साधना ने फूंक दिया है बिगुल, सपा में फिर मचेगा घमासान!

चुनावों से पहले यह कहा जा रहा था कि अखिलेश हमेशा से ही साधना यादव, प्रतीक यादव व अपर्णा यादव का राजनीति में आने पर विरोध करते रहे हैं. सपा परिवार में झगड़े का यह एक मुख्य कारण था.

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फ्रंटफुट पर खेलेंगी साधना यादव! फ्रंटफुट पर खेलेंगी साधना यादव!

संदीप कुमार सिंह

  • नई दिल्ली,
  • 07 मार्च 2017,
  • अपडेटेड 3:49 PM IST

उत्तर प्रदेश चुनावों से पहले से चल रहा समाजवादी पार्टी और परिवार में घमासान का जिन्न एक बार फिर अपनी बोतल से बाहर आ सकता है. सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव की दूसरी पत्नी और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सौतेली मां साधना यादव ने बयान दिया है कि वह अब फ्रंटफुट पर काम करेंगी और खुल कर अपना पक्ष रखेंगी. इस बयान से एक बार फिर सपा परिवार में जंग तेज हो सकती है.

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क्या हैं बयान के मायने?
चुनावों से पहले यह कहा जा रहा था कि अखिलेश हमेशा से ही साधना यादव, प्रतीक यादव व अपर्णा यादव का राजनीति में आने पर विरोध करते रहे हैं. सपा परिवार में झगड़े का यह एक मुख्य कारण था. लेकिन मुलायम सिंह यादव, शिवपाल सिंह यादव के दबाव में अखिलेश यादव को अपर्णा यादव को टिकट देना पड़ा था, अपर्णा यादव ने लखनऊ कैंट से चुनाव लड़ा है. अगर प्रतीक भी राजनीति भी आते हैं, तो एक बार फिर अखिलेश का विरोध बढ़ सकता है.

प्रतीक आए राजनीति में तो !
साधना ने अपने बयान में कहा कि वह चाहती हैं कि प्रतीक यादव राजनीति में आएं. गौरतलब है कि प्रतीक अभी तक राजनीति से दूर रहे हैं, वह अपने जिम को ज्यादा तवज्जो देते आएं हैं. एक ओर जहां अपर्णा यादव विधानसभा का चुनाव लड़कर राज्य की राजनीति में आ गई हैं, तो वहीं साधना यादव प्रतीक यादव को भी राजनीति में लाकर अपने परिवार के दखल को ओर बढ़ाना चाहती हैं.

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क्या प्रतीक को स्वीकार करेंगे सपाई?
प्रतीक यादव मुलायम सिंह यादव की दूसरी पत्नी साधना यादव के बेटे हैं. अगर प्रतीक राजनीति में आते हैं, तो सबसे बड़ा सवाल यह खड़ा होगा कि क्या समाजवादी पार्टी और मुलायम सिंह यादव के समर्थक अखिलेश यादव की तरह ही उन्हें स्वीकार करेंगे. सपाइयों ने अखिलेश को तो अपने दिल में जगह दी है, लेकिन क्या वही समर्थन प्रतीक को भी मिल पाएगा. प्रतीक कभी भी किसी राजनीतिक कार्यक्रम में दिखाई नहीं दिए हैं.

शिवपाल का साथ, रामगोपाल पर निशाना !
साधना गुप्ता ने अपने बयान में शिवपाल यादव का समर्थन किया है. उनका कहना है कि इस पूरे झगड़े में शिवपाल की गलती नहीं है. यह साफ दर्शाता है कि अगर भविष्य में पार्टी में साधना गुप्ता का दबदबा बढ़ता है, तो एक बार फिर शिवपाल यादव की वही साख वापस लौटेगी जो मुलायम सिंह यादव के समय थी. साधना का यह कहना कि अखिलेश को गुमराह किया गया है, साफ है कि उनका निशाना रामगोपाल यादव की ओर है. रामगोपाल यादव झगड़े के दौरान लगातार अखिलेश के साथ रहे हैं, उन्हें कई बार पार्टी से भी निकाला गया था. रामगोपाल ने ही राष्ट्रीय सम्मेलन बुलाकर चुनाव से पहले अखिलेश यादव को सपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनवाया था.

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सास ने अपनाया बहू का तरीका !
साधना यादव का कहना है कि वह समाजसेवा का काम शुरू करेंगी और लोगों की सहायता करेंगी. इससे पहले उनकी बहू अपर्णा यादव ने भी राजनीति में एंट्री से पहले समाजसेवा के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई थी और उसके बाद अब वह चुनावी मैदान में आईं हैं. मतलब साफ है कि साधना यादव अपनी बहू की तरह ही पहले खुद को एक चेहरे के तौर पर पेश करना चाहती हैं, उसके बाद राजनीति में एंट्री करना चाहती हैं.

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