आरएसएस का मिशन यूपी शुरू

आरएसएस कितना भी इनकार करे, लेकिन उत्तर प्रदेश में बीजेपी को मजबूत करने के लिए आरएसएस और उसके सहयोगी संगठनों ने कस ली है कमर.

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आशीष मिश्र

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  • 27 अक्टूबर 2014,
  • अपडेटेड 11:34 AM IST

लखनऊ के जनेश्वर मिश्र पार्क में पिछले दिनों सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी (सपा) का तीन दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ था. इस दौरान यूपी के नवनियुक्त राज्यपाल राम नाईक और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) निशाने पर रहे. अधिवेशन में पारित राजनैतिक और आर्थिक प्रस्ताव में राज्यपाल के मुख्यमंत्री के रूप में काम करने के तौर-तरीकों पर आपत्ति जताई गई. प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान सपा के राष्ट्रीय महासचिव किरणमय नंदा ने भरे मंच से आरएसएस को आतंकी संगठन करार दिया.

सपा का अधिवेशन खत्म होने के चार दिन बाद 14 अक्तूबर को संघ के केंद्रीय कार्यकारिणी मंडल की बैठक के सिलसिले में सरसंघ चालक मोहन भागवत लखनऊ पहुंचे और राज्यपाल राम नाईक के साथ रात का भोजन किया. सपा के आरोपों के बीच नाईक के साथ डेढ़ घंटा बिताकर भागवत ने यह जाहिर कर दिया कि संघ प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के अगले 'मिशन' के लिए कमर कस चुका है.

यह पहला मौका था, जब लखनऊ में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक आयोजित हुई. निराला नगर के सरस्वती कुंज में 17 अक्तूबर से शुरू हुई तीन दिवसीय कार्यकारी मंडल की बैठक में मोहन भागवत, सरकार्यवाह सुरेश 'भैया जी' जोशी, सह सरकार्यवाह सुरेश सोनी, दत्तात्रेय होसबाले समेत देशभर से आए 390 पदाधिकारी मौजूद थे. लेकिन पहले दिन बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की मौजूदगी ने पार्टी के अंदरूनी क्रियाकलापों में संघ के बढ़ रहे हस्तक्षेप की पुष्टि कर दी. हालांकि सरकार्यवाह सुरेश जोशी कहते हैं, ''बीजेपी या किसी भी पार्टी के लिए जमीन तैयार करना हमारा काम नहीं है. संघ तो सिर्फ जनजागरण करता है. ''

बीजेपी की नजर अब 2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव पर है और संघ तथा उसके सहयोगी संगठन इस काम में पार्टी की मदद कर रहे हैं. संघ और उसके सहयोगी संगठनों ने यूपी में अपनी गतिविधियां तेज कर दी हैं. संघ की सक्रियता देखकर सपा भी सतर्क हो गई है. सपा के प्रदेश प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी कहते हैं, ''हम यूपी को आरएसएस की प्रयोगशाला नहीं बनने देंगे. ''
लखनऊ में तीन दिन तक चली बैठक में कार्यकारी मंडल ने कोई प्रस्ताव तो नहीं पारित किया, लेकिन आतंकवाद समेत विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा हुई.

मंदिर मुद्दे पर नरमी
पिछले वर्ष अयोध्या में चौरासी कोसी परिक्रमा का आह्वान कर विश्व हिंदू परिषद ने पूरे माहौल को गरमा दिया था, लेकिन अब बदली परिस्थितियों में संघ राम मंदिर मुद्दे पर अपना नरम रवैया जाहिर कर रहा है. केंद्र में बीजेपी सरकार बनने के बाद संघ ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहता, जिससे किसी भी रूप में नरेंद्र मोदी के पक्ष में बना माहौल अस्थिर हो. इस बार संघ की बैठक में लव जेहाद शब्द का प्रयोग नहीं हुआ, लेकिन धर्मांतरण जैसे मुद्दे पर चिंता जाहिर की गई. जोशी कहते हैं, ''संघ लव जेहाद को सांप्रदायिक नहीं, बल्कि सामाजिक और प्रशासनिक मुद्दा मानता है. ''

(बैठक में पहले दिन अमित शाह भी मौजूद रहे)

प्रचारकों के सहारे बीजेपी
बीजेपी के भीतर पूर्णकालिक प्रचारकों की संख्या में हो रहा इजाफा पार्टी पर संघ के बढ़ते प्रभाव की ओर इशारा है. बैठक के दौरान संघ के वरिष्ठ नेताओं ने आरएसएस और बीजेपी के बीच समन्वय का जिम्मा सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल शर्मा को सौंपने पर अपनी मुहर लगा दी. बीजेपी ने यूपी में संघ से जुड़े नेताओं को अहम जिम्मेदारी देकर (देखें बॉक्स) विधानसभा चुनाव के लिए कमर कस ली है. पिछले कुछ महीनों के दौरान यूपी में प्रांत स्तर पर भी संघ के प्रचारकों को पार्टी की कमान सौंपी गई है. संघ के प्रचारक रहे चंद्रशेखर को काशी, भवानी सिंह को बरेली और रत्नाकर को झांसी का क्षेत्रीय संगठन मंत्री बनाया गया है. पश्चिमी यूपी की जिम्मेदारी संभाल रहे प्रद्युम्न कुमार समेत आठ प्रांतों में से आधे पर संघ प्रचारक काबिज हैं.

'कैंपस कनेक्शन' पर जोर
नौजवानों के बीच पकड़ बनाने के लिए संघ ने अपना मुख्य फोकस आइआइटी, आइआइएम और मेडिकल कॉलेज जैसे संस्थानों पर रखने की रणनीति बनाई है. संघ से जुड़े पदाधिकारी कहते हैं, ''यूपी में अखिलेश यादव की लोकप्रिय युवा नेता की छवि है. इससे निबटने के लिए संघ के सहयोगी संगठनों ने युवाओं के बीच लोकप्रिय कार्यक्रमों की शुरुआत की है. '' संघ से जुड़ी इकाई स्वदेशी जागरण मंच ने 25 सितंबर को पंडित दीन दयाल उपाध्याय के 98वें जन्मदिवस पर पहली बार बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में 'एकात्म मानवता' विषय पर बड़ा सेमिनार किया. इलाहाबाद, गोरखपुर और जौनपुर विश्वविद्यालयों में भी एक हफ्ते के भीतर ऐसा ही कार्यक्रम आयोजित किया गया.

'हिंदू मित्र' से बीएसपी को चोट
संघ की सबसे बड़ी चिंता लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मिले दलित समर्थन को बरकरार रखने की है. 2017 के विधानसभा चुनाव में मायावती दलितों की बड़ी झंडाबरदार के रूप में सामने होंगी. संघ को इसकी काट चाहिए. दिल्ली में पिछले दिनों एक किताब के विमोचन समारोह में दलितों के लिए आरक्षण की वकालत कर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने संघ के रुख में बदलाव का संकेत दिया था. यह पहली बार था, जब संघ ने आरक्षण का खुलकर समर्थन किया. विहिप ने दीपावली से 'हिंदू परिवार मित्र' योजना की शुरुआत की है. विहिप के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुरेंद्र जैन कहते हैं, ''इस कार्यक्रम का मकसद राजनैतिक नहीं, बल्कि सामाजिक विषमता की खाई पाटना है. '' दलित नेता और आंबेडकर महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालजी निर्मल कहते हैं, ''यूपी में दलितों को लुभाने के लिए संघ ने पूरी ताकत लगा दी है. ''
यह कहना गलत नहीं होगा कि यूपी में 2017 में होने जा रहे विधानसभा चुनाव से पहले का समय बीजेपी और संघ की मिलीजुली रणनीति का गवाह बनेगा. महाराष्ट्र और हरियाणा में जोरदार प्रदर्शन के बाद अब यूपी ही बीजेपी का अगला लक्ष्य है. यूपी की राजनीति में एक नई जोर-आजमाइश की शुरुआत होने वाली है.   


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