नक्सलियों के खिलाफ छत्तीसगढ़ पुलिस ने गढ़ा सुरीला हथियार!

बस्तर को नक्सलियों ने पहुंचाया कितना नुक्सान? सरकार आदिवासियों के लिए कर रही है क्या-क्या काम? ये बताएगी बस्तर पुलिस की गीत-संगीत बटालियन !

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एसीपी महेश्वर नाग एसीपी महेश्वर नाग

संध्या द्विवेदी

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  • 02 मई 2018,
  • अपडेटेड 5:59 PM IST

छत्तीसगढ़ पुलिस को नक्सलवाद से लड़ने का एक दूसरा हथियार मिल गया है. ये हथियार न खून बहाएगा न डर का माहौल बनाएगा. इस हथियार का आइडिया दरअसल पुलिस को नक्सलियों

की गीत संगीत की मंडलियों से मिला है. नक्सली आंदोलनों में इन मंडलियों का अहम योगदाना होता है.

इन्हें चेतना नाट्य मंच या चेतना मंडली भी कहते हैं. इन मंडलियों का काम होता है, खाटी देसी वाद्यंत्रों की धुन पर हल्बी, छत्तीसगढ़ी और गोंडी बोलियों में गीत बनाकर अनपढ़ और समाज

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की मुख्यधारा से कटी आदिवासी जनता तक पहुंचाना. कुल मिलाकर इन गीतों का इस्तेमाल नक्सली आदिवासी जनता तक अपना संदेश पहुंचाने के लिए करते हैं.

इन गानों का मोटा-मोटी निचोड़ यही होता है कि आदिवासियों के साथ सरकार सौतेला व्यवहार करती है. उनकी जल, जंगल, जमीन पर सरकार कब्जा कर रही है. सरकार को शोषक और

नक्सलियों को रक्षक की भूमिका में इन गानों में दिखाया जाता है.

दूसरी तरफ पुलिस और सेना के पास न तो वहां की बोली होती है और न वहां की संस्कृति की समझ. ऐसे में ये सुर, लय, ताल से बना ये सुरीला हथियार नक्सलियों के लिए बड़े काम का होता है. लेकिन अब छत्तीसगढ़ पुलिस ने भी इस हथियार को गढ़ना शुरू कर दिया है.

छत्तीसग गढ़ जिले के कोंडागांव एडिशनल सुप्रीटेंडेंट नाग नाग कहते हैं, ''पांच गानों का एक एल्बम नक्सलियों के सुरीले मगर धारदार हथियार को काउंटर करने के लिए तैयार किया गया है.'' इन गानों का असर भी साफ दिख रहा है. लोग पुलिस के साथ घुलने-मिलने में रुचि लेने लगे हैं. आगे इस तरह के और भी एल्बम तैयार किए जाने की योजना है.

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एएसपी नाग कहते हैं, इन गानों में सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी दी जा रही है. ये बताया जा रहा है कि अगर कोई नक्सली आत्मसमर्पण करता है तो सरकार उसे क्या-क्या सुविधा

देती है. साथ ही इन गानों के जरिए ये भी बताने की कोशिश की जा रही है कि नक्सलियों ने बस्तर का कितना नुकसान किया है.

एक गाने के बोल गुनगुनाते हुए एएसपी नाग कहते हैं, जब स्थानीय भाषा में ये गाना गाया जाता है, जाग रहे हैं संगी, जाग रहे हैं मितान... तो स्थानीय लोगों को लगता है कि उनके हित की

बात उनसे कही जा रही है. कहने वाले उनसे अलग नहीं हैं.

पुलिस और सेना के आदिवासियों से न जुड़ पाने की सबसे अहम वजह एक अलग संस्कृति और बोली है. जबिक नक्सली इन्हीं लोगों के बीच से आते हैं. इसलिए ये अपनी बात उन तक

आसानी से पहुंचा पाने में सक्षम होते हैं.

एएसपी नाग कहते हैं, '' पिछले साल दिसंबर में यह एल्बम बन गया था लेकिन इसकी सीडीज गांवों, स्कूलों में टीचरों, सरपंचों, आंगनबाड़ियों, आशाओं को जनवरी से वितरित करनी शुरू की गईं. अबुझमाड़, कोंडागांव, बीजापुर और नारायणपुर में इन गानों की खूब चर्चा हो रही है.

पांच गानों के एल्बम में से तीन गानें एएसपी नाग ने गाए हैं. ये गानें हल्बी और छत्तीसगढ़ी बोली में हैं. एएसपी नाग कहते हैं, '' मैं छत्तीसगढ़ का ही हूं इसलिए छत्तीसगढ़ी भाषा तो मुझे पहले से ही आती थी. लेकिन हल्बी भाषा मुझे सीखनी पड़ी.''

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नाग ने कहा इस एल्बम को बनाना इसलिए भी चुनौतीपूर्ण था क्योंकि स्थानीय लोगों में नक्सलियों का बहुत खौफ है. हमें लोकल म्यूजिकल इंस्ट्रुमेंट्स बजाने वाले और गाने लिखने वाले चाहिए थे. लेकिन स्थानीय लोग पुलिस के साथ मेलजोल से भी डरते हैं.

मुखबिरी का शक होने पर नक्सली गांव के लोगों को मौत के घाट उतार देते हैं. भारी मशक्कत के बाद हम इन लोगों को राजी कर पाए. लेकिन इन सबकी शर्त थी कि कहीं भी इनका नाम सामने ना आए. इसलिए एल्बम में कुछ के नाम दिए भी गए हैं तो बदलकर.  एएसपी नागपाल की पोस्टिंग पिछले 11 सालों से बस्तर के ही अलग अलग इलाकों में है.

इस एल्बम में कौन-कौन से वाद्ययंत्र इस्तेमाल हुए हैं? महेश्वर नाग विस्तार से बताते हैं, एक खाटी देसी वाद्यंत्र होता है मोंहरी, ये कुछ-कुछ शहनाई की तरह होता है. यह बांसुरी के समान

बांस के टुकड़ों का बना होता है. इसमें छः छेद होते हैं. इसके अंतिम सिरे में पीतल का कटोरीनुमा हिस्सा लगा होता है.

इसे ताड़ के पत्ते के सहारे बजाया जाता है. इसके अलावा एल्बम में मांदर का अहम रोल है. ये देखने में एक बड़ी ढोलक जैसा होता है. लाल मिट्टी से बने इस वाद्यंत्र का आकार आम ढोलक से करीब तीन गुना बड़ा होता है.

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इस बड़ी ढोलक के दोनों सिरे खुले होते हैं, जिन्हें बकरे की खाल से मढ़ा जाता है. इसे बजाने के लिए मजबूत करामाती हाथों की जरूरत होती है. इसके अलावा ढोल और बांसुरी भी बजाई जाती है.

एएसपी नाग ने बताया कि फिलहाल अभी पांच गानों का एक ही एल्बम तैयार किया गया है. छत्तीसगढ़ी और हल्बी बोली के बाद गोंडी भाषा में भी जल्द ही गानों का अनुवाद किया जाएगा. इसके अलावा नुक्कड़ नाटक बनाने की योजना भी प्रस्तावित है..

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