भारत की वो जगह जहां जूते-चप्पल नहीं पहनते लोग, अस्पताल भी नहीं जाते, आखिर क्यों?

इस गांव के लोग चप्पल जूते नहीं पहनते हैं, न गांव के भीतर और न ही गांव के बाहर, फिर चाहे कितनी दूर ही क्यों न जाना पड़े. लोग अस्पताल तक नहीं जाते हैं.

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चप्पल-जूते नहीं पहनते गांव के लोग (प्रतीकात्मक तस्वीर- Pexels) चप्पल-जूते नहीं पहनते गांव के लोग (प्रतीकात्मक तस्वीर- Pexels)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 24 मई 2023,
  • अपडेटेड 2:07 PM IST

क्या आप बिना अस्पताल और चप्पल-जूते के रह सकते हैं? अगर आपका जवाब 'नहीं' है, तो बता दें कि एक ऐसी भी जगह है, जहां लोग नंगे पांव रहते हैं. वो अस्पताल भी नहीं जाते. अगर गांव में जिला मजिस्ट्रेट या किसी सांसद को भी आना पड़े, तो उन्हें भी जूते-चप्पल गांव के बाहर ही उतारने पड़ते हैं. वहीं यहां के निवासी गांव के भीतर हों या बाहर नंगे पांव ही रहते हैं. 

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आपको ये बात जानकर हैरानी होगी कि अगर लोगों को कहीं बहुत दूर तक जाना पड़े, तब भी वो चप्पल-जूते नहीं पहनते. ये गांव कई मायनों में देश के बाकी गावों से अलग है. इसका नाम वेमना इंदलू है. ये आंध्र प्रदेश में तिरुपति से 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, गांव के सरपंच का कहना है कि जब से ये लोग गांव में बसे हैं, तभी से एक परंपरा है कि गांव में अगर कोई बाहर से आए, तो बिना नहाए-धोए प्रवेश नहीं करेगा. 

अशिक्षित है गांव की आबादी

तिरुपति जिले के पाटला मंडल के इस छोटे से गांव में 25 परिवार रहते हैं. गांव की कुल आबादी 80 लोगों की है. अधिकतर आबादी अशिक्षित है और कृषि पर निर्भर है. गांव के नियमों और परंपराओं का पालन ग्रामीणों के रिश्तेदारों को भी करना पड़ता है. रिपोर्ट के अनुसार, गांव के लोग खुद को पलवेकरी जाति से जुड़ा बताते हैं. साथ ही अपनी पहचान दोरावारलू के रूप में करते हैं. इन्हें पिछड़े वर्ग में वर्गीकृत किया गया है. 

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गांव के लोग भगवान वेंकटेश्नर की पूजा करने के लिए तिरुमाला भी नहीं जाते बल्कि गांव के भीतर ही पूजा करते हैं. ग्रामीणों का कहना है कि वह किसी अस्पताल में नहीं जाते क्योंकि उन्हें भरोसा है कि इश्वर सब संभाल लेंगे. लोग नीम के पेड़ की परिक्रमा कर लेते हैं. पर अस्पताल नहीं जाते. बीमार पड़ने पर भी मंदिर की परिक्रमा कर लेते हैं.

पीरियड्स के दौरान बाहर रहती हैं महिलाएं

गांव की एक महिला का कहना है कि लोग घर पर ही सब कुछ कर लेते हैं. गर्भवती महिला तक को अस्पताल लेकर नहीं जाते. न ही किसी को बाहर से आने देते हैं. स्कूल जाने वाले बच्चे दोपहर के खाने के लिए भी घर आते हैं. वो मिड डे मील नहीं खाते. खाना खाने के बाद दोबारा स्कूल जाते हैं. क्योंकि लोग गांव के बाहर कुछ खाते भी नहीं हैं.

पीरियड्स होने पर गांव की महिलाओं को न केवल अपने घर बल्कि गांव से भी बाहर रहना होता है. उनके लिए गांव के बाहर एक कमरा बना हुआ है.  ग्रामीणों को सरकारी योजनाओं का लाभ मिलता है. उनके घर तक राशन पहुंचाया जाता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि जब जिलाधिकारी से इस बारे में बात की गई तो उन्होंने कहा कि वो गांव में लोगों के बीच बदलाव लाने के लिए जागरूकता शिविर लगाएंगे. 

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