कैसी है LAC के तनाव पर बेहतर समझ देने वाली सैटेलाइट तस्वीरों की दुनिया?

सरकारी स्वामित्व वाले मिलिट्री सैटेलाइट्स के पास कमर्शियल रूप से उपलब्ध सैटेलाइट तस्वीरों की तुलना में अधिक रिजॉल्यूशन है. इसरो का अंतरिक्ष इमेजिंग और रिमोट सेंसिंग के संबंध में भारतीय सशस्त्र सेनाओं की जरूरतों का समर्थन करने के लिए खास समर्पित मिशन है.

Advertisement
गलवान घाटी में गतिरोध के बाद की सैटेलाइट तस्वीर (आजतक) गलवान घाटी में गतिरोध के बाद की सैटेलाइट तस्वीर (आजतक)

अंकित कुमार

  • नई दिल्ली,
  • 22 जून 2020,
  • अपडेटेड 5:30 PM IST

  • रक्षा क्षेत्र में स्पेस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करती हैं दुनिया भर की सरकारें
  • इस क्षेत्र में कमर्शियल सैटेलाइट तस्वीरों ने एक नया आयाम जोड़ा है

जब ग्राउंड जीरो तक पहुंच मुमकिन न हो, आधिकारिक बयानों से स्पष्टता न हो और जानेमाने विशेषज्ञों की विरोधाभासी राय हो, तो निष्पक्ष साक्ष्य शुद्ध सोने की तरह होते हैं.

भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर हुआ हालिया घटनाक्रम घालमेल वाले तथ्यों की क्लासिक मिसाल है. इस तरह की स्थिति में दोनों ओर सैनिकों के बिल्ड-अप की सही पोजीशन दिखाने वाली ग्राउंड जीरो से ली गई सैटेलाइट तस्वीरें ही पुख्ता जरिया है, जो तथ्य को परिकल्पना से अलग करती हैं.

Advertisement

इंडिया टुडे ने अपनी हालिया एलएसी रिपोर्टिंग में सैटेलाइट तस्वीरों का व्यापक इस्तेमाल किया, जिससे हिमालय के ऊंचे पर्वतों में उत्पन्न हुई संवेदनशील स्थिति का तथ्यात्मक खाका सामने लाया जा सके.

कोरोना पर फुल कवरेज के लि‍ए यहां क्ल‍िक करें

दुनिया भर की सरकारें हमेशा रक्षा क्षेत्र में स्पेस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करती रही हैं, लेकिन हाल के दिनों में, कमर्शियल सैटेलाइट तस्वीरों ने इस क्षेत्र में एक नया आयाम जोड़ा है. शोधकर्ता, विश्लेषक और पत्रकार अपने काम के लिए उपग्रह डेटा का इस्तेमाल कर रहे हैं. यहां उस हाई रिजॉल्यूशन तस्वीरों की दुनिया को लेकर अहम बातों का जिक्र किया जा रहा है, जिन्होंने सरहद को लेकर हमारी समझ पर खासा असर डाला.

हाई रिजॉल्यूशन सैटेलाइट तस्वीरें

सैटेलाइट तस्वीरों में रिजॉल्यूशन एक छवि में पहचाने जाने वाले छोटे आकार को दर्शाता है, मिसाल के लिए 1 मी रिजॉल्यूशन वाली सैटेलाइट तस्वीरें उन डिटेल्स को दिखाएंगी जो 1 मी से बड़े हैं. जमीन पर मौजूद वस्तुएं जो आकार में 1 मी से कम हैं वो अन्य वस्तुओं के साथ मिलकर नहीं दिखेंगी, जिससे उन्हें अलग करना असंभव है.

Advertisement

साधारणत: कम पिक्सल साइज हमें बेहतर क्वालिटी की तस्वीरें देता है. 30 सेमी से 5 मी/ पिक्सल को आम तौर पर हाई रिजॉल्यूशन तस्वीर माना जाता है, जहां विश्लेषकों के लिए जमीन पर चीजों की निर्णायक तौर पर पहचान करना आसान हो जाता है.

सरकारी स्वामित्व वाले मिलिट्री सैटेलाइट्स के पास कमर्शियल रूप से उपलब्ध सैटेलाइट तस्वीरों की तुलना में अधिक रिजॉल्यूशन है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) का अंतरिक्ष इमेजिंग और रिमोट सेंसिंग के संबंध में भारतीय सशस्त्र सेनाओं की जरुरतों का समर्थन करने के लिए खास समर्पित मिशन है. अन्यों के बीच, RISAT सीरीज मिशन रडार आधारित तकनीक का इस्तेमाल करके उच्च स्तर की टोही जानकारी उपलब्ध कराते हैं.

इसरो का कैट्रोसैट -3, तीसरी पीढ़ी का फुर्तीला उन्नत सैटेलाइट भारतीय सरकारी एजेंसियों को भी हाई रिजॉल्यूशन तस्वीरें उपलब्ध कराता है. ISRO का GAST7-A भारतीय सशस्त्र सेनाओं को समर्पित उन्नत मिलिट्री कम्युनिकेशन मुहैया कराता है.

कमर्शियल सैटेलाइट तस्वीरें

निजी क्षेत्र में, अमेरिका स्थित फर्म्स- मैक्सार टेक्नोलॉजीज, प्लैनेट लैब्स और यूरोप स्थित एयरबस हाई रिजॉल्यूशन पृथ्वी तस्वीरों के लीडिंग प्रोवाइडर्स हैं. हर दिन संपूर्ण पृथ्वी की छवि बनाने के लक्ष्य के साथ, सैन फ्रांसिस्को स्थित प्लैनेट लैब्स का दावा है कि यह किसी भी कंपनी या सरकार की तुलना में तेजी से सैटेलाइट डिजाइन, निर्मित और लॉन्च करता है.

Advertisement

साथ ही इसके लिए पतले, कम लागत वाले इलेक्ट्रॉनिक्स और दोबारा इस्तेमाल किए जा सकने वाले डिजाइन से काम लेता है. कोलोराडो स्थित मैक्सार टेक्नोलॉजीज का कहना है कि यह अंतरिक्ष फर्म हर दिन 3 मिलियन वर्ग किलोमीटर से अधिक की तस्वीरें एकत्र करती है. कंपनी अंतरिक्ष अभियानों में NASA को भी सहायता देती है.

कोरोना कमांडोज़ का हौसला बढ़ाएं और उन्हें शुक्रिया कहें...

यूरोपीय मल्टीनेशन उपक्रम, एयरबस में लगभग 50 पृथ्वी ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट सिस्टम्स हैं, जिनके पास 30 साल से अधिक का ऑर्बिट ऑपरेशन का अनुभव है. यह फर्म यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के लिए आपूर्तिकर्ता के रूप में भी काम करती है. इनके अलावा कई वितरक और हाई रिजॉल्यूशन सैटेलाइट तस्वीरों के एग्रीगेटर हैं जो लीडिंग कंपनियों से प्राप्त तस्वीरों को वितरित करते हैं.

नई तकनीक पर भी बहुत जोर है जो अंतरिक्ष इमेजिंग को सप्लीमेंट करती हैं. अमेरिका स्थित जियो-इंटेलिजेंस फर्म Hawkeye 360 ​​में रेडियो फ्रीक्वेंसी (RF) सिग्नलों की मैपिंग का इस्तेमाल मार्कर के तौर पर करता है कि कहां इन सैटेलाइट्स को फोकस रखना चाहिए. RF सिग्नल्स की एक बड़ी सीरीज को जियोलोकेट करने के लिए तीन सैटेलाइट्स को शामिल करते हुए कंपनी का अपना कमर्शियल सैटेलाइट कॉन्स्टेलेशन है.

देश-दुनिया के किस हिस्से में कितना है कोरोना का कहर? यहां क्लिक कर देखें

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement