प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में भारत पहले के मुकाबले दो पायदान नीचे खिसक कर 138वें स्थान पर पहुंच गया है. रैंकिंग जारी करने वाली एक संस्था ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में इस गिरती रैंकिंग के लिए पत्रकारों के खिलाफ होने वाली हिंसा और हेट क्राइम को जिम्मेदार ठहराया.
रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) ने अपनी रिपोर्ट में कहा, 'भारत की इस गिरती रैंकिंग के लिए हेट क्राइम भी एक बड़ा कारण है, जब से नरेंद्र मोदी 2014 में प्रधानमंत्री बने हैं, हिंदू चरमपंथी पत्रकारों से बहुत हिंसक तरीके से पेश आ रहे हैं.'
इसमें कहा गया, ‘कोई भी खोजपरक रिपोर्ट जो सत्तारूढ़ पार्टी को नागवार गुजरती है या फिर हिंदुत्व की किसी प्रकार की आलोचना जैसे मामलों में लेखक या रिपोर्टर को ऑनलाइन अपमानित करने और उनको जान से मारने जैसी धमकियों की बाढ़ आ जाती है. इनमें से ज्यादातर धमकियां प्रधानमंत्री की ट्रोल सेना की तरफ से आती हैं.’
आरएसएफ ने इसके लिए पत्रकार और कार्यकर्ता गौरी लंकेश का उदाहरण दिया, जिनकी पिछले साल सितंबर में हत्या कर दी गई थी.
पत्रकारों पर हमले का हवाला
रिपोर्ट में कहा गया, ‘समाचार-पत्र संपादक गौरी लंकेश को उनके घर के बाहर गोली मार दी गई थी. हिंदु प्रधानता, जाति व्यवस्था और महिलाओं के खिलाफ होने वाले भेदभाव की आलोचना के बाद वह घृणित भाषणों की शिकार हो गई थीं और उन्हें हत्या की धमकी मिलने लगी थी.'
आरएसएफ के मुताबिक, 'भारत की गिरती रैंकिंग के लिए पत्रकारों के खिलाफ होने वाली हिंसा बहुत हद तक जिम्मेदार है. उनके काम के चलते कम से कम तीन पत्रकारों को मौत के घाट उतार दिया गया. ज्यादातर मामलों में अस्पष्ट स्थितियों में उनकी मौत हुई और अक्सर ऐसे मामले ग्रामीण इलाकों में देखने को मिलते हैं जहां संवाददाताओं को बहुत कम मेहनताना मिलता है.'
रिपोर्ट में बताया गया कि विश्व के सबसे स्वतंत्र मीडिया के तौर पर लगातार दूसरे साल नॉर्वे सबसे ऊपर बना हुआ है वहीं उत्तर कोरिया में प्रेस की आवाज को सबसे ज्यादा दबाया जाता है. इस क्रम में इरिट्रिया, तुर्कमेनिस्तान, सीरिया और फिर चीन, उत्तर कोरिया से ठीक ऊपर हैं. इस लिस्ट में 180 देशों की रैंकिंग में भारत 138 वें स्थान पर पहुंच गया है.
अनुग्रह मिश्र