मॉनसून सत्र: विपक्ष ही नहीं संसद में सहयोगी भी दे सकते हैं सरकार को चुनौती

इस बार टीडीपी तो विपक्ष में खड़ी है लेकिन शिवसेना और जेडीयू जैसे सहयोगी दल सरकार के सामने चुनौती पेश कर सकते हैं. सहयोगी की मांगों को सरकार सिरे से नरजअंदाज भी नहीं कर सकती और विपक्ष की तरह उनपर सीधा हमला भी आसान नहीं होगा.

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नीतीश कुमार-अमित शाह (फोटो- Getty Images) नीतीश कुमार-अमित शाह (फोटो- Getty Images)

अनुग्रह मिश्र

  • नई दिल्ली,
  • 13 जुलाई 2018,
  • अपडेटेड 4:04 PM IST

संसद के मॉनसूत्र सत्र से पहले एक ओर सरकार लंबित विधेयकों को पारित कराने की मंशा जता चुकी है वहीं दूसरी तरफ विपक्षी दलों ने सरकार को घेरने की रणनीति तैयार कर ली है. अर्थव्यवस्था की हालत से लेकर किसानों के हालात, मॉब लिंचिंग, कश्मीर की सियासत, विशेष राज्य का दर्जा जैसे कई अहम मुद्दे हैं जिनकी गूंज 18 जुलाई से शुरू हो रहे सत्र में सुनाई देगी. लेकिन सरकार के सामने चुनौती सिर्फ विपक्ष नहीं बल्कि सहयोगी भी हैं.

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टीडीपी ने तोड़ा था नाता

पिछले बजट में अपनी मांगों को लेकर अड़ी टीडीपी ने बीच सत्र के दौरान ही सरकार का साथ छोड़ा था. एनडीए का हिस्सा रही टीडीपी आंध्र प्रदेश के लिए विशेष राज्य का दर्जा मांग रही थी. साथ ही राज्य के लिए विशेष आर्थिक सहायता भी उसकी प्राथमिकता थी. इस बार टीडीपी तो विपक्ष में खड़ी है लेकिन शिवसेना और जेडीयू जैसे सहयोगी दल सरकार के सामने चुनौती पेश कर सकते हैं. सहयोगी की मांगों को सरकार सिरे से नरजअंदाज भी नहीं कर सकती और विपक्ष की तरह उनपर सीधा हमला भी आसान नहीं होगा.

सरकार पर हमलावर शिवसेना

शिवसेना का रवैया किसी से भी छुपा नहीं है और वह कई मौकों पर मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चाबंदी करती आई है. महंगाई का मुद्दा हो या फिर कश्मीर के बिगड़े हालात, हर मौके पर शिवसेना ने सहयोगी होने के बावजूद मोदी सरकार के खिलाफ कड़ा रुख अख्तियार किया है. आगामी सत्र में भी सरकार को शिवसेना से सहयोगी की उम्मीद कम है.

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आलम यह है कि मान मुनव्वल की कोशिशों के बीच बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने उद्धव ठाकरे से मुलाकात भी की लेकिन वह भी बेनतीजा साबित हुई. पिछले बजट सत्र के दौरान भी बगावती तेवर दिखाते हुए शिवसेना ने सांसदों की ओर से वेतन न लेने के NDA के फैसले से पल्ला झाड़ लिया था.

नीतीश को चाहिए विशेष राज्य

दूसरी सहयोगी पार्टी जेडीयू का रुख शिवसेना की तरह मुखर तो नहीं लेकिन सियासी तौर पर मजबूत तो जरूर है. बिहार में सत्ता के नए सहयोगी जेडीयू के अपने राज्य के लिए विशेष राज्य का दर्जा चाहिए. साथ ही आगामी लोकसभा चुनाव में उसने बीजेपी से ज्यादा सीटें भी मांगी है. इसी मुद्दे पर अमित शाह और जेडीयू चीफ नीतीश कुमार दिल्ली में मुलाकात कर चुके हैं. सीटों का गणित अभी तय नहीं है और विशेष राज्य का दर्जा भी ठंडे बस्ते में पड़ा है.

नीतीश कुमार की पार्टी कई मंच पर केंद्र से बिहार के लिए विशेष राज्य का दर्जा मांग चुकी है. पिछले दिनों नीति आयोग की बैठक में पीएम नरेंद्र मोदी के सामने नीतीश ने अपनी मांग दोहराते हुए आंध्र प्रदेश तक को विशेष राज्य का दर्जा देने का समर्थन किया था. लेकिन अगर जेडीयू यही मांग संसद के भीतर उठाते ही तो सरकार लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है.

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राज्यसभा में उपसभापति चुनाव के मद्देनजर एनडीए अपने किसी सहयोगी को नाराज नहीं करना चाहेगी. उच्च सदन में वैसे ही बीजेपी के पास संख्याबल कम है ऐसे में अगर सहयोगी दूर होते हैं तो यह सरकार के लिए यह मुश्किल वक्त होगा. 2019 के चुनाव से पहले एनडीए हर हालत में अपना खेमा मजबूत रखना चाहता है साथ ही संसद के मॉनसून सत्र में कई अहम विधेयक लंबित हैं जिन्हें सहयोगियों के साथ के बिना पारित कराना और मुश्किल हो सकता है.

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