबु मोहम्मद की कब्र पर मकबरा बना है. इतिहास कहता है कि औरंगजेब ने अपने शासन के 48वें साल में अब्दुल समद को अपना चकलेदार (टैक्स वसूलने वाला) बनाया था. इसके बाद 1699 में समद की मौत हो गई और उसके बेटे अबु मोहम्मद ने साल 1710 में मकबरा-ए-संगी बनाया. मकबरा पूरी तरह पत्थरों का है. मकबरे में अब्दुल समद और अबू खान की कब्रें भी हैं.

लेकिन हिंदू पक्ष का दावा है कि यहां पहले भगवान शंकर और श्रीकृष्ण के ठाकुरजी मंदिर थे, जिन पर मकबरा बना दिया गया. दावा है कि मकबरे की इमारत के अंदर कमल पुष्प, त्रिशूल जैसे हिंदू धार्मिक चिह्न बने हैं. मंदिर का परिक्रमा मार्ग है, धार्मिक कुआं है. छत्र की जंजीर आज भी मौजूद है. ये सब किसी मस्जिद या मकबरे में नहीं होती. इसी दावे के साथ अब हिंदू पक्ष इस मकबरे को मंदिर होने का दावा कर रहा है. जबकि असली लड़ाई जमीन के स्वामित्व को लेकर है.

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जमीन की क्या लड़ाई?

जमीन की लड़ाई सिर्फ 2012 से शुरू हुई. वैसे जमीन का राजस्व रिकॉर्ड कहता है कि अंग्रेजों ने 1927-28 में फतेहपुर की कुल 28 बीघे की जमींदारी गिरधारी लाल रस्तोगी और मानसिंह परिवार के बीच बांटी थी. 14 अगस्त 1928 को ब्रिटिश कोर्ट ने गाटा संख्या 751/ 752/754 लाल गिरधारी लाल रस्तोगी को और गाटा संख्या 753 में 1.765 हेक्टेयर जमीन मानसिंह परिवार को दी.

30 दिसंबर 1970 को मानसिंह परिवार गाटा संख्या 753 रामनरेश सिंह को बेच दी. रामनरेश सिंह ने जमीन प्लॉटिंग करके बेच दी. इसके बाद मुस्लिम पक्ष ने 2007 में मुकदमा दायर किया और एसडीएम कोर्ट ने 2012 में गाटा संख्या 753 मुस्लिम पक्ष के नाम चढ़ाने का आदेश दे दिया.

हिंदू पक्ष का कहना है कि जमीन का स्वामित्व गलत तरीके से मुस्लिम पक्ष के नाम किया गया है. हालांकि फिलहाल ये संपत्ति राष्ट्रीय संपत्ति घोषित की जा चुकी है. फिर भी हिंदू पक्ष इसे मंदिर बताकर दावा कर रहा है.

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