गुमनाम ऐतिहासिक ठिकाने जो बने सुपरहिट फिल्मों का सेट, आज भी लोग नहीं जानते नाम

भारत में कई ऐसी ऐतिहासिक जगहें हैं, जो आम पर्यटकों की नजरों से दूर हैं, लेकिन बॉलीवुड की कई मशहूर फिल्मों की शूटिंग इन्हीं शांत और गुमनाम लोकेशनों पर हुई है. इन लोकेशनों ने साबित किया कि कहानी जब असली विरासत स्थलों पर फिल्माई जाती है, तो उसका असर और भी गहरा हो जाता है.

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गुमनाम ऐतिहासिक ठिकाने(Photo: Pexels) गुमनाम ऐतिहासिक ठिकाने(Photo: Pexels)

aajtak.in

  • नई दिल्ली ,
  • 01 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 5:55 PM IST

भारत में जब भी फिल्मों की शूटिंग की बात होती है, तो लोग पहली बार में स्विट्जरलैंड, कश्मीर या राजस्थान के बड़े किलों का नाम लेते हैं. लेकिन सच यह है कि कई सुपरहिट बॉलीवुड फिल्मों की जान उन जगहों में बसी है, जिनके बारे में ज्यादातर लोगों को आज भी पता नहीं है.

ये वो ऐतिहासिक ठिकाने हैं जो वर्षों से शांत पड़े हैं. यहां भीड़ का शोर नहीं, बस सदियों पुराने पत्थरों की खामोशी है. ऐसी जगहें जहां वक्त ठहरा हुआ लगता है. फिल्ममेकर्स को यही सादगी और असलियत चाहिए-ऐसी लोकेशन जो कहानी को और गहराई दे, जहां हर फ्रेम में इतिहास अपने आप महसूस हो.

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इसी वजह से कई बड़ी फिल्में इन अनजाने विरासत स्थलों में शूट की गईं, जिन्होंने इन जगहों को सिल्वर स्क्रीन पर नई पहचान दी. आइए जानते हैं, वे कौन सी 5 जगहें हैं जिन्होंने आपकी फेवरेट फिल्मों को शानदार सेट दिया.

1. लगान (2001): विजय विलास पैलेस

साल 2001 में आई आशुतोष गोवारिकर की फिल्म ‘लगान’ अपनी कहानी जितनी मजबूत थी, उतनी ही सटीक लोकेशन पर भी बनाई गई थी. फिल्म में ब्रिटिश छावनी वाले दृश्य मांडवी के विजय विलास पैलेस में शूट हुए, जिसकी लाल बलुआ-पत्थर की भव्य इमारत ने पूरी कहानी में शाही माहौल जोड़ दिया. राजपूत शैली में बना यह महल फिल्म के दौर और माहौल दोनों को मजबूती देता है. वहीं भुज का प्राग महल, जो इटालियन-गॉथिक शैली में बना है, फिल्म में ब्रिटिश मुख्यालय के रूप में दिखाया गया. इतना ही नहीं इसके ऊंचे घंटाघर और अंदरूनी हिस्सों ने सेटिंग को और भी प्रभावशाली बना दिया.

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2. पहेली (2005): हाड़ी रानी की बावड़ी

अमोल पालेकर की 'पहेली' ने अपनी कहानी को राजस्थान के उन उपेक्षित वास्तुशिल्प रत्नों की सुंदरता में स्थापित किया. फिल्म का महत्वपूर्ण दृश्य टोडारायसिंह में स्थित 17वीं शताब्दी की हाड़ी रानी की बावड़ी में फिल्माया गया था. बावड़ी के मेहराबदार गलियारे और देवी-देवताओं की गढ़ी हुई मूर्तियां, दृश्य को एक रहस्यमय और भूतिया मंच देते हैं. फिल्म में आभानेरी की चांद बावड़ी को भी कैद किया गया, जिसकी  सीढ़ियां और दीवारों का झरना अलौकिक मुलाकातों को एक असाधारण ज्यामितीय फ्रेम देता है. इन सदियों पुराने स्थलों ने 'पहेली' के लिए काल्पनिक सेटों के बजाय वास्तविक सिनेमाई एंकर का काम किया.

3. लुटेरा (2013): इताचुना राजबाड़ी

अगर आपको ‘लुटेरा’ फिल्म का शांत और पुराना माहौल याद आता है- जैसे धीमी हवा, पुरानी हवेली और कमरों की खामोशी तो वैसी ही जगह बंगाल की इटाचुना राजबाड़ी है. करीब 200 साल पुरानी यह जमींदार हवेली आज भी पुराने दौर की महक को अपने अंदर समेटे हुए है. फिल्म में इसकी टूटी दीवारें, लकड़ी की बड़ी खिड़कियां और विशाल आंगन खुद कहानी का हिस्सा बन गए थे. फिल्म की शूटिंग का एक हिस्सा झारखंड के देउलघाटा जैन मंदिरों और पुरुलिया के शांत, पुराने गांवों में भी किया गया था. ये जगहें अभी भी सामान्य यात्रियों के बीच बहुत चर्चा में नहीं हैं. फिल्म का दूसरा हिस्सा हिमाचल के कालाटोप में शूट किया गया, जहां देवदार के घने जंगलों ने कहानी को और गहराई दी.

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4. हैदर (2014): मार्तंड सूर्य मंदिर

विशाल भारद्वाज की फिल्म ‘हैदर’ की असली सुंदरता मार्तंड सूर्य मंदिर में दिखाई देती है. 8वीं शताब्दी के इस प्राचीन मंदिर के ऊंचे पत्थर के स्तंभों और खुले खंडहरों के बीच फिल्माया गया ‘बिस्मिल’ गीत आज भारतीय सिनेमा के सबसे यादगार दृश्यों में गिना जाता है. इस फिल्म में श्रीनगर का निशात बाग, अनंतनाग की संकरी गलियां, हजरतबल दरगाह और जैनाकदल पुल जैसे कई लोकेशन दिखाए गए हैं. ये जगहें फिल्म को कश्मीर की असली जमीन, उसकी हवा और उसके माहौल से जोड़ती हैं. ‘हैदर’ मूवी ने इन जगहों को सिर्फ बैकड्रॉप की तरह इस्तेमाल नहीं किया, बल्कि इन्हें कहानी का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाकर स्क्रीन पर फिर से जीवंत कर दिया.

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5. तुम्बाड (2018): पुरंदरे वाडा

तुम्बाड’ का डर और रहस्य किसी स्टूडियो में बनाए सेट से नहीं आता. यह सीधे उस असली जगह से पैदा होता है जहां फिल्म शूट हुई थी. पुणे के पास स्थित पुरंदरे वाडा, जो 18वीं सदी की एक पुरानी मराठा हवेली है, फिल्म में अपने आप में एक किरदार बन जाती है. हवेली का धुंधला आंगन, समय से काले पड़े लकड़ी के खंभे, टूटती दीवारें और कमरों की उलझी हुई गलियां, ये सब मिलकर ऐसा माहौल बनाते हैं, जो आपको अंदर खींच भी लेता है और असहज भी कर देता है.

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‘तुम्बाड’ ने दिखाया कि जब कहानी असली ऐतिहासिक स्थानों पर फिल्माई जाती है, तो उसका असर कई गुना बढ़ जाता है.

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