सिरकटा चिकन... जो कई महीनों तक बिना खोपड़ी के जिंदा रहा!

आज से 80 साल पहले एक मुर्गा 18 महीने तक बिना सिर के जिंदा रहा और इतिहास बना गया. इसे लोग चमत्कार ही मानते हैं, लेकिन पक्षी विज्ञानियों का मानना है कि यह एक जीववैज्ञानिक घटना है, लेकिन इतने लंबे समय तक बिना सिर के जिंदा रहना, समझ से परे है.

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80 साल पहले 18 महीने तक बिना सिर के जिंदा रहा था एक मुर्गा (File Photo - Getty) 80 साल पहले 18 महीने तक बिना सिर के जिंदा रहा था एक मुर्गा (File Photo - Getty)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 08 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 10:13 AM IST

80 साल पहले, कोलोराडो में एक किसान ने एक मुर्गे का सिर काट दिया. फिर भी वह मरने को तैयार नहीं था. बिना सिर के वह 18 महीने तक जिंदा रहा. इस घटना को उस वक्त एक चमत्कार माना गया. लेकिन, इसके पीछे भी एक विज्ञान काम कर रहा था. जानते हैं आखिर कैसे बिना सिर के एक मुर्गा इतने महीने जिंदा रह गया. 

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बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 10 सितंबर 1945 को लॉयड ऑलसेन और उनकी पत्नी क्लारा, कोलोराडो के फ्रूटा स्थित अपने फार्म पर एक मुर्गियां काट रहे थे. इसी दौरान एक मुर्गा सिर कटने के बाद भी नहीं मरा और भागने लगा. यह कहानी  'माइक द हेडलेस चिकन' की है.   

सिर कटने के बाद दौड़ने लगा मुर्गा
सिर कटने के बाद भी वह मुर्गा जिंदा था और  इधर-उधर घूम रहा था. उस किसान के पोते ट्रॉय वाटर्स ने बीबीसी को बताया था कि उस सिरकटे मुर्गे ने मेरे दादा को लात मारी और भागता चला गया. 

इसके बाद सिरकटे मुर्गे को किसान ने अलग से एक डिब्बे में रखा. अगली सुबह जब लॉयड ऑलसेन जागे और जाकर डिब्बा खोलकर देखा तो हैरत में पड़ गए. क्योंकि मुर्गा अब भी बिना सिर के जिंदा था. वाटर्स की पत्नी क्रिस्टा वाटर्स कहती हैं कि यह हमारे अजीब पारिवारिक इतिहास का हिस्सा है.

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वाटर्स ने यह कहानी बचपन में सुनी थी. जब उनके परदादा बिस्तर पर पड़े रहते थे और उनके माता-पिता के घर रहने आए थे. वाटर्स कहते हैं कि मेरे दादा मुर्गे का मांस बेचने जब बाजार गए तो  सिरकटे मुर्गे को भी साथ लेते गए. इसके बाद वहां लोगों से बीयर या किसी और चीज पर शर्त लगाने लगे कि उसके पास एक जिंदा, बिना सिर वाला मुर्गा है.

पूरे इलाके में फैल गई चमत्कारी मुर्गे की कहानी
इस तरफ पूरे कोलोराडो में इस चमत्कारी, बिना सिर वाले पक्षी के बारे में बात फैल गई. स्थानीय अखबार ने  ऑलसेन का इंटरव्यू लेने के लिए एक रिपोर्टर भेजा.  दो हफ़्ते बाद होप वेड नाम का एक साइडशो प्रमोटर साल्ट लेक सिटी, यूटा से लगभग 300 मील की यात्रा करके आया. उसका एक सीधा-सा प्रस्ताव था- मुर्गे को साइडशो सर्किट में ले जाओ - इससे उन्हें कुछ पैसे मिल सकते हैं.

वाटर्स कहते हैं कि 1940 के दशक में, उनके पास एक छोटा सा खेत था और वे संघर्ष कर रहे थे. लॉयड ने कहा कि क्या बात है - हम भी ऐसा ही कर सकते हैं. सबसे पहले वे साल्ट लेक सिटी और यूटा विश्वविद्यालय गए. वहां उस मुर्गे पर कई परीक्षण किए गए.

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मुर्गे की इस हालत की कई वैज्ञानिकों ने की जांच
अफवाह यह है कि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने कई अन्य मुर्गियों के सिर सर्जरी करके निकाले थे ताकि यह देखा जा सके कि कोई जीवित बचेगा या नहीं. यहीं पर लाइफ मैगजीन को मिरेकल 'माइक द हेडलेस चिकन' की कहानी पर आश्चर्य हुआ. होप वेड ने उस सिरकटे मुर्गे को 'माइक द हेडलेस चिकन' नाम दे दिया था. फिर लॉयड और क्लारा  माइक के साथ  अमेरिका के दौरे पर निकल पड़े.

ऐसे खाना खाता था सिरकटा मुर्गा
माइक को तरल भोजन और पानी दिया जाता था. जिसे लॉयड सीधे उसकी ग्रासनली में डालता था.  वह एक और जरूरी शारीरिक कार्य में मुर्गे की मदद करते थे. वह था उसके गले से बलगम साफ़ करना. वह उसे ड्रॉपर से खाना खिलाते थे और सिरिंज से उसका गला साफ करते थे. 

वाटर्स बताते  हैं कि सालों तक मेरे दादा दावा करते रहे कि उन्होंने मुर्गे को साइड शो सर्किट के एक आदमी को बेच दिया था.  अपनी मौत से कुछ साल पहले, आखिरकार एक रात उन्होंने मेरे सामने कबूल किया कि माइक उनके साथ नहीं रही. मुझे लगता है कि वह कभी यह स्वीकार नहीं करना चाहते थे कि उन्होंने गलती की है.

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18 महीने तक जिंदा रहा था सिरकटा मुर्गा
 माइक 18 महीने तक जिंदा रहा था. जिस रात माइक की मौत हुई. लॉयड अपने मोटल के कमरे में चिड़िया के दम घुटने की आवाज से जाग गए. जब उन्होंने सिरिंज ढूंढ़ी तो उन्हें पता चला कि वह साइड शो में ही छूट गई थी और इससे पहले कि वे कोई दूसरा विकल्प ढूंढ पाते, माइक का दम घुट गया.

उस समय यह अनुमान लगाया गया था कि माइक इस आघात से इसलिए बच गया क्योंकि उसके मस्तिष्क का कुछ या पूरा हिस्सा उसके शरीर से जुड़ा रहा. तब से विज्ञान ने प्रगति की है और जिसे तब मस्तिष्क का तना कहा जाता था. वह वास्तव में मस्तिष्क का ही एक हिस्सा पाया गया है.

क्या कहता है विज्ञान
इस मामले को लेकर न्यूकैसल विश्वविद्यालय के व्यवहार एवं विकास केंद्र के मुर्गी विशेषज्ञ डॉ. टॉम स्मल्डर्स को सबसे ज़्यादा हैरानी इस बात से होती है कि उसकी मौत खून बहने से नहीं हुई. वह बिना सिर के भी काम कर पा रहा था, यह बात उन्हें आसानी से समझाना मुश्किल लगता है.

स्मल्डर्स ने बताया कि आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि मुर्गे के सिर के आगे कितना छोटा मस्तिष्क होता है. रिपोर्टों से पता चलता है कि कुल्हाड़ी के वार से माइक की चोंच, चेहरा, आंखें और एक कान कट गए. लेकिन स्मल्डर्स का अनुमान है कि उसके मस्तिष्क का 80% तक हिस्सा  और मुर्गे के शरीर को नियंत्रित करने वाली लगभग हर चीज़, जैसे हृदय गति, सांस लेना, भूख और पाचनतंत्र को कोई क्षति नहीं हुई. 

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पक्षियों के मस्तिष्क का अधिकांश हिस्सा रीढ़ की हड्डी में होता है
स्मल्डर्स ने बताया कि जैसा कि हम अब जानते हैं, पक्षियों के मस्तिष्क का अधिकांश भाग वास्तव में उस समय मस्तिष्क स्तंभ माना जाता था.मुर्गे का सिर काटने से मस्तिष्क शरीर के बाकी हिस्सों से अलग हो जाता है, लेकिन कुछ समय के लिए रीढ़ की हड्डी के सर्किट में अभी भी ऑक्सीजन बची रहती है. मस्तिष्क से कोई इनपुट मिले बिना ही ये सर्किट स्वतः ही काम करने लगते हैं.

स्मल्डर्स कहते हैं कि तब न्यूरॉन्स सक्रिय हो जाते हैं और पैर हिलने लगते हैं. आमतौर पर ऐसा होने पर मुर्गी लेटी हुई होती है, लेकिन दुर्लभ मामलों में, न्यूरॉन्स दौड़ने का मोटर प्रोग्राम शुरू कर देते हैं. स्मल्डर्स कहते हैं कि मुर्गी थोड़ी देर तो दौड़ेगी, लेकिन 18 महीने तक नहीं, बल्कि 15 मिनट या उसके आसपास.

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