'आज तक' के बड़े खुलासे पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने कहा कि कोई भी अवैध तरीके से उत्तर प्रदेश में अगर मेडिकल कॉलेज चलाएंगे तो उसको बंद होना पड़ेगा. आपको बता दें कि आज तक ने मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के गोरखधंधे का खुलासा किया है.
स्वास्थ्य मंत्री ने आगे कहा, "लाइसेंस की प्रक्रिया में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया का रोल होता है मगर मैं यह आश्वासन देता हूं कि कानून सख्त है और कोई भी कॉलेज अगर इस तरह से चल रहे हैं तो उचित कार्रवाई की जाएगी. अगर अपराधिक कार्रवाई भी बनती है तो वह भी कदम उठाएंगे. आपके माध्यम से हम को रिपोर्ट मिलेगी और उसके माध्यम से हम लोग कार्रवाई करेंगे. अभी तो आपने सबूत दिए नहीं आप सबूत दीजिए और हम लोग भी आश्वासन देते हैं कि हम ठोस कार्रवाई करेंगे."
इसके अलावा स्टिंग पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए निदेशक चिकित्सा शिक्षा के के सिंह ने कहा कि वे Aajtak पर मेडिकल कॉलेज का स्टिंग देख रहे हैं. वे इस स्टिंग पर संज्ञान लेंगे और संबंधित मेडिकल कॉलेज को नोटिस भेजेंगे.
आपको बता दें कि 'आजतक' के खास कार्यक्रम 'क्रांतिकारी बहुत क्रांतिकारी' के क्रांतिकारी खुलासों की श्रृंखला में गुरुवार को हिंदुस्तान की सेहत से खिलवाड़ का मुद्दा दिखाया गया है. कार्यक्रम में दिखाया गया कि एमबीबीएस में दाखिले की नीट की प्रक्रिया कैसे मजाक बनकर रह गई है. और कैसे एमबीबीएस की सीट एक-एक करोड़ में नीलाम हो रही है. और वो भी फर्जी वाली. स्टिंग में दिखाया गया कि जिन कॉलेजों को दाखिले का हक ही नहीं वो कैसे उगाही पर उतर आई हैं. आजतक के इस क्रांतिकारी स्टिग रिपोर्ट ने हिंदुस्तान की सेहत से खेलने वाले मेडिकल कॉलेजों की पोल खोलकर रख दिया है.
स्टिंग में सामने आया मेडिकल सीटों का खेल
स्टिंग में दिखाया गया है कि फर्जी कॉलेजों में एमबीबीएस की डिग्री बेचने के लिए किस तरह बाकायदा दलाल घूम रहे हैं. और लोग बच्चों को चोर दरवाजे से डॉक्टर बनाने के लिए घर-मकान तक बेचने को तैयार हैं.
मथुरा के केएम मेडिकल कॉलेज को भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय ने चिट्ठी लिखकर बताया है कि आप दो साल तक एमबीबीएस में एडमिशन नहीं ले सकते. लेकिन जब आजतक की टीम इस हुक्म के तामील का सच जानने पहुंची तो पता चला कि इसका कोई मतलब नहीं. कॉलेज एडमिशन भी दे रहा है और डिग्री भी. करोड़ों रुपए का यह खेल फर्जी एमबीबीएस डिग्री का कारखाना बन गया है.
31 मई 2017 को लिखी चिठ्ठी में भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय ने काले और मोटे अक्षरों में साफ-साफ लिखा है कि मथुरा का कृष्ण मोहन मेडिकल कॉलेज 2019 तक किसी भी सूरत में दाखिला नहीं ले सकता. इतना ही नहीं सरकार ने दो करोड़ रुपए की उसकी गारंटी भी जब्त कर ली है. लेकिन कॉलेज ने इस चिट्ठी को चार टुकड़ों में फाड़कर डस्टबिन में डाल दिया. इसके सबूत जुटाने के लिए आजतक की स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम एमबीबीएस सीट की खरीदार बनकर मथुरा पहुंची.
तारीख-11 जुलाई 2017
वक्त- दोपहर के दो बजे
जगह- कृष्ण मोहन मेडिकल कॉलेज, सोंक रोड, मथुरा
कृष्ण मोहन मेडिकल कॉलेज के एडमिशन रुम में आज तक की टीम को अजय तोमर नाम का शख्स मिला. उसने अपने आपको एमबीबीएस एडमिशन का इंचार्ज बताया. टीम ने बच्चे का एमबीबीएस में एडमिशन का जिक्र छेड़ा.
अजय तोमर- आप कौन हैं बच्चे के?
रिपोर्टर- अंकल हैं
अजय- आप कहां से
रिपोर्टर– दिल्ली से
अजय- बच्चा कहां पर है
रिपोर्टर- दिल्ली में
अजय- अच्छा ..ठीक है ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन तो किया होगा
इस सवाल के आगे एक एडमिशन इंचार्ज एमबीबीएस सीट का दलाल बन गया था. और जब एडमिशन इंचार्ज ही दलाल हो गया तो टीम ने भी पूरी बात खोल दी.
रिपोर्टर- देखो उसका नंबर तो आयेगा नहीं हमें मालूम है
अजय- हम कॉलेज लेवल पर काउसलिंग करवाएंगे. बच्चे की अगर आप सीट बुक करवाते हैं हमारे पास. अभी तो हम कॉलेज लेवल पर काउसलिंग करवायेंगे बच्चे की.
इसके बाद वो राज खुल गया जिसकी तफ्तीश करने टीम गई थी.
अजय- जो रजिस्ट्रेशन आपने ऑनलाइन किया है उसका फॉर्म लगा दीजिएगा. एक तो वो हो जाएगा. नीट का स्कोर.और आपको डॉक्यूमेन्ट सबमिट करने होगें और 5 लाख रुपये कैश जमा कराने हैं फॉर बुकिंग द सीट. ऑफ्टर दैट, चेक देने हैं आपको. फुल फीस टू कन्फर्म सीट. जब सीट कंफर्म हो जाएगा तो फुल पीडी देने हैं.
रिपोर्टर- हम आपको विचार करके अगले हफ्ते बताते हैं
अजय- अगले हफ्ते की मैं आपको अगले हफ्ते बताउंगा. ये तो आज की है. कल की भी कल ही बताउंगा. सीट्स के उपर डिपेंड करता है.
रिपोर्टर– यहीं एक्जाम होंगे.. ? सारे यहीं होंगे?
जुनैद- सब कुछ यहीं
रिपोर्टर- तो मतलब पांच साल में डॉक्टर बन जायेगा..
जुनैद- ऑफकोर्स
हम आपको फिर से बता दें कि मथुरा का केएम मेडिकल कॉलेज एमबीबीएस की डिग्री दे ही नहीं सकता. ऊपर से सुप्रीम कोर्ट की साफ गाइडलाइन है कि जो भी दाखिले होंगे वो नीट के स्कोर के आधार पर होंगे. अब जानिए वह वजह जिसके चलते केएम मेडिकल कॉलेज क्यों एमबीबीएस की डिग्री नहीं दे सकता. एमबीबीएस छोड़िए कंपाउंडरी का सर्टिफिकेट नहीं दे सकता.
दरअसल, एमसीआई की टीम ने तीन बार अलग-अलग समय पर केएम मेडिकल कॉलेज की औचक जांच की. पता चला 86 फीसदी फैकल्टी की कमी है. मतलब डॉक्टर बनाने वाले कॉलेज के पास पढ़ाने वाले ही नहीं हैं. प्रोफेसर छोड़िए रेजिडेंट डॉक्टर की कमी भी 90 फीसद पाई गई. मतलब ट्रेनी डॉक्टर तक नहीं थे कॉलेज के पास. ओपीडी में ना तो निर्देशों के हिसाब से डॉक्टर थे और ना ही मरीजों का नामोनिशान. किसी भी वार्ड में एमसीआई की टीम को एक भी मरीज नहीं मिला.
करोड़ों में सीट बेचने वाले मेडिकल कॉलेज के पास ना वेटिंग रूम था, ना इंजेक्शन रूम, ना ड्रेसिंग रूम ना प्साल्टर रूम. इमरजेंसी वार्ड तक में ना डॉक्टर थे, ना नर्सें और ना मरीज. किसी भी आईसीयू में कोई मरीज नहीं था. जच्चा-बच्चा वार्ड सन्नाटे में डूबा हुआ था. लेबर रूम में कोई डिलीवरी नहीं कराई गई थी. मतलब मेडिकल कॉलेज के नाम पर संपूर्ण फर्जीवाड़ा चल रहा था.
नितिन जैन / मौसमी सिंह