अमरनाथ यात्रा की शुरुआत 3 जुलाई से शुरू हुई. आज तक की टीम भी पहले जत्थे के साथ पवित्र अमरनाथ गुफा के दर्शन किए, लेकिन इस बार का एक्सपीरियंस पिछले सालों की अपेक्षा काफी अलग था, इससे पहले दो बार पवित्र अमरनाथ गुफा की यात्रा आजतक की टीम ने किया. 2018 और 2022 में की गई यात्रा तब से अब में काफी परिवर्तन दिखा. 2018 में जब आजतक की टीम जब पवित्र अमरनाथ गुफा पर पहुंची थी, तो बाबा बर्फानी शिवलिंग काफी ऊंचे थे, लेकिन इस बार मात्र डेढ़ से 2 फीट ही बाबा बर्फानी के दर्शन हुए.
बाबा बर्फानी कुछ ही दिनों में धीरे-धीरे करके अंतर्ध्यान होने लगे कई जानकार यह बताते हैं कि जिस तरीके से ग्लोबल वार्मिंग और श्रीनगर जम्मू कश्मीर में गर्मी का प्रकोप बढ़ रहा है, उसके चलते इस तरीके से प्राकृतिक शिवलिंग पिघल रहे है. आजतक के कैमरे में भी कुछ इसी तरीके की तस्वीर आसपास की दिखाई पड़ी. जब यात्रा की शुरुआत बालटाल से पवित्र अमरनाथ गुफा तक के लिए किया तो उसे दौरान चढ़ते वक्त जो तस्वीर कैमरे में कैद हुई, उसमें चारों तरफ रास्ते में किस तरीके से खच्चर, पालकी और पैदल चलने वालों के चलते धूल उड़ रही है, जो ग्लेशियर भरी भरकम होते थे, वह अब तेजी से पिघल रहे हैं जो तस्वीरों में दिखते हैं.
आजतक की टीम ने कई लोगों से बातचीत की जो लोग पिछले कई सालों से लगातार अमरनाथ गुफा की यात्रा कर रहे थे, उन्होंने अपना एक्सपीरियंस शेयर किया.
संजीव सौरभ बताते हैं- 'मैं अपने ईश को देखकर व्याकुल हो गया..मैं पिछले पंद्रह साल से लगातार अमरनाथ यात्रा कर रहा हूं. इस यात्रा की प्रेरणा मुझे किसी राजनीतिक या सामाजिक घटनाक्रम के कारण नहीं हुई, बल्कि घट घट में शिव हैं, यही सत्य जानकर मैं अमरनाथ धाम की यात्रा पर हर साल चलने लगा. कैलाश मानसरोवर नहीं जा सकता, इसलिए भी अमरनाथ यात्रा की इच्छा रही. शुरुआती सालों में शासकीय व्यवस्था खानापूर्ति जैसी रहती थी, लेकिन बाबा का दरबार उस समय भी चकाचक रहता था.'
वो आगे कहते हैं- '12-15 फुट ऊंचा बाबा का बर्फ का विग्रह एक अलौकिक आकर्षण और आंतरिक भक्ति भाव को आड़ोलित करता था. रास्ते का कष्ट बाबा अपने धवल स्वरूप में दर्शन देकर हर लेते थे. 'नमः पार्वती पतये हर हर महादेव' की गूंज मुझे अपने ईश से क्षण भर के लिए ही सही एकात्म कर देता था. आनंद की व्याख्या नहीं की जाती आनंद अनुभव का विषय है. भक्तों की संख्या में भी बढ़ोत्तरी मैंने देखा है. चारों तरफ आनंद ही आनंद, लेकिन लगता है कि भोलेनाथ नाराज होने लगे.'
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वो कहते हैं- ' बाबा का बर्फ से स्वनिर्मित विग्रह का आकार लगातार छोटा होने लगा. इस बार जब मैं दर्शन के लिए दरबार में प्रवेश किया तो भगवान भोलेनाथ की अनुभूति तो हुई, लेकिन दर्शन के लिए आंखें तरस गई. लोग कहते हैं ग्लोबल वार्मिंग का असर है. मैं कहता हूं जो असर अनुमान से परे है उसकी नाराजगी ग्लोबल वार्मिंग की वजह से नहीं ग्लोबली मनुष्य के आचरण में गिरावट की वजह से है. मानवीय आचरण के क्षरण की वजह से ही संभवतः ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रहा है. क्या करता भाव को रोक नहीं पाया और इस बार भोलेनाथ का अभिषेक अश्रुजल से कर आया..हो सकता है कि यह ग्लोबल वार्मिंग का ही असर हो. अन्यथा जिस दरबार में स्वेटर जैकेट से भी शरीर गर्म नहीं हो पाता था उसी दरबार में साधारण शर्ट पहनकर प्रवेश किया यहा मानवीय व्यवहार में क्षरण के कारण ही हुआ है आप सभी से भाव साझा करने की मूल वजह है कि ऐसा महसूस हो रहा है कि महादेव अपनी तीसरी नेत्र की ज्योत से सृष्टि पर प्रकोप करने वाले हैं. समय रहते मनुष्य अपने आचरण पर नियंत्रण करे. अन्यथा.. महाविनाश की झलक दिखने लगी है..'
दिल्ली के विशाल जैन कपड़ा व्यापारी और प्रॉपर्टी का काम करते हैं वो कहते हैं- ' मैं बाबा बर्फानी के दर्शन के लिए हर साल जाता हूं. और इस साल भी 2025 की यात्रा में जो मैं नजारे देख रहा था और उस नजारे के अंदर मैंने यह देखा कि पहले जो ग्लेशियर बर्फ के होते थे और जो ठंड महसूस होती थी वह चारों तरफ से ग्लेशियर पिघल रहे थे और सबसे बड़ी बात यह है जो खच्चर जा रहे थे, उनसे बहुत ज्यादा धूल उड़ रही थी, और बाबा बर्फानी के दर्शन के लिए हम चाहते हैं, तो उसके अंदर में बहुत ठंड महसूस होती है. हमने खाली एक पतला ट्रैक सूट पहना, जिसमें एक धूल की लेयर बहुत बुरी तरह चढ़ गई थी. पूरा चेहरा हमारा धूल में चढ़ गया और जो चारों तरफ की जो तस्वीर थी. वह बहुत ज्यादा भयभीत करने वाली थी.'
विशाल आगे कहते हैं- ' सिवाय धूल मिट्टी के कुछ नहीं मिला और जब बाबा बर्फानी के दर्शन के लिए हम पहुंचे तो वहां पर हमने देखा कि जो बाबा बर्फानी पहले जो 8 से10 फीट के देखे थे, वह बाबा बर्फानी बिल्कुल लुप्त हो गए और हमें खाली बर्फ की लेयर मिली. जिससे मुझे बहुत कष्ट हुआ प्रकृति एनवायरमेंट को काफी नुकसान पहुंचा रहे है. सारे रास्ते घोड़े और मिट्टी थी, तो उससे बहुत दिक्कत भी हुई उसके बाद जब हम श्रीनगर जब आए तो श्रीनगर में भी बहुत गर्मी थी. कश्मीर के अंदर गए वहां पर हम हाफ बाजू की शर्ट में घूम रहे थे, तो इससे कितना एनवायरमेंट को नुकसान पहुंच रहा है या खुद महसूस कर सकते हैं. आप फोटो में देख सकते हैं की कितनी ठंड होती थी वह अब नदारत है.'
2022 में बीएसएफ के पूर्व इंस्पेक्टर जनरल (कश्मीर) राजा बाबू सिंह ने पहलगाम और बालटाल दोनों मार्गों पर सुरक्षा की ज़िम्मेदारी संभाली थी. उन्होंने कहा- 'मेरे कार्यकाल के दौरान मैंने देखा कि उस क्षेत्र में बर्फबारी में कमी आई है. पहले यात्रा मार्ग एकदम प्राकृतिक और अनछुई ज़मीन हुआ करती थी. अब वहां भारी संख्या में सुरक्षाबलों की मौजूदगी, हेलिकॉप्टरों की आवाजाही और लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है. इसका असर वहां के पर्यावरण पर पड़ा है, जिसे वैश्विक तापवृद्धि ने और बढ़ा दिया है.'
शिव भक्ति सेवा ट्रस्ट,रोहिणी दिल्ली के मुख्य सरंक्षक रविंद्र कुमार शर्मा कहते हैं- 'अमरनाथ जी की यात्रा इतनी आसान नहीं है जितना लोग समझते है. 30 सालों में हमें कभी भी आसान महसूस नहीं हुई कोई ना कोई नया अनुभव हमेशा देखने को मिला. करीब इन 30 सालों में बाबा बर्फानी के 40 बार दर्शन किए हैं, लेकिन 1996 से 2003 तक यात्रियों की संख्या बहुत कम हुआ करती थी और बर्फानी शिवलिंग का रूप भी विशाल 9 से 16 फीट का आकार देखने मिलता रहा और समय सीमा भी अधिक हुआ करती थी और हेलीकॉप्टर की सेवा भी बहुत सीमित हुआ करती थी. भवन के पास ही मात्र 300 मीटर के दायरे में थी जैसे -जैसे यात्रियों की संख्या बढ़ने लगी और हेलीकॉप्टर में यात्रियों की संख्या बढ़ोतरी हुई तो अमरनाथ जी बर्फानी शिव लिंग का आकार जल्दी लुप्त होने लगा और प्रति वर्ष 5 लाख से 7.5 लाख तक यात्रियों की संख्या हो गई और यात्रा में जो शिवलिंग 35 से 40 दिन दर्शन हुआ करते थे, वह घटकर 15 से 20 दिन बर्फानी के दर्शन होने लगे.'
रविंद्र कुमार आगे कहते हैं- 'अब की बार 2025 में भीषण गर्मी और तापमान में वृद्धि के चलते मुश्किल से एक सप्ताह भी बाबा बर्फानी के दर्शन हो पाए साथ ही बढ़ी गर्मी चलते और बारिश ना होने के कारण पूरे रास्ते धूल भरी आंधी का सामना सभी शिव भक्तों को करना पड़ा. सरकार की तरफ से श्री अमरनाथजी यात्रा श्राइन बोर्ड के द्वारा काफी कुछ बदलाव और यात्रियों की सुविधा के लिए रोड, दुर्गम रास्तों को आसान बनाने, शोचालयों की व्यवस्था, ठहरने के लिए जगह- जगह यात्रा निवास और सुरक्षा व्यवस्था का विशेष ध्यान दिया जाने लगा है.
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जितेंद्र बहादुर सिंह