400 मुसाफिर और वो 1.5 घंटे का सफर...1853 में शुरू हुई वो ट्रेन जिसने पूरे देश को रफ्तार दी

34 किलोमीटर का वो छोटा सा सफर जिसने भारत की कहानी बदल दी… मुंबई का एक स्टेशन, जहां ट्रेन की पहली आवाज ने इतिहास रच दिया. जानिए कैसे बोरी बंदर से छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस तक पहुंची यह अद्भुत यात्रा.

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छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस की भव्य इमारत (Photo: Pexels) छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस की भव्य इमारत (Photo: Pexels)

aajtak.in

  • नई दिल्ली ,
  • 26 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 10:22 AM IST

16 अप्रैल 1853 की दोपहर मुंबई के बोरी बंदर स्टेशन पर हजारों की भीड़ जमा थी, वहां मौजूद हर शख्स एक ऐसी ऐतिहासिक यात्रा का गवाह बनने वाला था, जो इतिहास के पन्नों में दर्ज होने वाला था. लोग उस वक्त हैरान रह गए जब 21 तोपों की सलामी के साथ एक ट्रेन धुआं छोड़ते हुए ठाणे की ओर निकल पड़ी.

यह महज 34 किलोमीटर का एक छोटा सा सफर था, लेकिन इसी ने भारत की किस्मत की लकीरें हमेशा के लिए बदल दीं. आज जिसे हम शान से 'छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस' (CSMT) कहते हैं, उसकी शुरुआत एक छोटे से 'बोरी बंदर' स्टेशन से हुई थी. आइए, आपको भारत की पहली ट्रेन और इस आलीशान स्टेशन की वो कहानी बताते हैं जो आपने शायद न सुनी हो.

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जब 14 डिब्बों में बैठकर 400 यात्रियों ने रचा इतिहास

16 अप्रैल 1853 को दोपहर ठीक 3:30 बजे जब हरी झंडी दिखाई गई, तो 14 डिब्बों वाली यह ट्रेन अपनी पहली यात्रा पर रवाना हुई. इसमें करीब 400 यात्री बैठे थे, जिनके लिए यह सफर किसी जादुई एहसास जैसा था. इस ऐतिहासिक ट्रेन ने बोरी बंदर से ठाणे तक की दूरी करीब डेढ़ घंटे में पूरी की थी. आज के समय में शायद हम इस दूरी को बहुत छोटा मानें, लेकिन उस दौर में इस डेढ़ घंटे के सफर ने पूरे देश को एक ऐसी रफ्तार दे दी थी, जो आज करोड़ों लोगों की जिंदगी की धड़कन बन चुकी है.

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बोरी बंदर से लेकर महाराज टर्मिनस तक का सफर

समय के साथ न सिर्फ ट्रेनें बदलीं, बल्कि इस स्टेशन की पहचान भी पूरी तरह बदल गई. जिसे हम कभी सिर्फ बोरी बंदर के नाम से जानते थे, उसे 1888 में एक भव्य महल जैसा रूप दिया गया और नाम मिला 'विक्टोरिया टर्मिनस'. सालों तक यह इसी नाम से पहचाना जाता रहा, लेकिन 1996 में इसे 'छत्रपति शिवाजी टर्मिनस' का नाम दिया गया. आखिरकार, 2017 में सरकार ने इसमें 'महाराज' शब्द जोड़कर इसे 'छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस' कर दिया. आज यह स्टेशन सिर्फ मुंबई की ही नहीं, बल्कि पूरे भारतीय रेलवे की सबसे बड़ी पहचान है.

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विश्व विरासत सूची में शामिल वास्तुकला की बेमिसाल धरोहर

आज मुंबई की धड़कन बन चुका यह स्टेशन महज एक जंक्शन नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर वास्तुकला का एक अद्भुत उदाहरण है. इटैलियन मार्बल, बलुआ पत्थरों और चूने के पत्थरों के मेल से तैयार की गई यह इमारत अपनी बारीक नक्काशी और भव्य गुंबदों के लिए जानी जाती है. इसकी इसी स्थापत्य कला और ऐतिहासिक महत्व को पहचानते हुए साल 2004 में यूनेस्को (UNESCO) ने इसे विश्व विरासत की सूची में जगह प्रदान की.

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