क्या शादी के समय पीरियड्स आने से आप किसी भी रस्मो -रिवाज में भाग नहीं ले पाईं या फिर आपको रसोई में या मंदिर में जाने से रोका जाता है? अगर आप भी ऐसी समस्याओं का सामना कर रही हैं तो अब चुप्पी तोड़िए और खुलकर इस बारे में चर्चा करें. इसी मुद्दे पर 28 मई को दिल्ली स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान में 'मेन्स्ट्रुअल हाईजीन मैनेजमेंट' नाम से एक वर्कशॉप का आयोजन किया जा रहा है. जिसमें देश भर की महिलाएं इस विषय पर खुलकर अपनी-अपनी बातें सामने रखेंगी और रूढ़िवादी रवैये के खिलाफ लोगों को जागरुक किया जाएगा.
महिलाओं में माहवारी हर महीने होने वाली एक सामान्य क्रिया है. लेकिन अकसर देखा जाता है कि महिलाएं शर्म के कारण इससे जुड़ी कई समस्याओं पर खुलकर अपनी बात नहीं कह पातीं.
'जागो गांव' एनजीओ इस मु्द्दे पर कई बार केस स्टडी कर चुका है और समय-समय पर जागरुकता कार्यक्रम भी आयोजित करता रहा है. 'जागो गांव' ने बिहार के बेगूसराय और समस्तीपुर, झारखंड के धनबाद और गिरिडीह, दिल्ली के उत्तम नगर और सरिता विहार को चुना. इन इलाकों में घर-घर जाकर स्कूल ,कॉलेज, खेत-खलिहान, मंदिर और स्वयं सहायता समूह की बैठक बुलाकर पीरियड्स से जुड़ी बातों पर खुल कर चर्चा की गई.
दामोदरपुर हाई स्कूल में जागरुकता कार्यक्रम के दौरान 10वीं की छात्रा पूनम ने बताया कि हमारे स्कूल मे शौचालय नहीं है ,जब कभी पीरियड्स का समय आता है उस समय स्कूल नहीं जाती, लगभग महीने मे 6 दिन अनुपस्थित रहना पड़ता है. क्योंकि मासिक की कोई निश्चित तारीख नहीं है. जागो गांव की एक केस स्टडी के तहत हर छात्रा को साल में 40 दिन अनुपस्थित रहना पड़ता है.
दामोदरपुर गांव के वॉर्ड 5 की मुन्नी देवी बताती हैं कि उसकी लड़की की शादी थी. शादी के समय पीरियड्स आने से किसी तरह के विधि-विधान में भाग नहीं ले पाई. आज भी उसे उस पल को याद कर गुस्सा आता है.
दामोदरपुर गांव के वॉर्ड 10 की अजनाशा देवी कहती हैं कि पीरियड्स पर अजीबो-गरीब नियम हैं. रसोई और मंदिर में जाना मना और पूजा करना मना कर दिया जाता है. गिरिडीह के बरगांडा महिला आदिवासी हॉस्टल के आशा कहती हैं कि सबसे ज्यादा दिक्कत होती है की माहवारी के कपड़े को धुप मे नहीं सुखाना है. ठीक से धूप में ना सुखाए गए हल्के गीले अंडरगार्मेंट्स को पहनने से फंगल इंफ़ेक्शन का ख़तरा बढ़ जाता है जो भारतीय महिलाओं में आम सी बात मानी जाती है.
जागो गांव ने हालिया रिपोर्ट्स में पाया कि 75 फ़ीसदी महिलाएं अब भी पैड किसी भूरे लिफ़ाफ़े या काली पॉलीथीन में लपेटकर खरीदती हैं.
अनुसंधान क्षेत्र से जुड़े संगठन एसी नेलसन के ये आंकड़े भारत के लिए शर्मनाक हैं. सिंगापुर और जापान में जहां 100 फ़ीसदी, इंडोनेशिया में 88 फ़ीसदी और चीन में 64 फ़ीसदी महिलाओं को ये सुविधा प्राप्त है वहीं भारत में केवल 12 फ़ीसदी महिलाएं ही पीरियड्स के दौरान साफ-सुथरे नैपकिन का इस्तेमाल कर पाती हैं .
यहां तक कि ग्रामीण इलाकों में पीरियड्स के दौरान महिलाएं आज भी घर के सबसे गंदे कपड़े, टाट-पट्टी यहां तक की रेत और राख का इस्तेमाल कर रही हैं. कई जगह पर इन विषयों पर बातचीत करना मना है और इसे शर्मनाक माना जाता है.
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