विदेशी कोच के विरोधी थे दिग्गज हॉकी कप्तान मोहम्मद शाहिद

80 के दशक में अपनी ड्रिबलिंग की कला से हॉकी की दुनिया में धूम मचाने वाले दिग्गज मोहम्मद शाहिद को इसी दम पर महानतम खिलाड़ियों में शुमार किया गया. वाराणसी के रहने वाले शाहिद ने सत्तर के दशक के आखिर में और 80 के दशक की शुरुआत में अपनी स्टिक की जादूगरी से दुनिया भर को मुरीद बनाया.

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मोहम्मद शाहिद मोहम्मद शाहिद

अभिजीत श्रीवास्तव

  • नई दिल्ली,
  • 20 जुलाई 2016,
  • अपडेटेड 8:07 PM IST

80 के दशक में अपनी ड्रिबलिंग की कला से हॉकी की दुनिया में धूम मचाने वाले दिग्गज मोहम्मद शाहिद को इसी दम पर महानतम खिलाड़ियों में शुमार किया गया. वाराणसी के रहने वाले शाहिद ने सत्तर के दशक के आखिर में और 80 के दशक की शुरुआत में अपनी स्टिक की जादूगरी से दुनिया भर को मुरीद बनाया. उनमें दुनिया के बेहतरीन डिफेंस को भेदने का माद्दा हुआ करता था.

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विरोधी टीमें जहां मैदान पर उनसे खौफ खाती थी, वहीं मैदान के बाहर वह बेहद विनम्र और मृदुभाषी थे जो हमेशा साथी खिलाड़ियों की मदद को तत्पर रहते.

वाराणसी में 14 अप्रैल 1960 को जन्मे मोहम्मद शाहिद ने 19 बरस की उम्र में फ्रांस के खिलाफ जूनियर वर्ल्ड कप के जरिए 1979 में अंतरराष्ट्रीय पटल पर पदार्पण किया. वह 1980 में सीनियर टीम में आए जब वासुदेवन भास्करन की कप्तानी में भारत ने कुआलालम्पुर में चार देशों का टूर्नामेंट खेला.

आक्रामक हॉकी खेलते थे शाहिद
शाहिद और जफर इकबाल की आक्रामक जोड़ी उस समय मशहूर थी. इकबाल ने उनके निधन के बाद कहा, ‘उनके जैसा खिलाड़ी मैंने अपने जीवन में नहीं देखा. मैदान पर हमारा तालमेल शानदार हुआ करता था. उसकी कमी खलेगी.’ शाहिद को 1980 में कराची में चैम्पियंस ट्रॉफी में बेस्ट फारवर्ड का पुरस्कार मिला. वह मास्को ओलंपिक 1980 में आठवां और आखिरी गोल्ड मेडल जीतने वाली भारतीय टीम के सदस्य थे. इसके अलावा उन्होंने 1982 दिल्ली एशियाई खेलों में सिल्वर और 1986 में ब्रॉन्ज पदक जीता. वह 1986 की ऑल स्टार एशियाई टीम के भी सदस्य रहे. शाहिद उस भारतीय टीम का हिस्सा थे जिसमें जफर इकबाल, मर्विन फर्नांडिस, चरणजीत कुमार, एम एम सोमैया, सुरिंदर सिंह सोढ़ी और एम के कौशिक जैसे धुरंधर थे लेकिन उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई. 1980-81 में अर्जुल पुरस्कार और 1986 में पद्मश्री से नवाजा गया.

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क्यों हॉकी की चमक पड़ी फीकी?
शाहिद विदेशी कोचों के धुर विरोधी थे और हाल ही में एक हिन्दी खेल पत्रिका में अपने कॉलम में उन्होंने लिखा था कि रणनीतियों की गुलाम होने के कारण भारतीय हॉकी का गौरव खोता जा रहा है. उन्होंने लिखा था, ‘यदि ये विदेशी कोच इतने ही अच्छे हैं तो अपने देश के कोच क्यों नहीं है. हम आठ बार के ओलंपिक चैम्पियन है और हमें इस पर गर्व है लेकिन मौजूदा हालात में हमें रियो ओलंपिक में किसी पदक की उम्मीद नहीं करनी चाहिए.’ वाराणसी में भारतीय रेलवे में खेल अधिकारी शाहिद के आखिरी कुछ दिन मेदांता अस्पताल के आईसीयू में गुजरे जहां उन्हें पिछले महीने भर्ती कराया गया था.

मैदान के भीतर और बाहर जुझारू रहे शाहिद अंतिम समय तक मौत से भी लड़ते रहे लेकिन जिंदगी की यह लड़ाई बीमारी से हार गए. उनके परिवार में पत्नी परवीन शाहिद और बेटा मोहम्मद सैफ, बेटी हीना शाहिद है.

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