कैराना के नतीजे तय करेंगे अजीत सिंह की जाट राजनीति का भविष्य

फूलपुर और गोरखपुर उपचुनाव में सपा और बसपा अपने गठबंधन की अग्निपरीक्षा पास कर चुके हैं. बसपा के मूल वोट बैंक दलित समुदाय ने दोनों सीटों पर सपा उम्मीदवार को वोट ही नहीं दिया था बल्कि प्रचार भी करके जिताया था. अब बारी आरएलडी मुखिया चौधरी सिंह की है, जिन्हें कैराना में अपने ताकत को साबित करने की बड़ी चुनौती है.

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आरएलडी प्रमुख अजीत सिंह आरएलडी प्रमुख अजीत सिंह

कुबूल अहमद

  • नई दिल्ली,
  • 28 मई 2018,
  • अपडेटेड 11:59 AM IST

उत्तर प्रदेश के कैराना लोकसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव के लिए मतदान जारी है. बीजेपी प्रत्याशी मृगांका सिंह और आरएलडी से विपक्ष की संयुक्त उम्मीदवार तबस्सुम हसन के बीच सीधा मुकाबला है. कैराना के नतीजे तय करेंगे कि आरएलडी प्रमुख चौधरी अजीत सिंह की जाट राजनीति का भविष्य. इसके अलावा आरएलडी 2019 में सपा-बसपा के महागठबंधन का हिस्सा होगी या नहीं.

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बता दें कि फूलपुर और गोरखपुर उपचुनाव में सपा और बसपा अपने गठबंधन की अग्निपरीक्षा पास कर चुके हैं. बसपा के मूलवोट बैंक दलित समुदाय ने दोनों सीटों पर सपा उम्मीदवार को वोट ही नहीं दिया था बल्कि प्रचार भी करके जिताया था. अब बारी आरएलडी मुखिया चौधरी अजीत सिंह की है, जिन्हें कैराना में अपने ताकत को साबित करने की बड़ी चुनौती है.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के बेटे अजित सिंह के नेतृत्व वाली आरएलडी का गढ़ हुआ करता था. इस इलाके के जाट और मुस्लिम वोटों को एकजुट करके अजित सिंह ने कई बार सत्ता का स्वाद चख चुके हैं. लेकिन जब से इस गठजोड़ में दरार पड़ी, तब से आरएलडी के राजनीति भविष्य पर संकट के बादल छाए हुए हैं.

गौरतलब है कि नवंबर 2013 में मुजफ्फरनगर दंगों के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट और मुस्लिम समुदाय के बीच तनाव की खाईं ऐसी गहरी हुई जो अभी तक बरकरार है. आरएलडी के सामने एक बड़ी चुनौती पेश की है. लेकिन अब विपक्षी एकता बनने के बाद से अजित सिंह और उनके बेटे जयंत चौधरी इस जाट और मुस्लिम गठजोड़ को कैराना लोकसभा उपचुनाव के जरिए फिर से कायम करना चाहते हैं.

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आरएलडी मुखिया और उनके बेटे जयंत चौधरी पिछले 6 महीने से अपने आधार को मजबूत करने के लिए लगे हुए हैं. करीब 100 से ज़्यादा रैलियों को संबोधित किया और दोनों समुदाय के लोगों को एकजुट होने का संदेश देकर पार्टी के लिए वोट मांगा है. इसे साथ ही आरएलडी ने पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के नाम पर इमोशनल कार्ड भी खेला. चौधरी चरण सिंह की पुण्यतिथि चुनाव के एक दिन बाद है.

दरअसल आरजेडी के सामने सबसे बड़ी चुनौती जाट वोट को वापस अपने पाले में लाने की है, जो 2014 के लोकसभा चुनाव और बाद में 2017 के विधानसभा चुनाव में उनसे छिटककर बीजेपी के खेमे में चला गया है. इसी का नतीजा है कि लोकसभा चुनाव में खुद अजीत सिंह हार गए और पार्टी एक सीट भी नहीं जीत सकी. जबकि विधानसभा चुनाव में एक विधायक जीत सका था, जो बीजेपी के साथ चला गया.

यूपी में बीजेपी के खिलाफ सपा-बसपा एकजुट हुए तो नतीजे भी आए. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को हार का मुंह देखना पड़ा. कैराना में सभी विपक्षी दलों ने पूरा मैदान आरएलडी के लिए खाली कर दिया है.

सपा प्रमुख अखिलेश यादव खुद तो कैराना प्रचार करने नहीं आए, लेकिन उनकी पार्टी के कई नेताओं ने डेरा जमा रखा था. वहीं कांग्रेस ने भी नेताओं को आरएलडी के समर्थन में लगा रखा था. इसके अलावा आम आदमी पार्टी से लेकर बसपा और भीम आर्मी तक सपोर्ट कर रहे हैं.

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हालांकि, बीजेपी से हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह अपने पिता की विरासत को बचाने के लिए उतरी हैं. वे क्षेत्र की बेटी होने की दुहाई देकर वोट मांग रही है. उन्हें गुर्जर, सैनी, कश्यप और जाट मतों का भरोसा है. हालांकि कुछ वोट मुस्लिम भी उनके पक्ष में है.

कैराना में जाट और मुस्लिम मतदाता अच्छे खासे हैं. इसके अलावा दलित मत भी हैं. माना जा रहा है कि मुस्लिम, जाट और दलित अगर एकजुट होते हैं तो फिर आरएलडी उम्मीदवार तबस्सुम हसन की राह आसान हो जाएगी. इस सीट पर आरएलडी दो बार पहले भी जीत भी दर्ज कर चुकी हैं. इसके अलावा कैराना सीट से चौधरी अजीत सिंह की मां गायत्री देवी सांसद रह चुकी हैं. ऐसे में इस सीट को अपने पास बरकरार रखने की बड़ी चुनौती है.

कैराना सीट पर आरएलडी उम्मीदवार तबस्सुम हसन से ज्यादा जीत के मायने पार्टी प्रमुख चौधरी अजीत सिंह के लिए है. पार्टी अगर जीत दर्ज करने और जाट वोट को जोड़ने में सफल रहती है, तो महागठबंधन के लिए उनके रास्ते खुलेंगे. आरएलडी कैराना में हारती है तो उनके लिए आगे की राह मुश्किल हो जाएगी. इतना ही नहीं महागठबंधन में वो हिस्सा बनेंगे या नहीं ये भी कहना मुश्किल है.

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