धरती का नर्क बना सीरिया, फिर आसमान से बरसी मौत!

सीरिया से बाहर आई कुछ तस्वीरों ने पूरी दुनिया का कलेजा छलनी कर दिया है. चार लाख की आबादी वाले एक शहर पर अपनी ही हुकूमत बम पर बम बरसा रही है. आसमान से बरसते इन बमों को बरसाने वालों के लिए इस बात के कोई मतलब या मायने नहीं है कि बम किनके सीने पर फट रहे हैं. मरने वाले अपने ही बेगुनाह लोग हैं, बेबस औरतें या मासूम बच्चे. उन्हें कोई फिक्र नहीं. क्योंकि सारी लड़ाई कुर्सी की है. ताकत की है. सत्ता की है.

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सीरिया के घोउटा शहर में इस वक्त हर तरफ मातम पसरा हुआ है सीरिया के घोउटा शहर में इस वक्त हर तरफ मातम पसरा हुआ है

परवेज़ सागर / शम्स ताहिर खान

  • नई दिल्ली,
  • 02 मार्च 2018,
  • अपडेटेड 3:47 PM IST

सीरिया से बाहर आई कुछ तस्वीरों ने पूरी दुनिया का कलेजा छलनी कर दिया है. चार लाख की आबादी वाले एक शहर पर अपनी ही हुकूमत बम पर बम बरसा रही है. आसमान से बरसते इन बमों को बरसाने वालों के लिए इस बात के कोई मतलब या मायने नहीं है कि बम किनके सीने पर फट रहे हैं. मरने वाले अपने ही बेगुनाह लोग हैं, बेबस औरतें या मासूम बच्चे. उन्हें कोई फिक्र नहीं. क्योंकि सारी लड़ाई कुर्सी की है. ताकत की है. सत्ता की है.

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घोउटा शहर पर बरसी मौत

सीरिया के घोउटा शहर की आबादी चार लाख है. इस शहर पर पांच दिन में 1146 बम गिराए गए हैं. धमाके में साढ़े पांच सौ शहरियों की मौत हो चुकी है. मरने वालों में 130 बच्चे भी शामिल हैं. घोउटा शहर मलबे में तब्दील हो चुका है. इसे सीरिय़ा का सबसे नया ज़ख्म कहा जा सकता है.

मासूम बच्चों को मिली मौत

भला कोई अपने ही शहर के सीने पर बम कैसे बरसा सरता है? जबकि उसे पता है कि बारूद की आंखों पर पट्टी बंधी होती है. वो फटते वक्त ये नहीं देखती कि किसके सीने पर फट रही है. वो फटने वक्त ये नहीं सुनती के धमाकों के शोर में मासूम किलकारिय़ां भी घुट रही हैं. पर क्या करें सत्ता, सियासत और ताकत ने ही जब अपनी आंखें मूंद ऱखी हों तो अंधी बारूद से से शिकवा. सीरिया फिलहाल मौत के इन्हीं अंधे रास्तों पर है.

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हर तरफ किलकारियां और चीख पुकार

न जाने कितने मासूम बच्चों की किलकारियां सीरिया से पुकार रही हैं. ये कह रही है कि जिन्हें हमारा मुहाफिज़ होना चाहिए. जिन पर हमारी जिम्मेदारी फर्ज है, वही हमें घेर कर आसमान से मौत बरसा रहे हैं. तख्त की जंग में इंसानी लहू में उनकी कुर्सी के लिए ऑक्सीज़न का काम कर रही है.

घोउटा में जाकर छिपे आतंकी

राजधानी दमिश्क के नज़दीक घोउटा में विद्रोहियों और आतंकी संगठनों ने आम लोगों की बस्ती का रुख किया और उनके बीच जाकर छुप गए. बस फिर क्या था, सीरिया की सत्ता पर काबिज सरकार और उसके दोस्त मुल्क रूस ने मिल कर उन्हीं बस्तियों पर आसमान से बमों की झड़ी लगा दी. विद्रोहियों और आतंकवादियों का पता नहीं पर महज पांच दिन में साढ़े पांच सौ शहरी मारे गए. इनमें करीब 130 मासूम बच्चे भी थे. इन हमले में मारे गए मासूम बच्चों के साथ-साथ महिलाओं की भी बड़ी तादाद है. करीब ढाई हज़ार से ज़्यादा लोग घायल पड़े हैं. मगर वो भी इलाज न मिलने से धीरे धीरे दम तोड़ रहे हैं.

युद्ध विराम की अनदेखी कर बरसाए बम

ये बमबारी भी तब हो रही है जबकि संयुक्त राष्ट्र ने 30 दिन के सीज़ फायर यानी युद्ध विराम पर सर्वसम्मति से मंज़ूरी दे रखी है. रूस और सीरियाई राष्ट्रपति असद की सेना के मौजूदा हमले को अब तक का सबसे भीषण हमला माना जा रहा है. अब तक सेना से सीधी-सीधी लड़ाई कर रहे विद्रोही और आईएसआईएस आतंकी अब आम लोगों को अपनी ढाल बना रहे हैं. लिहाज़ा घोउटा को निशाना बनाकर असद सरकार विद्रोहियों और आतंकियों को सरेंडर करने को मजबूर करना चाहती है.

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एक हजार से ज्यादा आम लोगों की मौत

पिछले सात साल से गृहयुद्ध की आग में जल रहे सीरिया में घोउटा ही वो शहर है, जो अब विद्रोहियों का आखिरी गढ़ बना हुआ है. लिहाज़ा मुल्क से विद्रोहियों का पूरी तरह से खात्मा करने के लिए असद की सेना ने कोहराम मचा रखा है. इस संघर्ष में पिछले तीन महीनों में करीब 1000 से ज़्यादा आम लोग मारे गए हैं.

खंडहर बना शहर

कुल चार लाख की आबादी वाले इस शहर में इतने बम बरसाए गए हैं कि ज़िंदगी पूरी तरह पटरी से उतर चुकी है. हर तरफ तबाही, टूटी इमारतें, खंडहर मकान, वीरान बाजार, सुनवृसान सड़कें और जगह-जगह अस्पतालों में मौत से जूझते लोग ही नज़र आ रहे हैं. बीमार लोगों को भी शहर के बाहर जाने पर पाबंदी है.

ज़िंदगी मौत से भी बदतर

सेना ने घोउटा को चारों तरफ से घेर रखा है. जिसके चलते खाना, राहत और किसी भी तरह की सप्लाई पर रोक है. नतीजा ये है कि खाने की कीमतें आसमान पर पहुंच गई हैं. हमले में घायल लोगों को दवाएं तक मय्यसर नहीं है. कुल मिलाकर यहां ज़िंदगी मौत से भी बदतर है.

जाने कैसे गुज़ार दी मैंने,

ज़िंदा होता तो मर गया होता.

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