इंसान का समय एक जैसा नहीं रहता. कभी वह अर्श पर होता है, तो कभी फर्श पर, लेकिन जिंदगी जीने का सही तरीका यही है कि हर परिस्थिति को स्वीकार कर, संघर्ष जारी रखा जाए. सोशल मीडिया पर ऐसी ही एक कहानी वायरल हो रही है. ये कहानी है पुणे के एक जोमैटो डिलीवरी एजेंट की.
एक लिंक्डइन पोस्ट में पुणे निवासी श्रीपाल गांधी ने इस डिलीवरी एजेंट की कहानी शेयर की, जिसने जीवन की सबसे कठिन परिस्थितियों में भी उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा. गांधी ने बताया कि उन्होंने एक दिन जोमैटो से खाना ऑर्डर किया था, लेकिन डिलीवरी के समय कुछ आइटम्स गायब थे. यह गलती जोमैटो की नहीं, बल्कि उस रेस्टोरेंट की थी, जहां से ऑर्डर किया गया था.गांधी ने डिलीवरी एजेंट से कहा कि यदि वह दोबारा जाकर बचे हुए आइटम्स ला दे, तो उसे ₹20 अतिरिक्त दिए जाएंगे.
लेकिन डिलीवरी एजेंट की ईमानदारी ने सबको चौंका दिया. वह न केवल दोबारा गया और बचे हुए आइटम्स लेकर आया, बल्कि उसने पैसे लेने से भी साफ इनकार कर दिया. उसने कहा कि मैं अपने काम पर गर्व करता हूं और जोमैटो की बदनामी नहीं होने दूंगा.
मुझे जिंदगी का सबक मिला
गांधी ने लिखा कि उसने सिर्फ मेरा खाना नहीं, जिंदगी का एक अहम सबक भी दिया. उन्होंने बताया कि यह डिलीवरी एजेंट शारीरिक रूप से अक्षम है. एक सड़क हादसे में उसके शरीर का बायां हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया था.
हादसे से पहले वह शापूरजी पल्लोनजी ग्रुप में कंस्ट्रक्शन सुपरवाइज़र के तौर पर कार्यरत था और ₹1.25 लाख महीने की सैलरी पाता था, लेकिन हादसे ने उसकी नौकरी, चलने की क्षमता और एक समय के लिए उम्मीद सब छीन लिया.
जोमैटो ने दी नई जिंदगी
डिलीवरी एजेंट ने बताया कि कैसे जोमैटो ने उसे फिर से खड़ा होने का मौका दिया. आज वह फूड डिलीवरी करके अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहा है और अपनी बेटी को पढ़ा रहा है, जो डेंटल की पढ़ाई कर रही है.उसने गांधी से कहा कि सर, जोमैटो ने मेरे परिवार को जिंदा रखा है. मैं विकलांग हूं, लेकिन मुझे एक अवसर मिला है.मैं कभी जोमैटो का नाम खराब नहीं होने दूंगा.गांधी ने पोस्ट के अंत में जोमैटो के CEO दीपिंदर गोयल की सराहना करते हुए लिखा कि आपका यह निर्णय कि दिव्यांगों को भी नौकरी दी जाए, कई ज़िंदगियों को गहराई से बदल रहा है.उनकी इस पोस्ट पर सैकड़ों लोगों ने कमेंट कर डिलीवरी एजेंट के जज्बे और ईमानदारी को सलाम किया है.
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