आपकी ट्रिप को बर्बाद कर रहा सोशल मीडिया! 'ट्रैवल डिस्मॉर्फिया' के शिकार हो रहे लोग

यात्रा कभी सुकून का नाम थी, लेकिन सोशल मीडिया ने रेस में बदल दिया है. लोग अब घूमने से ज्यादा दूसरों से तुलना करने में उलझे हैं. इसी तुलना से पैदा हुआ है एक नया डर, जिससे इंसान को लगता है कि उसकी यात्राएं दूसरों जितनी अच्छी नहीं हैं.

Advertisement
छुट्टियां भी अब तनाव बन गईं  (Photo:Unsplash) छुट्टियां भी अब तनाव बन गईं (Photo:Unsplash)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 19 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 3:43 PM IST

एक दौर था जब छुट्टियों का मतलब होता था नानी का घर, दादा जी का गांव और भाई-बहनों के साथ खेलना और खूब सारी मस्ती करना. उस दौर में घूमने के लिए जगह मायने नहीं रखता था, मायने रखता था वो सुकून. लेकिन अब यात्रा सुकून के लिए नहीं, स्टेटस के लिए हो रही है. यात्रा अब सुकून देने के बजाय थका देने वाली प्रक्रिया बनती जा रही है. यह थकान केवल शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक भी है. इस स्टेटस के खेल में जो नया शब्द जुड़ गया है, वो बड़ा भारी-भरकम है, जिसका नाम है ट्रैवल डिस्मॉर्फिया (Travel Dysmorphia).

Advertisement

सुनने में यह किसी बीमारी जैसा लगता है और यकीन मानिए, लक्षणों के आधार पर यह किसी बीमारी से कम भी नहीं है. आखिर सोशल मीडिया आपकी और हमारी यात्राओं को बर्बाद कैसे कर रहा है.

क्या बला है ये ट्रैवल डिस्मॉर्फिया?

आपने बॉडी डिस्मॉर्फिया के बारे में सुना होगा. यह एक ऐसी मनोवैज्ञानिक स्थिति है जहां इंसान को आईने में अपना शरीर हमेशा खराब या दूसरों से घटिया नजर आता है. बस, अब यही फॉर्मूला उठाकर ट्रैवल यानी यात्रा पर फिट कर दीजिए.

सीधे शब्दों में कहे तो आजकल लोग जिस मानसिक स्थिति का अनुभव कर रहे हैं, उसे ही ट्रैवल डिस्मॉर्फिया नाम दिया गया है. इसका शारीरिक बनावट से कोई संबंध नहीं है. इसका सीधा संबंध असुरक्षा की भावना और इस सोच से है कि आप दूसरों की तुलना में कम यात्रा कर रहे हैं.

Advertisement

यह शब्द इंटरनेट युग की देन है. जो कि मूल रूप से उस हीन भावना को दर्शाता है, जब व्यक्ति को लगता है कि उसका जीवन और उसकी यात्राएं दूसरों जितनी रोमांचक नहीं हैं. ये एक ऐसी मानसिक स्थिति है जो व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा और नकारात्मक असर डाल रही है.

यह भी पढ़ें: Konbini Tourism क्या है, जापान में क्यों वायरल हो रहा है 'किराना-स्टोर टूरिज्म'

आंकड़े और जमीनी हकीकत

'टॉकर रिसर्च' के एक रिसर्च के मुताबिक दस में से एक अमेरिकी यह स्वीकार करता है कि वह यात्रा के दौरान इस डिस्मॉर्फिया से पीड़ित महसूस करता है. यह आंकड़ा चौंकाने वाला नहीं है, क्योंकि फोमो अब बहुत गहरा हो चुका है. सोशल मीडिया पर स्क्रॉल करते हुए हर व्यक्ति कहीं न कहीं वायरल रील्स या सुंदर समुद्र तटों की तस्वीरों को सेव करता है और वैसी ही जीवनशैली की कामना करता है.

बात सिर्फ यहीं नहीं रुकती. सर्वे में शामिल लगभग 2,000 वयस्कों में से आधे से भी कम लोग अपनी अब तक की यात्राओं से संतुष्ट थे. सोचिए, पैसा खर्च किया, समय निकाला, घूमे-फिरने गए, लेकिन संतुष्टि नहीं मिली क्यों? क्योंकि दिमाग में तो इंस्टाग्राम वाली वो परफेक्ट तस्वीर छपी थी, जो हकीकत में मिली ही नहीं.

खासकर जो हमारी 'जेनरेशन Z' (नई युवा पीढ़ी) है, उनके 47 प्रतिशत लोग यह मानते हैं कि सोशल मीडिया पर दिखने वाला प्रभावशाली कंटेंट उन्हें यह महसूस कराता है कि उनका जीवन बोरिंग है.

Advertisement
सोशल मीडिया पर परफेक्ट ट्रैवल ग्रिड की तलाश (Photo: Pexels)

सोशल मीडिया का दिखावा और आपकी निराशा

आजकल सोशल मीडिया के एल्गोरिदम हमारे दिमाग पर सीधा असर डाल रहे हैं. सुबह फोन देखते ही हमें पता चलता है कि हमारे दोस्त या अन्य लोग दुनिया के किसी सुंदर कोने में छुट्टियों का आनंद ले रहे हैं. जबकि आप अभी भी अपनी रोजमर्रा की जिम्मेदारियों और ऑफिस जाने की चिंता में हैं. इस तुलना से तुरंत 'FOMO' पैदा होता है.

इंस्टाग्राम के सुंदर फिल्टर और ड्रोन वीडियो हर चीज को इतना परफेक्ट दिखाते हैं कि हमारी अपनी रोजमर्रा की जिंदगी फीकी लगने लगती है. लेकिन होता ये है कि ये रील और पोस्ट बनाने वाले लोग पर्दे के पीछे का सच नहीं दिखाते. उस परफेक्ट फोटो के लिए शायद कई बार प्रयास किया गया होगा, या हो सकता है कि वहां उम्मीद से कहीं ज्यादा भीड़ हो. सोशल मीडिया हमें केवल एक सुंदर दुनिया दिखाता है. इस सुंदरता की चाहत में, हम अपनी वास्तविक स्थिति से असंतुष्ट हो जाते हैं.

घूम न पाने की शर्मिंदगी

यह अजीब लग सकता है, लेकिन आज का यात्री घूम न पाने पर शर्मिंदा महसूस करता है. सर्वे के अनुसार, 32 प्रतिशत लोग मानते हैं कि जब दोस्त या रिश्तेदार यात्रा की बात करते हैं, तो उन पर कहीं न कहीं एक दबाव बन जाता है. जैसे- "अरे, तुम इस साल कहीं नहीं गए?" यह सवाल आपको सोचने पर मजबूर कर देता है कि कहीं आप जीवन में पीछे तो नहीं रह गए.

Advertisement

विशेषज्ञों की राय यह बात सुनने में भले ही अजीब लगे, लेकिन समय के साथ और सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति के नए रूपों के कारण ट्रैवल डिस्मॉर्फिया एक सच्चाई बन गया है. विशेषज्ञ भी इस बात से सहमत हैं. 'इंडिया टुडे' से बातचीत में रॉकेट हेल्थ की सुपरवाइजिंग काउंसलिंग साइकोलॉजिस्ट डॉ. नंदिता कालरा बताती हैं कि सोशल मीडिया व्यक्ति के आत्म-सम्मान, पहचान और मान्यता को बुरी तरह प्रभावित करता है.

मनोवैज्ञानिक डॉ. नंदिता कालरा बताती हैं कि आजकल लोग अपनी अहमियत को दिखावे से तौलते हैं. वे अपने आप से पूछते हैं, "क्या यह फोटो लोगों को पसंद आएगी?" न कि "क्या मुझे यह जगह पसंद है?" जब आप केवल लाइक के लिए जीते हैं, तो अंदर एक खालीपन आ जाता है.

यह भी पढ़ें: मणिपुर में क्यों मनाते हैं संगाई महोत्सव, इस बार लोग क्यों कर रहे हैं विरोध

यात्रा जब तनाव बन जाए

यात्रा का असली मकसद क्या था? आराम करना, खुद को जानना और तरोताजा होना. लेकिन जब आप सूर्यास्त का पीछा सिर्फ स्टोरी डालने के लिए करते हैं, या बादलों के बीच सिर्फ इसलिए जाते हैं ताकि दुनिया को दिखा सकें, तो यात्रा का असली आनंद खत्म हो जाता है. जो कि अब एक चलन बन गया है. जब आप हर वक्त दूसरों को दिखाने के दबाव में रहेंगे, तो थकना तो पक्का है. तभी तो लोग छुट्टी से वापस आकर कहते हैं कि उन्हें और आराम चाहिए, जबकि घूमने का मकसद तो आराम करना था.

Advertisement
यात्रा से मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है (Photo: Pexels)

क्या करें? जाने से पहले सोचें

सोशल मीडिया खत्म होने वाला नहीं है और फोटो डालने की चाहत भी बनी रहेगी. इसमें कोई बुराई नहीं, यादें संजोना अच्छी बात है, लेकिन हमें नजरिया बदलना होगा. अगली बार जब आप यात्रा की योजना बनाएं, तो यह न देखें कि इन्फ्लुएंसर कहां गया था, या ऑफिस में क्या दिखाना है. बल्कि प्लान इसलिए करें क्योंकि आपका मन वहां जाना चाहता है. अपनी रिसर्च खुद करें. हो सकता है वायरल जगह पर बहुत भीड़ हो. ऐसी जगह चुनें जहां सुकून हो. तुलना करना छोड़ें, क्योंकि आपकी यात्रा, आपका बजट और आपका अनुभव सिर्फ आपका होना चाहिए.

याद रखिए, कीमती यादें वो होती हैं जो आपके दिल में बसती हैं, न कि वो जो क्लाउड स्टोरेज पर सेव होती हैं. अपनी मानसिक शांति खोकर यात्रा करने का कोई फायदा नहीं है. कैमरा थोड़ा कम और आंखें थोड़ी ज्यादा खुली रखें.

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement