यूपी में दलित सासंदों की नाराजगी 2019 में बीजेपी के लिए महंगी न पड़ जाए!

उत्तर प्रदेश की सियासत में दलित मतदाता किंगमेकर की भूमिका में है. सूबे का 21 फीसदी दलित मतदाता प्रदेश से लेकर देश की सत्ता का फैसला करने में अहम भूमिका निभाता रहा है.

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नाराज बताए जा रहे बीजेपी के तीनों दलित सांसद नाराज बताए जा रहे बीजेपी के तीनों दलित सांसद

कुबूल अहमद

  • नई दिल्ली,
  • 06 अप्रैल 2018,
  • अपडेटेड 2:49 PM IST

उत्तर प्रदेश में दलित समुदाय के साथ-साथ बीजेपी के दलित सांसदों की नाराजगी लगातार बढ़ती जा रही है. एससी/एसटी एक्ट में बदलाव को लेकर जहां दलित समुदाय ने सड़क पर उतरकर गुस्से का इजहार किया. वहीं एक के बाद एक तीन बीजेपी के दलित सांसदों ने अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. पार्टी के तीनों सांसद सूबे की योगी सरकार के खिलाफ बगावत का झंडा इन दिनों उठाए हुए हैं.

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यूपी में दलित किंगमेकर

उत्तर प्रदेश की सियासत में दलित मतदाता किंगमेकर की भूमिका में है. सूबे का 21 फीसदी दलित मतदाता प्रदेश से लेकर देश की सत्ता का फैसला करने में अहम भूमिका निभाता रहा है. 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी दलित मतों में सेंधमारी करके ही देश और प्रदेश की सत्ता पर काबिज हुई थी.

बीजेपी का दलित समीकरण

सूबे की 80 लोकसभा सीटों में से 17 सीटें दलित समाज के लिए आरक्षित हैं. बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में सभी 17 आरक्षित सीटों पर जीत दर्ज की थी. इसी तरह विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी कामयाब रही. सूबे की 403 विधानसभा सीटों में से 86 सीटें आरक्षित हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव में 86 आरक्षित सीटों में से 76 सीटें बीजेपी ने जीती थीं.

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आरक्षण को लेकर नाराज फूले

बहराइच लोकसभा सीट से बीजेपी सांसद सावित्री बाई फुले अपनी ही सरकार के खिलाफ बागी तेवर अख्तियार किए हुए हैं. फूले अपनी ही सरकार से नाराज होने वाली पहली सांसद हैं. सावित्री बाई फुले ने एक अप्रैल को लखनऊ में 'भारतीय संविधान और आरक्षण बचाओ रैली' किया. इस दौरान उन्होंने कहा, 'कभी कहा जा रहा है कि संविधान बदलने के लिए आए हैं. कभी कहा जा रहा है कि आरक्षण को ख़त्म करेंगे. बाबा साहेब का संविधान सुरक्षित नहीं है.' उन्होंने कहा था कि आरक्षण कोई भीख नहीं, बल्कि प्रतिनिधित्व का मामला है. अगर आरक्षण को खत्म करने का दुस्साहस किया गया तो भारत की धरती पर खून की नदियां बहेंगी.

जमीन कज्बे को लेकर छोटेलाल

छोटेलाल खरवार दूसरे दलित सांसद हैं, जिनकी नाराजगी खुलकर सामने आई है. रॉबर्ट्सगंज लोकसभा क्षेत्र से बीजेपी के सांसद हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के रवैये के खिलाफ उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर अपना दर्द बयान किया था. खरवार की चिट्ठी में यूपी प्रशासन द्वारा उनके घर पर जबरन कब्जे और उसे जंगल की मान्यता देने की शिकायत की गई है.

मोदी को लिखे पत्र में बीजेपी सांसद ने कहा था कि जिले के आला अधिकारी उनका उत्पीड़न कर रहे हैं. मामले में बीजेपी सांसद ने दो बार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की, लेकिन सीएम ने उन्हें डांटकर भगा दिया. सांसद ने पीएम से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र पांडेय और संगठन मंत्री सुनील बंसल की शिकायत की है.

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दलितों पर अत्याचार को लेकर गुस्से में अशोक दोहरे

इटावा के बीजेपी सांसद अशोक दोहरे तीसरे दलित सांसद हैं जो अपनी ही पार्टी की सरकार से नाराज हैं. 2 अप्रैल को भारत बंद को लेकर दलितों के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए जाने के मामले में अशोक दोहरे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से शिकायत की है. पीएम मोदी से की गई शिकायत में सांसद अशोक दोहरे ने कहा कि भारत बंद के बाद दलित और अनुसूचित जाति के लोगों को यूपी समेत दूसरे राज्यों में प्रदेश सरकार व स्थानीय पुलिस झूठे मुकदमें में फंसा रही है. दलितों पर अत्याचार हो रहे हैं. पुलिस निर्दोष लोगों को जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करते हुए घरों से निकालकर मार रही है. पुलिस के रवैये से अनुसूचित जाति और जनजाति के समुदाय में रोष और असुरक्षा की भावना बढ़ती जा रही है.

बीजेपी को दलितों की नाराजगी महंगी न पड़ जाए?

सूबे में दलित समुदाय के साथ-साथ दलित सांसदों की नाराजगी बीजेपी के लिए 2019 में कहीं महंगी न पड़ जाए. सूबे में दलितों की बड़ी आबादी 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के साथ थे. लेकिन अब ये पकड़ कमजोर होने लगी है. बीजेपी दलित और ओबीसी मतों के सहारे ही सत्ता पर विराजमान हुए हैं.

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उपचुनाव में दलित और ओबीसी की नाराजगी का खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा है. वहीं दूसरी ओर सपा-बसपा गठबंधन करके चुनावी मैदान में उतरने की जुगत में है. इन दोनों पार्टियों का टारगेट भी दलित-ओबीसी समुदाय के वोटबैंक है. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ट्वीट करके कहा था, 'बीजेपी सरकार की ये कैसी ‘दलित-नीति’ है कि न तो वो दलितों की मूर्तियां तोड़ने से लोगों को रोक रही है न उनकी हत्याएं करने से और ऊपर से नाम व एक्ट बदलने की भी साज़िश हो रही है. ये सब क्यों हो रहा है और किसके इशारे पर, ये बड़ा सवाल है. क्या दलितों को सरकार से मोहभंग की सज़ा दी जा रही है?

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