राजस्थान की चीफ सेक्रेटरी रहीं सीनियर IAS कुसुम प्रसाद ने ली अंतिम विदा

राजस्थान कैडर की आईएएस अफसर कुसुम प्रसाद का बुधवार सुबह निधन हो गया. वो 82 साल की थीं. वो राजस्थान की सीनियर आईएएस होने के साथ ही राज्य की महिला चीफ सेक्रेटरी होने का गौरव दर्ज है. उनकी शख्सीयत आज भी लोगों को सीख दे रही है. आइए जानें- उनसे जुड़े ये तथ्य.

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कुसुम प्रसाद (Image Credit: aajtak) कुसुम प्रसाद (Image Credit: aajtak)

मानसी मिश्रा

  • नई दिल्ली,
  • 23 अक्टूबर 2019,
  • अपडेटेड 9:45 AM IST

राजस्थान कैडर की आईएएस अफसर कुसुम प्रसाद का बुधवार सुबह निधन हो गया. वो 82 साल की थीं. वो राजस्थान की सीनियर आईएएस होने के साथ ही राज्य की महिला चीफ सेक्रेटरी होने का गौरव दर्ज है. उनकी शख्सीयत आज भी लोगों को सीख दे रही है. आइए जानें- उनसे जुड़े ये तथ्य.

कुसुम प्रसाद वर्तमान में 82 साल की थीं. वो उस दौर की आईएएस अफसर थीं जब देश में बेटियों को इतना आगे बढ़ाने या पढ़ाने का सपना हर कोई नहीं देखता था. वो उस दौर में 1960 बैच की आईएएस अफसर बनीं. वो राजस्थान कैडर की अफसर थीं. पढ़ने लिखने में प्रखर कुसुम प्रसाद हमेशा एक जुझारू अफसर के तौर पर जानी जाएंगी. उनके परिजनों ने बताया कि वो काफी समय से बीमार चल रही थीं. एक तेजतर्रार अफसर होने के साथ ही वो एक सफल मां भी रहीं. उन्होंने अपनी दोनों बेटियों को अच्छी शिक्षा देकर उन्हें उनके पैरों पर खड़ा होने की प्रेरणा दी. उनकी एक बेटी डॉ वंदना प्रसाद पेशे से चिकित्सक हैं. वहीं दूसरी बेटी प्रो अर्चना प्रसाद इतिहासकार व लेखक हैं.

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फोटो: अपनी दोनों बेटियों के साथ ड्राइविंग सीट पर आईएएस कुसुम प्रसाद (पुरानी तस्वीर)

बनीं राज्य की महिला चीफ सेक्रेटरी

साल 2009 में कुसुम प्रसाद राजस्थान की महिला चीफ सेक्रेटरी बनीं.  महिला चीफ सेक्रेटरी रहते हुए उन्होंने राज्य की भलाई के लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए.

ये भी रहा रिकॉर्ड, इन पदों पर दी सेवा

कुसुम प्रसाद एम्प्लाइज स्टेट इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन की डायरेक्टर जनरल भी रह चुकी हैं. इसके अलावा वो पहली महिला डीएम (District Magistrate) के तौर पर टोंक में नियुक्त रह चुकी हैं. इसके अलावा वो 1991 में कुछ समय के लिए होम सेक्रेटरी (राजस्थान) भी रह चुकी हैं. होम सेक्रेटरी रहते हुए उन्होंने राजस्थान लघु उद्योग निगम Small-scale Industries Corporation को पुनर्जीवित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इसके परिणामस्वरूप राजस्थानी (एम्पोरियम) को फिर से बनाया गया. इसे दोबारा स्थापित कराने का श्रेय उन्हीं को जाता है. इससे राज्य के कई छोटे कारीगरों को भी फायदा हुआ था.

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