रियो ओलंपिक में पीवी सिंधु का सिल्वर मेडल लेना और भारतीय हॉकी टीम का क्वार्टर फाइनल में पहुंचना भारतीय खेल प्रेमियों के लिए यादगार रहा. पिछले कुछ समय में बैडमिंटन और हॉकी में भारतीय खिलाड़ियों के खेल के स्तर में काफी सुधार देखने को मिला है. इनके पीछे खिलाड़ियों की कड़ी मेहनत के अलावा उनके कोच रहे, जिनकी देखरेख में खिलाड़ियों ने अपने हुनर को तराशा है. पुलेला गोपीचंद और रोलेंट ऑल्टमेन को सबसे सफल कोच कहा जाए तो गलत नहीं होगा.
गोपीचंद और ऑल्टमेन का जवाब नहीं
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि गोपीचंद और ऑल्टमेन सबसे सफल कोच हैं. इनकी देखरेख में खिलाड़ियों में खूब कमाल दिखाया है. ऐसे में सवाल उठना लाजमी है, आखिर क्यों गोपीचंद और ऑल्टमेन सफल कोच हैं और इनकी सफलता के पीछे का राज क्या है? दोनों के बीच सबसे बड़ी समानता ये है कि दोनों बड़े अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी रहे चुके हैं और दोनों अपने-अपने खेल में कई बड़े टूर्नामेंट जीत चुके हैं. गोपीचंद ने साल 2001 में ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन का खिताब जीता. वहीं ऑल्टमेन लंबे समय तक दुनिया की सबसे मजबूत हॉकी टीम हॉलैंड की टीम का अहम हिस्सा रहे. ऑल्टमेन को कोचिंग का अच्छा खासा अनुभव रहा है. वो कई टीमों के हाई पर्फोर्मेंस डॉयरेक्टर रहे. दुनिया की बड़ी-बड़ी टीमों की कोचिंग कर चुके हैं.गोपीचंद की सफलता के पीछे का राज
बैडमिंटन की दुनिया में पुलेला गोपीचंद का नाम एक सफल खिलाड़ी और एक सफल कोच के तौर पर लिया जाता है. गोपी की निगरानी में सायना नेहवाल, पीवी सिंधु, पी कश्यप, के श्रीकांत जैसे खिलाड़ियों ने अपने प्रदर्शन से खूब धूम मचाई है. पूर्व अंतरराष्ट्रीय बैडमिंटन खिलाड़ी मंजूशाह कंवर कहती हैं कि 'गोपी की सफलता के पीछे सबसे बड़ी वजह है उनका अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी होना है. उन्हें अच्छी तरह से पता है कि एक स्तर पर कैसे पहुंचा जाता है फिर उस स्तर से कैसे आगे बढ़ा जाता है. खिलाड़ी किन परेशानियों से गुजरते हैं, उनकी जरूरतें क्या हैं, गोपी बहुत अच्छी तरह से छोटी-छोटी चीजों को समझते हैं. इसके अलावा मंजूशाह कहती हैं कि 'गोपी के पास विरोधी खिलाड़ी के खिलाफ रणनीति बनाने में महारत हासिल है. गोपीचंद बेहद खुशकिस्मत कोच हैं. जिन्हें सरकार से पूरा स्पोर्ट मिला है. मंजूशाह कहती हैं कि 'ओलंपिक जैसे बड़े स्तर पर सफलता के लिए ऐसा कोच होना चाहिए, जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलने का अच्छा खासा अनुभव रहा हो और मॉर्डन खेल ही हर बारीकीयों को अच्छी तरह से समझता हो. गोपी की कोचिंग की वजह से ही आज भारत बैडमिंटन में बड़ी ताकत के तौर पर सामने आया है.
रोलेंट ऑल्टमेन की सफलता का राज
रोलेंट ऑल्टमेन ने जब भारतीय हॉकी टीम का हाई पर्फोर्मेंस डॉयरेक्टर बनाया गया तब भारतीय हॉकी बेहद ही खराब दौर से गुजर रही थी. आठ बार ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतने वाली भारतीय हॉकी बीजिंग ओलंपिक के लिए तो क्वालिफाइ नहीं कर सकी और लंदन ओलंपिक में भारतीय टीम सबसे निचले स्थान पर रही. खिलाड़ी और फैंस पूरी तरह से मायूस थे. हर किसी ने उम्मीद ही छोड़ दी थी कि कभी भारतीय हॉकी के सुनहरे दिन वापस लौटेंगे. लेकिन मजबूत इरादे वाले ऑल्टमेन ने भारतीय हॉकी की तस्वीर ही बदल कर रख दी. भारतीय हॉकी के इतिहासकार अरुमुगम का कहना है कि 'ऑल्टमेन की सफलता के पीछे सबसे बड़ी वजह उनका चमत्कारी व्यवाहर है. उन्हें अच्छी तरह से मालूम है कि कैसे खिलाड़ियों और फेडरेशन के साथ तालमेल बिठाना है. चूंकी वो पहले पाकिस्तान हॉकी टीम के कोच रहे चुके हैं. इसलिए उन्हें भारतीय कलचर की अच्छी समझ है.'
भारतीय हॉकी टीम ने की बड़े टूर्नामेंट जीते
ओल्टमेन ने भारतीय हॉकी में कई बड़े बदलाव किए. हॉकी इतिहासकार अरुमुगम ने बताया कि 'ऑल्टमेन को जल्दी ही ये समझ आ गया कि एशियाई हॉकी से भारतीय टीम को सफलता नहीं मिलेगी. उन्होंने यूरोपियन शैली में हॉकी खेलनी होगी. इसके लिए सबसे पहले उन्होंने खिलाड़ियों की फिटनेस पर ध्यान दिया. जिससे मैदान पर तेजतर्रा हॉकी खेली जा सके. इसके अलावा ऑल्टमेन ने देश के सबसे टैलेंटेड खिलाड़ियों का पूल बनाया. अरुमुगम कहते हैं कि साल में नौ महीने सभी खिलाड़ियों को ऑल्टमेन के दिशा निर्देशों का पालन करना होता है. पिछले कुछ सालों में भारतीय हॉकी टीम ने कई बड़े टूर्नामेंट जीते हैं और टीम रियो ओलंपिक के क्वार्टऱ फाइनल तक पहुंची. हाल ही में जूनियर भारतीय हॉकी टीम ने वर्ल्ड कप के खिताब पर कब्जा जमाया, इसमें रोलेट ऑल्टमेन की भूमिका बेहद अहम रही. आज भारतीय हॉकी टीम 13 स्थान से आकर छठे नंबर पर पहुंच गई है. लेकिन अपने सुनहरे इतिहास को वापस पाने के लिए उसे उतनी ही मेहनत करनी होगी. जितनी उसे छठे नंबर तक पहुंचने के लिए की है.
अमित रायकवार