ज्यादा वोट अमेरिकी राष्ट्रपति की कुर्सी की गारंटी नहीं! समझें- 270 इलेक्टोरल वोट्स का पूरा गणित

US Presidential Election 2024: अमेरिका की चुनावी प्रक्रिया थोड़ी जटिल है. इसे ऐसे समझें कि आज हो रहे चुनावों में जो उम्मीदवार जीतेगा, जरूरी नहीं कि वो देश का राष्ट्रपति बन जाए. दरअसल राष्ट्रपति पद जीतने के लिए, एक उम्मीदवार को इलेक्टोरल कॉलेज में बहुमत हासिल करना होता है.

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डोनाल्ड ट्रंप और कमला हैरिस. डोनाल्ड ट्रंप और कमला हैरिस.

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 05 नवंबर 2024,
  • अपडेटेड 6:56 AM IST

US में राष्ट्रपति चुनाव जारी है. डेमोक्रेट पार्टी से राष्ट्रपति पद के लिए कमला हैरिस मैदान में हैं तो वहीं उनके विरोध में रिपब्लिकन पार्टी से डोनाल्ड ट्रंप चुनाव लड़ रहे हैं. 5 नवंबर को हो रहे मतदान के बाद नतीजों में कुछ दिन का समय लग सकता है. US में चुनाव पहले हो जाता है जबकि विजेता उम्मीदवार चार्ज जनवरी 2025 से ही संभालेगा. नया राष्ट्रपति जनवरी 2025 में पद की शपथ लेगा. 

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अमेरिका की चुनावी प्रक्रिया थोड़ी जटिल है. इसे ऐसे समझें कि आज हो रहे चुनावों में जो उम्मीदवार जीतेगा, जरूरी नहीं कि वो देश का राष्ट्रपति बन जाए. दरअसल राष्ट्रपति पद जीतने के लिए, एक उम्मीदवार को इलेक्टोरल कॉलेज में बहुमत हासिल करना होता है.

आइए अब इलेक्टोरल कॉलेज के बारे में जान लेते हैं... 

यह अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव का सबसे जटिल चरण है. इलेक्टोरल कॉलेज दरअसल वह निकाय है, जो राष्ट्रपति को चुनता है. इसे आसान भाषा में कुछ यूं समझिए कि आम जनता राष्ट्रपति चुनाव में ऐसे लोगों को वोट देती है जो इलेक्टोरल कॉलेज बनाते हैं और उनका काम देश के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति को चुनना है. नवंबर के पहले सप्ताह में मंगलवार को वोटिंग उन मतदाताओं के लिए होती है जो राष्ट्रपति को चुनते हैं. ये लोग इलेक्टर्स कहलाते हैं. ये इलेक्टर्स निर्वाचित होने के बाद  17 दिसंबर को अपने-अपने राज्य में एक जगह इकट्ठा होते हैं और राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के लिए वोट करते हैं.

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यानी जो अमेरिकी जनता आज वोट कर रही है वो सीधे तौर पर स्वयं राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों का चुनाव नहीं कर रही. ठीक ऐसा ही नियम उपराष्ट्रपति पद के लिए भी है. 

कैसे काम करता है इलेक्टोरल कॉलेज?

इलेक्टोरल कॉलेज में 538 इलेक्टर्स शामिल हैं. जो सभी 50 राज्यों और कोलंबिया जिले का प्रतिनिधित्व करते हैं. प्रत्येक राज्य में तीन से 54 के बीच चुनावी वोट हैं. किसी भी राज्य के निर्वाचकों की संख्या उसके अमेरिकी सीनेटरों और अमेरिकी प्रतिनिधियों की कुल संख्या को जोड़कर निर्धारित की जाती है. 

कैसे तय होता है राष्ट्रपति?

अमेरिका के राष्ट्रपति का चुनाव एक अप्रत्यक्ष प्रक्रिया है, जिसमें सभी राज्यों के नागरिक इलेक्टोरल कॉलेज के कुछ सदस्यों के लिए वोट करते हैं. इन सदस्यों को इलेक्टर्स कहा जाता है. ये इलेक्टर्स इसके बाद प्रत्यक्ष वोट डालते हैं जिन्हें इलेक्टोरल वोट कहा जाता है. इनके वोट अमेरिका के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के लिए होते हैं. ऐसे उम्मीदवार जिन्हें इलेक्टोरल वोट्स में बहुमत मिलता है राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के लिए चुने जाते हैं.

यह भी पढ़ें: कमला VS ट्रंप... अमेरिका में वोटिंग जारी, लेकिन इन वजहों से चुनावी नतीजों में हो सकती है देरी

270 वोट जीतकर भी राष्ट्रपति की कुर्सी पक्की नहीं

समझ लीजिए, कुल 538 सीटों पर चुनाव का विजेता वह उम्मीदवार होता है जो 270 या उससे अधिक सीटें जीतता है, लेकिन यह जरूरी नहीं कि वही राष्ट्रपति बन जाए. यह संभव है कि कोई उम्मीदवार राष्ट्रीय स्तर पर सबसे अधिक वोट जीत ले लेकिन फिर भी वह इलेक्टोरल कॉलेज की ओर से जीत नहीं पाए. ऐसा मामला 2016 में सामने आया था, जब हिलेरी क्लिंटन इलेक्टोरल कॉलेज की ओर से नहीं जीत पाई थीं.

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राष्ट्रपति कब लेता है शपथ? 

राष्ट्रपति को आधिकारिक तौर पर जनवरी में वाशिंगटन डीसी में आयोजित एक समारोह में शपथ दिलाई जाती है. 20 जनवरी 2025 को राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का शपथ ग्रहण समारोह होना है.

तीन रंगों में बंटा अमेरिका

गौरतलब है कि अमेरिकी राजनीति में रंगों का विशेष महत्व है. देश की दो प्रमुख राजनीतिक पार्टियों में से नीला रंग डेमोक्रेटिक को जबकि लाल रंग रिपब्लिकन पार्टी को दर्शाता है. लेकिन अमेरिकी राजनीति में पर्पल रंग का भी अपना स्थान है. अमेरिका के 50 राज्य तीन रंगों में बंटे हुए हैं. जिन्हें रेड स्टेट्स, ब्लू स्टेट्स और पर्पल स्टेट्स के नाम से जाना जाता है. 

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, रेड स्टेट्स ऐसे राज्य हैं जहां रिपब्लिकन पार्टी का बोलबाला है. इन राज्यों में 1980 से ही रिपब्लिकन पार्टी जीतती आई है. रिपब्लिकन पार्टी का झंडा भी लाल रंग का ही है. ट्रंप को अमूमन आप कई मौकों पर लाल टोपी में देख सकते हैं. 

वहीं, ब्लू स्टेट्स ऐसे राज्य हैं, जहां डेमोक्रेट्स का वर्चस्व है और 1992 से यहां डेमोक्रेटिक उम्मीदवार जीतते रहे हैं जबकि तीसरे पर्पल स्टेट्स हैं जिन्हें स्विंग स्टेट्स भी कहा जाता है.

पर्पल यानी स्विंग स्टेट्स कितने अलग हैं? 

स्विंग स्टेट्स ऐसे राज्य हैं जहां ना तो रिपब्लिकन और ना ही डेमोक्रेट पार्टी का वर्चस्व है. यहां चुनावी नतीजे हमेशा चौंकाने वाले रहते हैं. यहां चुनावों में दोनों पार्टियों के उम्मीदवारों के बीच कांटे की टक्कर रहती है और चुनाव में यहां से कौन बाजी मारेगा, इसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल होता है. व्हाइट हाउस का रास्ता इन्हीं राज्यों में जीत से तय होता है.

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चुनाव प्रचार के आखिरी दौर में दोनों पार्टियों के उम्मीदवारों का जोर इन्हीं राज्यों पर अधिक होता है. लेकिन स्विंग स्टेट्स को पर्पल स्टेट का रंग इसलिए दिया गया है क्योंकि नीले और लाल दोनों रंगों को मिलाकर पर्पल रंग बनता है. चुनावी लिहाज से इसके मायने कि यहां कोई भी जीत सकता है.

स्विंग स्टेट्स में कितने इलेक्टोरल कॉलेज वोट? 

पेंसिल्वेनिया - 19 

जॉर्जिया - 16 

नॉर्थ कैरोलिना - 16 

मिशिगन - 15 

एरिजोना - 11 

विस्कॉन्सिन - 10 

नेवादा - 6

स्विंग स्टेटस में हैरिस और ट्रंप में किसका पलड़ा भारी? 

ताजा सर्वे में अमेरिका के इन सात स्विंग स्टेटस में कमला हैरिस और डोनाल्ड ट्रंप के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिल रही है. लेकिन पेंसिल्वेनिया, जॉर्जिया और एरिजोना में ट्रंप को मामूली बढ़त हैं जबकि मिशिगन, विस्कॉन्सिन और नेवादा में कमला हैरिस को मामूली बढ़त मिलती दिख रही है. ऐसे में मुकाबला कांटे की टक्कर का है.

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