भारत का इतिहास प्राचीन और रहस्यमयी है, जहां हर मिट्टी के कण में अनगिनत कहानियां छिपी हैं. ऐसा ही एक अनूठा रहस्य है बिहार की बराबर गुफाएं, जो भारत की सबसे प्राचीन चट्टानों से तराशी गई गुफाएं हैं. इन गुफाओं में आज भी उस युग की कला, जीवनशैली और आध्यात्मिकता की झलक देखने को मिलती है. अगर आप प्राचीन रहस्यों और इतिहास के प्रेमी हैं, तो बराबर गुफाओं की सैर एक बार जरूर करें.
बराबर गुफाएं मौर्य सम्राट अशोक के शासनकाल में 322 ईसा पूर्व से 185 ईसा पूर्व के बीच बनवाई गई थीं. इन गुफाओं को खासतौर पर अजीविका संप्रदाय के साधुओं के लिए बनवाया गया था, जो वैदिक परंपराओं से हटकर एक अलग धार्मिक रास्ता अपनाते थे. इन गुफाओं की दीवारों पर आज भी अशोक और उसके उत्तराधिकारी दशरथ के अभिलेख मौजूद हैं, जो इन्हें ऐतिहासिक रूप से और भी खास बनाते हैं.
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इन गुफाओं को ग्रेनाइट जैसी बेहद कठोर चट्टानों को काटकर बनाया गया है. हैरानी की बात ये है कि गुफाओं के अंदर की दीवारों को इतना पॉलिश किया गया है कि वो आज भी चमकती हैं. इतना ही नहीं, इन गुफाओं के बारे में आसा कहा जाता है कि बोलने पर आवाज गूंजती है, जो उस समय के स्थापत्य कला को दर्शाता है. ये गूंज और गुफाओं की बनावट इन्हें देखने वालों के लिए और भी दिलचस्प बनाती है.
बराबर गुफाएं बिहार के जहानाबाद जिले के मखदुमपुर क्षेत्र में स्थित हैं और ये बराबर तथा नागार्जुनी नाम की दो पहाड़ियों में फैली हुई हैं. इन गुफाओं के चारों ओर घने जंगल और चट्टानी इलाके हैं, जो इस जगह को और भी रहस्यमयी और खूबसूरत बना देते हैं. यहां का शांत वातावरण और प्राकृतिक दृश्य एकदम अलग अनुभव देता है.
बराबर गुफाएं अकेली नहीं हैं, बल्कि ये एक समूह में आती हैं. इनमें सुदामा गुफा, कर्ण चौपड़, लौमस ऋषि गुफा और विश्व झोपड़ी प्रमुख हैं. खासकर लौमस ऋषि गुफा की प्रवेश द्वार की नक्काशी बहुत मशहूर है. इस पर लकड़ी के मंदिर जैसी आकृति बनाई गई है, जो मौर्यकाल की कला और वास्तुकला का बेहतरीन उदाहरण है.
अगर आप बिहार के इतिहास, संस्कृति और रहस्य को करीब से महसूस करना चाहते हैं तो बराबर गुफाएं जरूर जाएं. गया से करीब 24 किलोमीटर दूर इस जगह पर सड़क मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता हैं. इतना ही नहीं आसपास में और भी कई दर्शनीय स्थल हैं, जिससे आपका सफर और भी यादगार बन सकता है.
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