रमन सिंह के 'दमन अभियान' का माकूल जवाब है ये पराजय !

तीन बार मुख्यमंत्री रहे रमन सिंह से आखिर जनता इतना क्यों झल्ला गई? रमन सिंह की नाक के नीचे गुस्सा उबलता रहा और उन्हें इसकी महक तक नहीं लगेगी?

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पुलिस कर्मियों के परिजन आंदोलनरत पुलिस कर्मियों के परिजन आंदोलनरत

संध्या द्विवेदी / मंजीत ठाकुर

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  • 12 दिसंबर 2018,
  • अपडेटेड 8:48 PM IST

छत्तीसगढ़ में रमन सिंह की नैय्या डगमगा रही है. इसका अंदाजा खुद पीएम नरेंद्र मोदी को भी था. यही वजह है कि 'आयुष्मान' जैसी महत्वकांक्षी योजना की घोषणा करने नरेंद्र मोदी बस्तर पहुंच गए. लेकिन इतनी बुरी हार होगी, इसका अंदाजा ना राजनीतिक विश्लेषकों को था और न भाजपा के आलाकमानों को. तीन बार मुख्यमंत्री रहे रमन सिंह से आखिर जनता इनता क्यों झल्ला गई? रमन सिंह की नाक के नीचे गुस्सा उबलता रहा और उन्हें इसकी महक तक नहीं लगेगी? दरअसल रमन सिंह सरकार राज्य में पिछले एक साल से पनप रहे विरोध का विश्लेषण करने की जगह उसका दमन कर उसे शांत किया. सरकारी डंडे से कुचले गए गुस्से की प्रतिक्रिया राज्य के नतीजे के रूप में सामने आई.

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इन आंदोलनों को कुचलकर रमन सिंह सरकार ने खोदा खुद के लिए गड्ढा

1-आंगनबाड़ी आंदोलन- पांच मार्च से शुरू हुआ आंगन बाड़ी आंदोलन 15 अप्रैल तक चलता रहा. सरकार ने नहीं सुनी तो राजाधानी रायपुर के ईदगाह भट्ठे में आंगनबाड़ी कर्मचारियों ने इकट्ठे होकर आमरण अनशन शुरू किया. लगा सरकार कुछ करेगी. लेकिन सरकार ने आंदोलन को जबरन दबाने की कोशिश की. इतना ही नहीं बल्कि सौ से आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और 20 से ज्यादा सहायिकाओं को बर्खास्त भी कर दिया. आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को इतना प्रताड़ित किया गया कि कइयों ने माफीनाम लिखकर प्रशासन को जमा किए और बिना किसी शर्त दोबारा काम पर लौट आईं. इनकी अहम मांग वेतन मानदेय बढ़ाने की थी. इस आंदोलन में करीब साढ़े तीन हजार आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों ने हिस्सा लिया था. अब सोचिए जरा कि आखिर इन कार्यकत्रियों के वोट कहां गए होंग? कहां गए होंगे इनके परिवार के वोटर?

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2- रसोइयों का गुस्सा भी फूटा था- रसोइयों ने 22 फरवरी के शुरू में ही आंदोलन करना शुरू किया था. 8 मार्च को ये आंदोलन महारैली में तब्दील हुआ. इनका नारा था 40 रु. मजदूरी नहीं 255 रु. देनी होगी. चिलचिलाती धूप में रसोइयें तपते रहे और सरकार का दिल नहीं पसीजा. राज्य में 3421 महिला और पुरुष मिलाकर रसोइयें हैं. इनमें 90 फीसदी महिलाएं ही हैं. इनकी भी मुख्य मांग वेतन मान बढ़ाने की थी. यहां भी सरकार नहीं पसीजी. आखिरकर थकहार का रसोइएं वापस आ गए. इनका और इनके परिवार का वोट रमन सिंह के दामन पर तो नहीं गिरा होगा.

3-छत्तीसगढ़ पुलिस के परिवार वालों भी करते रहे विरोध- जून में पुलिस अनुसाशन के तहत यहां पुलिसवाले नहीं लेकिन उनके परिवार के लोग 11 सूत्रीय मांगे लेकर विरोध के लिए निकले. इनकी मांग थी- मध्यप्रदेश पुलिस की तरह वरिष्ठता के क्रम के आधार पर प्रमोशन किया जाए, कार्यकाल में कम से कम तीन प्रमोशन जरूर किए जाएं. पुलिस आरक्षकों का ग्रेड पे 1900 से बढ़ाकर कम से कम 2800 किया जाए. साइकिल भत्ता खत्म कर मोटर साइकिल के लिए पेट्रोल भत्ता दिया जाए. ड्यूटी पर मरने वाले पुलिस कर्मचारी को शहीद का दर्जा दिया जाए. मरने वाले के परिवार को एक करोड़ रु. की सहायता राशि और परिवार के एक सदस्य को ड्यूटी दी जाए. नक्सली इलाके में तैनात पुलिस बल को उच्च मानक के सुरक्षा उपकरण बुलेट प्रूफ जैकेट, अत्याधुनिक हथियार उपलब्ध कराए जाएं. सप्ताह में एक दिन अवकाश जरूर दिया जाए. धरनास्थल पर पहुंचने वाली पुलिस वालों की पत्नियों को गिरफ्तार किया गया. पुलिसवालों को नोटिस थमाए गए, बर्खास्तगी की सरकारी धमकियां भी मिलीं. अब सोचिए इनके परिवार वालों का वोट और खुद कर्मचारियों का वोट कहां गया होगा?

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