बच्चों के अधिकारों और उन्हें न्याय दिलाने के लिए देश के ज्यादातर राज्य संवेदनशील नहीं है. 2013 में बने पॉक्सो एक्ट के बाद स्पेशल कोर्ट तो बना दी गई लेकिन बच्चों का केस मजबूती से लड़ने और उनके खिलाफ़ अपराध करने वाले अपराधी को सज़ा दिलाने के लिए सरकारी तंत्र बेहद सुस्त और लचर है. यहां तक की खुद दिल्ली सरकार ने 11 विशेष पॉक्सो अदालतों में एक भी वकील नियुक्त नहीं किया है.
देश की राजधानी दिल्ली में ही 11 स्पेशल पॉक्सो कोर्ट हैं, लेकिन इसके बावजूद अभी तक किसी भी कोर्ट में स्पेशल पब्लिक प्रासिक्यूटर अभी तक नियुक्त नहीं किए गए हैं. ये हाल तब है जब दिल्ली की इन अदालतों में पॉक्सो एक्ट के करीब 4 हज़ार से ज्यादा मामले लंबित हैं. दिल्ली में हर रोज इस तरह के करीब 3 नए मामले दर्ज होते हैं.
आंकड़ा चौंकाने से ज्यादा डराता है, क्योंकि ये इस बात की तरफ इशारा है कि महिलाओं के बाद बच्चे सबसे सुलभ सॉफ्ट टारगेट होते जा रहे हैं. और इस पर लगाम लगाने के लिए कई आरोपियों पर केस चल रहे हैं, उनको कड़ी सज़ा दिलानी बेहद जरुरी है. स्पेशल पब्लिक प्रासिक्यूटर नियुक्त कराने के लिए हाई कोर्ट मे याचिका लगाने वाले गौरव कहते हैं कि ये उस पार्टी की सरकार में हो रहा है, जिसके नेता चुनाव होने से पहले बच्चों के अधिकारों को लेकर लम्बा चौड़ा भाषण देते थे.
कड़ी सज़ा दिलाने से पहले केस का ट्रायल जल्द से जल्द पूरा होना जरुरी है. दिल्ली सरकार में जो वकील बाकी कोर्ट के मामलों मे पेश होते हैं, उन्ही को पॉक्सो कोर्ट में भी भेज दिया जाता है. पहले से ही दूसरे मामलों में उलझे और व्यस्त वकील न इन पॉक्सो केस की तैयारी ढंग से कर पाते हैं और न ही कोर्ट मे उस मजबूती और संवेदनशीलता से रख पाते हैं, जिसकी ज़रूरत बच्चों को न्याय दिलाने के लिए बेहद जरुरी है.
आपको ये जानकार और ज्यादा हैरत हो सकती है कि दिल्ली की तरह ही बाहरी राज्यों की सरकारों का भी यही हाल है. हाई कोर्ट मे आए एक हलफनामे से पता चलता है कि हिमाचल प्रदेश, पंजाब, तमिलनाडु, गुजरात, त्रिपुरा जैसे राज्यों की सरकारों ने भी पॉक्सो कोर्ट मे कोई स्पेशल पब्लिक प्रासीक्यूटर नियुक्त नहीं किया है.
परवेज़ सागर / पूनम शर्मा