साहित्य का राष्ट्रधर्म: 'राष्ट्र शब्द का इस्तेमाल किसी पुलिसवाले की तरह नहीं करना चाहिए'

हिन्दी का सबसे बड़ा महोत्सव साहित्य आजतक शुरू हो गया है. ये कार्यक्रम दिल्ली के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में तीन दिन तक चलेगा, यहां हिंदी के कई जाने माने कवि-लेखक हिस्सा ले रहे हैं.

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साहित्य का राष्ट्रधर्म सेशन के दौरान नंदकिशोर पांडेय, ममता कालिया और अखिलेश साहित्य का राष्ट्रधर्म सेशन के दौरान नंदकिशोर पांडेय, ममता कालिया और अखिलेश

मोहित ग्रोवर

  • नई दिल्ली,
  • 16 नवंबर 2018,
  • अपडेटेड 1:59 PM IST

आजतक के खास कार्यक्रम 'साहित्य आजतक' के मंच पर देश के जाने-माने लेखकों ने अपने विचारों को दुनिया के सामने रखा. साहित्य का राष्ट्रधर्म सेशन में नंद किशोर पांडेय, ममता कालिया और अखिलेश जैसे वरिष्ठ लेखक शामिल हुए. चर्चा के दौरान 'बेघर', 'नरक-दर-नरक' जैसे उपन्यास लिखने वालीं वरिष्ठ लेखिका ममता कालिया ने राष्ट्रवाद के मुद्दे पर खुलकर बात की.

उन्होंने कहा कि पुराने जमाने के लेखकों की रचनाओं में देशभक्ति कूट-कूट कर भरी रहती थी, क्योंकि ये तब की मांग थी. तब सभी का मकसद अंग्रेजों को भगाना था, लेकिन अब देश आजाद है. देशभक्ति को अब हम झंडे की तरह उठाकर नहीं चल सकते हैं, कुछ गलत होने का विरोध करना भी राष्ट्रभक्ति ही कहलाता है.

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उन्होंने कहा कि आज देश में कई समस्याएं हैं, इनमें सबसे बड़ी समस्या है कि भीड़ आज न्याय खुद कर रही है. लेखक को इनके प्रति भी सचेत होना पड़ेगा, लेखक परिवर्तन करने वाली भूमिका में होता है. इस बारे में मनोज पांडे ने 'लालच के बारे में खजाना' में कहा है.

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ममता ने बताया कि नागार्जुन ने कहा था, ''जली ठूँठ पर बैठकर गई कोकिला कूक बाल नबाँका कर सकी शासन की बंदूक''. उन्होंने कहा कि राष्ट्र शब्द का इस्तेमाल किसी पुलिसवाले की तरह नहीं करना चाहिए.

बता दें कि इस सेशन में ममता कालिया के अलावा नंद किशोर पांडेय और अखिलेश जैसे बड़े लेखक भी शामिल हुए. इन लेखकों ने भी देश में राष्ट्रवाद, आज के साहित्य, लेखकों के बारे में बात है.

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