जब हम 'द्वीप' (Island) शब्द सुनते हैं, तो हमारे दिमाग में चारों तरफ समंदर से घिरा कोई सुंदर टापू आता है. लेकिन भारत में एक ऐसा अजूबा है, जो समुद्र में नहीं, बल्कि विशालकाय ब्रह्मपुत्र नदी के बीचों-बीच बसा है. हम बात कर रहे हैं माजुली की, जो सिर्फ भारत का नहीं, बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा बसा हुआ नदी द्वीप है. असम की ब्रह्मपुत्र नदी में छिपा यह द्वीप किसी स्वर्ग से कम नहीं है, लेकिन इसकी खूबसूरती के पीछे एक गंभीर सच्चाई भी है.
असम की संस्कृति का जीवंत केंद्र
माजुली द्वीप सिर्फ जमीन का एक टुकड़ा नहीं, बल्कि असम की आत्मा और उसकी 600 साल पुरानी परंपराओं का गढ़ है. ब्रह्मपुत्र के बदलते बहाव से बना यह द्वीप, मौसमी बाढ़ के आधार पर 475 से 880 वर्ग किलोमीटर तक फैला है और भारत का एकमात्र द्वीपीय जिला है. इस द्वीप की सबसे बड़ी पहचान यहां के वैष्णव मठ हैं.
15वीं सदी के महान संत श्रीमंत शंकरदेव और उनके शिष्य माधवदेव ने यहां 30 से भी ज्यादा वैष्णव मठों की स्थापना की थी. ये मठ आज भी असमिया संस्कृति का ध्रुव तारा बने हुए हैं. यहीं पर सत्रिया जैसे शास्त्रीय नृत्य और संगीत की परंपराएं संरक्षित हैं. इतना ही नहीं, रास लीला जैसे उत्सवों में उपयोग होने वाले मुखौटे बनाने की अद्भुत कला और ग्रामीण घरों में बांस के खंभों पर होने वाली बुनाई और मिट्टी के बर्तन बनाने का काम भी यहां सदियों से चला आ रहा है. माजुली आना, मानो असम की सदियों पुरानी संस्कृति के म्यूजियम में कदम रखना हो.
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प्रकृति प्रेमियों के लिए स्वर्ग
माजुली की प्राकृतिक सुंदरता आपको एक शांत और सुकून भरा अनुभव देगी. जो लोग शहर की भीड़भाड़ से दूर एकांत चाहते हैं, उनके लिए यह एक बेहतरीन ठिकाना है. सर्दियों के मौसम में माजुली पक्षी प्रेमियों के लिए स्वर्ग बन जाता है. इस दौरान यहां पेलिकन, सारस और साइबेरियन क्रेन जैसी 150 से ज्यादा प्रवासी प्रजातियां देखने को मिलती हैं. इस द्वीप के चारों ओर धान के खेत, आर्द्रभूमि और हरियाली एक शांत वातावरण बनाती है. यहां साइकिल चलाना और तितलियों को निहारना सबसे लोकप्रिय गतिविधियां हैं.
इतना ही नहीं पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए यहां खास इको-टूरिज्म पहल चलाई जा रही हैं. पर्यटक स्थानीय परिवारों द्वारा संचालित होमस्टे में रह सकते हैं. इसके अलावा, वे मुखौटा बनाने और बुनाई जैसी पारंपरिक कला कार्यशालाओं में भाग ले सकते हैं. इन गतिविधियों से न केवल स्थानीय लोगों की आर्थिक मदद होती है, बल्कि वे माजुली के नाजुक पर्यावरण को बचाने के लिए चल रहे संरक्षण कार्यों में भी योगदान देते हैं.
माजुली का लुप्त होने का खतरा
माजुली की सुंदरता के नीचे एक भयावह सच्चाई छिपी है. कभी यह द्वीप 1,200 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में फैला हुआ था, लेकिन ब्रह्मपुत्र नदी के लगातार कटाव के कारण यह तेजी से सिकुड़ता जा रहा है. हर साल आने वाली मानसूनी बाढ़ के कारण यह कटाव और भी गंभीर हो जाता है. यह खतरा केवल जमीन के लिए नहीं, बल्कि यहां की सदियों पुरानी कलाओं, मठों और स्थानीय लोगों की आजीविका के लिए भी एक बड़ा संकट है. इसलिए माजुली की यात्रा करना केवल घूमना नहीं, बल्कि उस विरासत को देखना भी है, जो शायद कुछ समय बाद हमें देखने को न मिले.
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माजुली कैसे पहुंचें
माजुली पहुंचना अपने आप में एक रोमांचक अनुभव है. यह द्वीप गुवाहाटी से करीब 350 किलोमीटर पूर्व में स्थित है. माजुली पहुंचने के लिए यात्री आमतौर पर पहले जोरहाट तक आते हैं. जोरहाट से फिर ब्रह्मपुत्र नदी पर नौका की यात्रा शुरू होती है. यह नाव यात्रा बहुत ही मनमोहक होती है, जहां आपको ब्रह्मपुत्र के विशाल जल और शांत नज़ारों का अद्भुत अनुभव मिलता है. यह यात्रा ही आपको शहर की भाग-दौड़ से पूरी तरह दूर ले जाकर एक शांत दुनिया में पहुंचा देती है, जहां आप अपने नए अनुभवों के लिए पूरी तरह तैयार हो जाते हैं.
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