सूडान में चल रहे भीषण गृहयुद्ध ने अब वहां की जनता को भूख की उस कगार पर पहुंचा दिया है, जहां इंसान को जिंदा रहने के लिए जानवरों का चारा और खाल तक खानी पड़ रही है..अंतरराष्ट्रीय भूख निगरानी संस्था (IPC) ने सोमवार को पुष्टि की है कि सूडान के दो प्रमुख शहर -अल-फशीर और काडुगली अब औपचारिक रूप से 'अकाल' की स्थिति में हैं.
18 महीने की घेराबंदी के बाद टूटी उम्मीदें
अल-फशीर शहर पर करीब 18 महीने तक फौज का घेरा रहा.इस दौरान शहर में खाद्य आपूर्ति पूरी तरह बंद कर दी गई थी.लोगों ने पेट भरने के लिए जानवरों का चारा, सूखी घास और यहां तक कि जानवरों की खाल तक खाई.स्थानीय लोगों ने बताया कि जब कुछ जगहों पर सामुदायिक रसोई शुरू की गई, तो ड्रोन हमलों से उन्हें भी निशाना बनाया गया.जब शहर से भागकर लोग नजदीकी तविला पहुंचे, तो लगभग सभी बच्चे कुपोषित हालत में मिले. MSF के एक अधिकारी ने बताया कि वयस्क भी इतने दुबले और कमजोर होकर आए कि पहचानना मुश्किल था.
सूडान के अल-फशीर (El Fasher) शहर से निकलने वाले लोगों की हालत देखकर मानवता सिहर उठी है.एक अधिकारी ने बताया कि यह आबादी महीनों से मूलभूत सेवाओं और पोषण तक से वंचित रही है. न तो दवाइयां और एंटीबायोटिक्स पहुंच रही थीं, न ही स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध थीं.अब जब लोग वहां से बाहर निकल रहे हैं, तो उनके शरीर पर भूख और बीमारी के गहरे निशान दिख रहे हैं.
भूख के साथ आई तबाही और हिंसा
अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय (ICC) ने भी कहा है कि अल-फशीर के पतन के बाद सामूहिक हत्याओं और बलात्कार के मामलों की जांच शुरू कर दी गई है.रेड क्रॉस के प्रमुख ने कहा कि दारफुर में इतिहास खुद को दोहरा रहा है.IPC की सितंबर 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, तविला, मेलिट और तविशा जैसे इलाकों में भी अकाल का खतरा मंडरा रहा है.रिपोर्ट बताती है कि फिलहाल 21.2 मिलियन लोग यानी सूडान की कुल आबादी का लगभग 45% हिस्सा गंभीर खाद्य असुरक्षा में है.
जंग, भूख और राजनीति की मार
सूडान में RSF और सरकारी सेना के बीच ढाई साल से युद्ध जारी है.इस युद्ध ने न सिर्फ लाखों लोगों को विस्थापित कर दिया, बल्कि दारफुर और कोरदाफन क्षेत्रों में जातीय हिंसा और महंगाई ने लोगों का जीवन और मुश्किल बना दिया है.इस बीच, वैश्विक सहायता में कटौती और सरकारी अड़चनों ने संयुक्त राष्ट्र और अन्य राहत संगठनों की मदद को भी सीमित कर दिया है.
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