'सुनिए, अच्छे दिन कभी नहीं आते क्योंकि...'

केंद्रीय परिवहन और जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी ने अपनी बेबाक और बेलाग शैली से दिल्ली की आभिजात्य सियासत, मीडिया और बाज दफे खुद अपने ऊपर भी सौम्य और मीठे तंज कसे.

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बंदीप सिंह बंदीप सिंह

मंजीत ठाकुर

  • मुबंई,
  • 22 मार्च 2018,
  • अपडेटेड 2:00 PM IST

2019 में कौन जीतेगा?

लोग एक बार फिर नरेंद्र मोदी को ही वोट देंगे. हम पूर्वोत्तर में पहुंच गए हैं. हम केरल और पश्चिम बंगाल में भी अच्छा प्रदर्शन करेंगे. कोई भी विपक्ष हमेशा ही यह कहता है कि गद्दीनशीन पार्टी अगला चुनाव हारेगी.

हमने चार साल में जो किया है, वह कांग्रेस 50 साल में भी नहीं कर सकी. हमारे कार्यकाल में आर्थिक वृद्धि 7.5 फीसदी पर पहुंच गई है, बुनियादी ढांचे का विकास हुआ है. हम ऐसे काम कर रहे हैं जो पिछले 50 साल में नहीं किए गए. इतना ही नहीं, कांग्रेस हर जगह हार रही है और भाजपा जीत रही है. इसमें कोई शक नहीं कि हम 2019 का चुनाव भी जीतेंगे.

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अलहदा बीजेपी?

यह हमेशा ऐसा ही रहा है. दीनदयाल उपाध्याय से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी या मुरली मनोहर जोशी तक भाजपा की छवि उन नेताओं से बनी है जो धोती-कुर्ता पहनते रहे हैं. पर मैं हमेशा पतलून और शर्ट पसंद करता हूं.

दिल्ली में लोग मुझसे कहा करते हैं, ''तुम्हें कोई नेता की तरह स्वीकार नहीं करेगा. धोती-पायजामा पहनना शुरू करो." तो जब मैं भाजपा अध्यक्ष बना, मीडिया ने कहा, ''भाजपा बदल गई है." सचाई यह है कि वक्त के साथ हर चीज बदलती है.

मगर हमारा लक्ष्य, आकांक्षा और मिशन लगातार एक ही रहा है—बटुआ या शख्स, कौन बड़ा है? शख्स. शख्स या पार्टी, कौन बड़ा है? पार्टी. पार्टी या फलसफा, कौन बड़ा है? फलसफा. हम आज भी वही हैं.

अच्छे दिन कभी नहीं आते

सुनिए, अच्छे दिन कभी नहीं आते. एक नगरसेवक दुखी है क्योंकि वह एमएलए नहीं है, एक एमएलए दुखी है क्योंकि वह एमपी नहीं है, एक एमपी दुखी है क्योंकि वह मंत्री नहीं है, एक मंत्री दुखी है क्योंकि उसे मनचाहा महकमा नहीं मिला.

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जिनके पास मर्सिडीज है, वे इसलिए दुखी हैं क्योंकि उनके पास निजी हवाई जहाज नहीं है. इस तरह होता है. अच्छे दिन मन और मिजाज पर निर्भर करते हैं. इसका मतलब वाकई तीन चीजें होता है—रोटी, कपड़ा और मकान.

जब सरकार गरीबों के लिए लाखों घर बनाती है तो क्या ये अच्छे दिन नहीं हैं? या जब 1.88 करोड़ हेक्टेयर में फैले किसानों को ड्रिप सिंचाई मिलती है? या जब बंदरगाहों को आधुनिक बनाने और रोजगार पैदा करने के लिए सागरमाला सरीखी परियोजना को 16 लाख करोड़ रुपए के निवेश हासिल होते हैं?

क्या आपको पता है ?

मुंबई में स्ट्रीट फूड और थिएटर के चलते गडकरी उसे छोड़ना नहीं चाहते थे. अब वे राष्ट्रीय राजधानी में रच-बस गए हैं, उन्हें वापस महाराष्ट्र जाना गवारा नहीं है. हालांकि वे दिल्ली के जायकेदार व्यंजन पनीर और परांठों से दूर ही रहते हैं

उनकी पसंदीदा भेलपुरी है. वह भी मुंबई में सांताक्रुज के खास खोमचे वाले की. उनके लिए उस शहर की सड़कों पर मटरगश्ती करना मुश्किल है, वे जब भी जाते हैं, बंधवा लाना नहीं भूलते

हिंदुस्तान के 40 फीसदी सीमेंट की खपत गडकरी का मंत्रालय करता है.

''गडकरी कहिन''

मैं प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहता. मैंने (पार्टी से) कभी कुछ नहीं मांगा

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सोनिया गांधी का यह कहना कि कांग्रेस 2019 में सत्ता में लौटेगी, कुछ-कुछ मुंगेरी लाल के हसीन सपने

सरीखी बात है

सियासत पेचीदगियों और मजबूरियों का खेल है. क्रिकेट और सियासत में कुछ भी हो सकता है

मैं तो चला जिधर चले रस्ता, मुझे क्या पता कहां मेरी मंजिल

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