राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिए हुए सालभर से भी ज्यादा समय हो गए हैं. सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष के रूप में कांग्रेस की कमान लिए हुए आज एक साल पूरे हो रहे हैं तो पार्टी में फिर मांग उठ रही है कि उनके 50 वर्षीय बेटे राहुल गांधी को फिर से कमान सौंप देनी चाहिए, लेकिन अब तक पार्टी न तो राहुल को दोबारा पदभार संभालने के लिए मना पाई है और न ही उनका कोई विकल्प तलाश पाई है.
हालांकि, राहुल पिछले कुछ दिनों में अपनी छवि से इतर एक अलग छवि बनाने की कवायद जरूर करते दिखे हैं, पर वो अपने निर्णय से टस से मस नहीं हो रहे हैं. इसके बावजूद यह कहा जा रहा है कि राहुल गांधी का कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में वापस लौटना पक्का है तो ऐसे में फिर वो किस शुभ मुहूर्त का एंतजार कर रहे हैं?
बता दें कि बीते 2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी ने कांग्रेस को उसका खोया जनाधार वापस दिलाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाया था. लोकसभा चुनाव में 2 माह 8 दिन के चुनाव प्रचार में राहुल ने 148 रैलियां कीं, लेकिन देश भर में कांग्रेस को महज 52 सीटें मिल सकीं. इसके बाद हार की जिम्मेदारी लेते हुए राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था, जिसके बाद सोनिया गांधी को कांग्रेस का आंतरिम अध्यक्ष बनाया गया.
सोनिया गांधी 73 साल की हो चुकी हैं और अस्वस्थ होने के चलते पार्टी को भी उतना समय नहीं दे पा रही हैं, जितना पार्टी अध्यक्ष के रूप में उनसे अपेक्षित है. सोनियो को पार्टी की कमान लिए एक एक साल हो गए हैं. ऐसे में कांग्रेस के पूर्णकालिक अध्यक्ष की मांग पार्टी के अंदर से लगाातर उठ रही है. संदीप दीक्षित से लेकर शशि थरूर और मनीष तिवारी लगातार कांग्रेस अध्यक्ष की मांग कर रहे हैं, लेकिन फिर भी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के सिर जूं नहीं रेंग रही है.
ये भी पढ़ें: अंतरिम अध्यक्ष के रूप में सोनिया गांधी ने पूरा किया साल, कैसा रहा कार्यकाल?
दरअसल, कांग्रेस के साथ दुविधा की स्थिति इसलिए भी है कि अगर वो दोबारा राहुल को कांग्रेस अध्यक्ष पद पर लाना भी चाहे तो उसके लिए कोई माकूल वजह उसके पास नहीं है. सवाल उठेंगे कि आखिर राहुल ने इस्तीफा दिया क्यों था? और अगर दिया था तो अब ऐसा क्या बदल गया कि वो दोबारा पार्टी अध्यक्ष बनने को राजी हो गए हैं? क्योंकि कांग्रेस कार्यकारिणी ने सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष के रूप में जिम्मेदारी दी तो एक प्रस्ताव भी पारित किया गया कि वे संगठन स्तर पर पार्टी में अहम बदलाव करें.
हालांकि इस बात को भी एक साल हो चुके हैं लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस पार्टी के अंदर किसी अहम बदलाव की झलक नहीं दिखी है. यही वजह है कि एक साल से लगातार राहुल से अध्यक्ष पद संभालने की अपील पार्टी नेताओं द्वारा अलग-अलग स्तर पर होती है लेकिन पार्टी और राहुल ने खुद इसपर चुप्पी ही साध रखी है.
कोरोना संकट और चीन सेना से हुई हिंसक झड़प ने राहुल गांधी को एक राजनीतिक अवसर दिया है, जिससे वह अपनी छवि संजीदा और संवेदनशील नेता की बना सकें और वापस विपक्ष की राजनीति में केंद्रीय भूमिका में आ सकें. कांग्रेस नेता भी ये बात समझ रहे हैं. वे लगातार यह बात प्रचारित कर रहे हैं कि राहुल गांधी देश में कोरोना संक्रमण के संकट को समझने वाले और उससे सावधान करने वाले पहले नेता थे. ऐसे ही चीन को लेकर जिस तरह से उन्होंने सवाल खड़े किए हैं, उससे भी उनकी गंभीरता बढ़ी है. हाल ही में राहुल दुनिया के अर्थशास्त्री और विशेषज्ञों के साथ कोरोना और देश के अहम मुद्दों पर चर्चा कर मोदी सरकार को घेरते नजर आए हैं.
वरिष्ठ पत्रकार शकील अख्तर कहते हैं कि राहुल गांधी का कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में वापस लौटना पक्का है, लेकिन पार्टी की कमान को अपने हाथ में लेंगे यह अहम सवाल है. हालांकि, सोनिया कांग्रेस की आंतरिम अध्यक्ष जरूर है, लेकिन पार्टी में सभी नियुक्तियां राहुल गांधी के जरिए ही होती हैं. सोनिया प्रमुख रूप से संरक्षक की तरह ही हैं. सोनिया अमूमन यूपीए के सहयोगी दलों के साथ सामंजस्य बनाए रखने और वरिष्ठ नेताओं के मन से उनके भविष्य की चिंताओं को दूर करने की भी कोशिश करती हैं. इसके अलावा कभी-कभार बहुत जरूरत होने पर असंतुष्ट नेताओं को शांत करने में भूमिका निभाती हैं. ऐसे में राहुल के लिए बहुत ही बेहतर मौका है पार्टी कमान अपने हाथों में लेने का अभी चुनाव में चार साल हैं, लेकिन राहुल को आदर्शवादी और व्यवहारिक राजनीति में फर्क समझना होगा.
ये भी पढ़ें: MOTN कांग्रेस की वापसी के लिए राहुल गांधी को माना गया बेस्ट
आजतक के लिए इंडिया टुडे-कार्वी इनसाइट्स लिमिटेड के सर्वे के संकेत भी यही कहते हैं कि कांग्रेस के बेहतर सियासी भविष्य के लिए राहुल गांधी को पार्टी की कमान सौंपनी चाहिए. सर्वे के मुताबिक, 23 प्रतिशत लोगों को लगता है कि राहुल गांधी ही कांग्रेस नेतृत्व के लिए बेस्ट पर्सन हैं. वहीं, 18 प्रतिशत लोगों का मानना है कि कांग्रेस की कमान पूर्व पीएम मनमोहन सिंह की सौंप देनी चाहिए. सर्वे के मुताबिक, 14-14 फीसदी लोगों ने सोनिया गांधी और प्रियंका को शीर्ष नेतृत्व देने की बात पर सहमति जताई है.
वहीं, वरिष्ठ पत्रकार राशिद राहुल गांधी के एक बयान पर जिस तरह से बीजेपी हमलावर होती है, उससे भी राहुल की राजनीतिक अहमियत का पता चलता है. सोनिया गांधी कांग्रेस की भले ही आंतरिम अध्यक्ष हों, लेकिन सरकार को घेरने का काम राहुल गांधी कर रहे हैं. कांग्रेस के सामने अपनी विचारधारा को लेकर भी एक बड़ी चुनौती है. राहुल कांग्रेस की विचाराधारा को तय नहीं कर पा रहे हैं. मिडिल क्लास से कांग्रेस ने अपना पूरा नाता तोड़ लिया है जबकि एक दौर में पार्टी का मजबूत वोटबैंक हुआ करता था, लेकिन आज कांग्रेस के साथ उसका अपना कोई मूलवोट बैंक नहीं रह गया है.
वहीं, वरिष्ठ पत्रकार अरविंद सिंह कहते हैं कि राहुल गांधी के सामने चुनौती यह है कि पहले तो कांग्रेस नेताओं में यह आत्मविश्वास पैदा करें कि पार्टी अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन हासिल कर सकती है. इसके बाद उन्हें जमीनी स्तर पर कांग्रेस संगठन का काम करने वाले कार्यकर्ताओं में उत्साह का माहौल पैदा करने के लिए कुछ ऐसे कदम उठाने होंगे, जिससे कार्यकर्ताओं में भविष्य को लेकर कोई उम्मीद जगे. हाल ही में राहुल गांधी जिस तरह से वापसी कर रहे हैं, उससे कांग्रेस को एक नई दिशा मिलती दिख रही है. विपक्ष की बात आती है तो कांग्रेस ही दिखती है.
राहुल दूध का जला, छाछ भी फूंक-फूंककर पीने वाली कहावत चरितार्थ करते हुए कोरोना पर अपनी प्रतिक्रियाओं को लेकर सजग हैं. वे जानते हैं कि इस संकट के टल जाने के बाद ये एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनेगा. राहुल गांधी कांग्रेस की कमान दोबारा संभालने के लिए मौके के एंतजार में है, लेकिन यह मौका कब आएगा ये न तो पार्टी नेताओं को पता है और न ही राजनीतिक विश्लेषकों, लेकिन एक बात पक्की है कि कांग्रेस की कमान देर सबेर राहुल को ही मिलनी है.
कुबूल अहमद