Zepto CEO ने स्वीकारी अपनी गलती, समझिए डार्क पैटर्न कैसे डालता है आपकी शॉपिंग पर असर

Zepto CEO आदित पलीचा ने माना है कि उनकी कंपनी ने डार्क पैटर्न को लेकर टेस्टिंग की और बाद में यूजर्स के फीडबैक के आधार पर उसको वापस भी ले लिया. डार्क पैटर्न, एक ऐसी रणनीति होती है, जो कस्टमर को गैर जरूरी सामान को लेने के लिए उकसाती है.

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Zepto CEO आदित पलीचा. (File Photo) Zepto CEO आदित पलीचा. (File Photo)

aajtak.in

  • नई दिल्ली ,
  • 21 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 7:14 PM IST

भारत में डेटा प्राइवेसी और डार्क पैटर्न को लेकर बढ़ती चिंता के बीच Zepto CEO आदित पलीचा ने बड़ा खुलासा किया है.  उन्होंने फॉर्ब्स को दिए एक इंटरव्यू में माना है कि उनके प्लेटफॉर्म ने भी डार्क पैटर्न यूज किया और बाद में उसको हटा भी दिया गया. Zepto असल में एक क्विक कॉमर्स मार्केट है, जिसको ऐप से भी एक्सेस किया जा सकता है. 

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आदित पलीचा ने माना है कि उनकी कंपनी ने डिलिवरी चार्ज और प्राइसिंग से जुड़े अलग-अल तरीकों पर टेस्टिंग की. उन्होंने माना कि उनका ये एक्सपेरीमेंट कस्टमर्स को पसंद नहीं आया है. फीडबैड के आधार पर इसको रिमूव कर दिया गया. 

प्राइसिंग एक्सपेरिमेंट अलग-अलग तरीके से की गई 

फॉर्ब्स को बताते हुए उन्होंने कहा कि डिलिवरी फीस और प्राइसिंग एक्सपेरिमेंट को लेकर अलग-अलग तरीकों को आजमाया गया. इसके बाद बहुत से कस्टमर्स को ये अच्छा नहीं लगा और उन्होंने फीडबैक भी दिया. इसी फीडबैक के आधार पर बदलाव किया गया है. 

CEO ने बताया है कि उनके इस बदलाव में कोई भी सरकारी दखल नहीं था. उन्होंने कहा कि इसमें कोई रेगुलेटरी एंगल नहीं था और ना ही सरकार की तरफ से कोई हस्तक्षेप किया गया था. काफी नेगेटिव फीडबैक मिला था, जिसकी वजह से कंपनी ने खुद इसे वापस लेने का फैसला किया. 2 महीने के अंदर कंपनी ने इसको ठीक कर लिया. 

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डार्क पैटर्न के नुकसान क्या हैं? 

  • डिपार्टमेंट ऑफ कंज्यूमर अफेयर्स के मुताबिक, डार्क पैटर्न की वजह से डिजिटल मार्केट में शॉपिंग करने वाले कंज्यूमर नेगेटिव असर पर पड़ता है. 
  • इसको इस तरह से डिजाइन किया जाता है, जो यूजर्स को खरीदने के लिए उकसाता है. 
  • ये अक्सर अनचानी खरीदारी में फंसा देते हैं. इसमें अचानक से पेमेंट, सब्सक्रिप्शन का जाल और प्राइवेसी का उल्लंघन है. 

डार्क पैटर्न क्या होता है?

डार्क पैटर्न, असल में उस प्राइसिंग डिजाइन और स्ट्रैटजी को कहते हैं, जिसमें कस्टमर्स को कुछ ऐसे ऑप्शन को चुनने के लिए उकसाया जाता है, जिनको वे वास्तव में चुनना नहीं चाहते हैं. इससे कस्टमर को सस्ते होने के भ्रम पैदा होता है, जिससे वह खरीद लेते हैं. 

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