चार साल बाद ऐसे स्वदेश लौटेंगे 39 भारतीयों के अवशेष

चार साल पहले इराक के मोसुल शहर में बगदादी के आतंकियों के हाथों मारे गए 39 भारतीयों के अवशेष अप्रैल के पहले हफ्ते में भारत लाए जाने का रास्ता साफ हो गया है. विदेश राज्य मंत्री जनरल वीके सिंह जरूरी मंजूरी मिलने के बाद एक अप्रैल को बगदाद जा रहे हैं.

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विदेश राज्यमंत्री वीके सिंह इस काम के लिए इराक जा रहे हैं विदेश राज्यमंत्री वीके सिंह इस काम के लिए इराक जा रहे हैं

परवेज़ सागर / शम्स ताहिर खान

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  • 31 मार्च 2018,
  • अपडेटेड 5:14 PM IST

चार साल पहले इराक के मोसुल शहर में बगदादी के आतंकियों के हाथों मारे गए 39 भारतीयों के अवशेष अप्रैल के पहले हफ्ते में भारत लाए जाने का रास्ता साफ हो गया है. विदेश राज्य मंत्री जनरल वीके सिंह जरूरी मंजूरी मिलने के बाद एक अप्रैल को बगदाद जा रहे हैं. सभी 39 भारतीयों के अवशेष फिलहाल, बगदाद के फॉरेंसिक डिपार्टमेंट में रखे गए हैं. खबरों के मुताबिक इराकी सरकार के साथ जरूरी कानूनी प्रक्रियाएं पूरी करने के बाद अगले हफ्ते एक विशेष विमान से सभी 39 भारतीयों के अवशेष भारत लाए जाएंगे.

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2014: मोसुल में मौजूद थे हजारों भारतीय

इराक का उत्तरी शहर मोसुल तब तक शांत था. बगदादी और आईएसएस की नापाक नजर अभी तक इस शहर पर नहीं पड़ी थी. हालांकि इराक के बाकी इलाकों पर धीरे-धीरे आईएसआईएस का शिकंजा कसता जा रहा था. मगर किसी को उम्मीद नहीं थी कि बगदादी मोसुल में भी दाखिल हो सकता है. क्योंकि तेल के कुएं की वजह से यहां की सुरक्षा व्यवस्था काफी कड़ी थी. शहर शांत था लिहाज़ा तब मोसुल में बड़े पैमाने पर कंस्ट्रक्शन का काम भी चल रहा था. उस वक्त यानी 2014 में करीब दस हजार भारतीय इराक में रह रहे थे. इनमें से एक बड़ी तादाद मजदूरों की थी. इन्हीं में से बहुत से मजदूर मोसुल की एक प्राइवेट कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम कर रहे थे.

जून 2014: ISIS किया था मोसुल पर कब्जा

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उत्तरी इराक के कई छोटे-मोटे शहरों से होते हुए अचानक आईएसआईएस के आतंकवादी जून के पहले हफ्ते में मोसुल पर धावा बोल देते हैं. दरअसल, बगदादी को अपनी लड़ाई जारी रखने के लिए पैसे की जरूरत थी. और मोसुल पर कब्जा कर वो तेल के भंडार पर कब्जा करना चाहता था. इसीलिए मोसुल पर कब्जे के लिए उसने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी. और आखिरकार कुछ दिन की लड़ाई के बाद ही पूरे मोसुल पर बगदादी का कब्जा हो जाता है.

कंस्ट्रक्शन कंपनी के क्वार्टर में थे 40 भारतीय

मोसुल में आईएस के धावा बोलते ही वहां काम कर रहे ज्यादातर विदेशी मजदूर और कर्मचारी जान बचा कर भाग निकलते हैं. मगर बहुत से वहीं फंसे रह जाते हैं. इनमें ज्यादातर भारत और बांग्लादेश के मजदूर थे. जून 2014 के तीसरे हफ्ते में आईएस के आतंकवादी मोसुल के करीब बदूश इलाके में एक रोज़ उस जगह जा पहुंचते हैं, जहां कंस्ट्रक्शन कंपनी के क्वार्टर में 40 भारतीय मजदूर रह रहे थे. उनके साथ करीब 55 बांग्लादेशी मजदूर भी वहां मौजूद थे.

बांग्लादेशी मजदूरों के साथ बच निकला था हरजीत

कंस्ट्रक्शन कंपनी का मालिक इराकी था. उसने बाद में बताया कि बगदादी के लोग तमाम मजदूरों को अपने साथ बंधकर बना कर वहां से किसी अनजान पर ले गए. इसके बाद उसे उनके बारे में कभी कोई जानकारी नहीं मिली. पर इराकी अधिकारियों के मुताबिक बंधक बनाने के बाद उन सभी लोगों को बदूश के ही इलाके में ले जाया गया था. फिर कुछ दिनों बाद उनमें से 55 बांग्लादेशी मजदूरों को अलग कर उन्हें रिहा कर दिया गया. बंधक बनाए गए 40 भारतीय मजदूरों में से एक हरजीत मसीह भी उन बांग्लादेशी मजदूरों के साथ रिहा हो गया था. दरअसल, उसने आईएस के आतंकवादियों को अपना असली नाम नहीं बताया था. लिहाजा उसे भी बांग्लादेशी समझ कर आतंकवादियों ने आज़ाद कर दिया.

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मसीह के दावे पर सरकार को नहीं था यकीन

आईएस के हाथों अगवा होने के बाद जून 2014 में ही किसी तरह एक मजदूर ने पंजाब अपने घर फोन कर बगदादी के हाथों बंधक बनाए जाने की ख़बर दी थी. उसके बाद फिर कभी उसका फोन नहीं आया और ना ही इसके बाद बाकी बचे 39 भारतीय मजदूरों की ही कभी कोई ख़बर आई. हालांकि रिहाई के बाद हरजीत मसीह ने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से संपर्क कर ये दावा किया कि उसके साथ बंधक बनाए गए 39 भारतीय मजदूरों को उसकी आंखों के सामने बगदादी के लोगों ने गोलियों से भून डाला था. मगर भारत सरकार का कहना था कि मसीह कुछ बातें झूठ बोल रहा था इसलिए उसके दावे पर यकीन नहीं किया गया.

बदूश की पहाड़ी पर हुआ था कत्लेआम

खैर, वक्त बीतता गया और लापता भारतीय मजदूरों की कोई ख़बर नहीं मिली. यहां तक कि तीन-तीन बार विदेश राज्य मंत्री जनरल वीके सिंह इराक भी गए. उधर, साल 2017 का खात्मा होते-होते मोसुल बगदादी के हाथों से निकल कर एक बार फिर आज़ाद हो चुका था. इराकी फोर्सेज अब मोसुल पर वापस कब्जा कर चुकी थी. लापता भारतीयों की तलाश अब मोसुल के अंदर तक पहुंच चुकी थीं. इसी बीच एक रोज़ बगदादी के खौफ से उबर चुके बदूश के स्थानीय लोगों ने बताया कि बदूश के करीब ही एक पहाड़ी पर बगदादी के आंतकियों ने कतार में खड़ा कर बहुत से लोगों को गोली मरी थी और फिर उन सभी को उसी पहाड़ी पर दफना दिया था.

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ऐसे खुला भारतीयों की मौत का राज

तीन साल की हुकूमत के दौरान मोसुल को बगदादी पूरी तरह से बर्बाद कर चुका था. हजारों लोग मारे गए थे. जगह-जगह सामूहिक कब्रिस्तान मिल रहे थे. जिनमें सैकड़ों लाशें दफन थीं. अब उन सबके बीच से 39 भारतीयों की लाशें ढूंढना वो भी तीन साल बाद बेहद मुश्किल काम था. लेकिन इराकी सरकारी के प्रयास और तकनीक के सहारे पता चला कि बदूश की पहाड़ी पर कई लाशे दफ्न है.

जब खुदाई की गई तो वहां से 39 लाशें बरामद हुई, जो अब पूरी तरह कंकाल बन चुकी थी. वहां से कुछ लंबे बाल और हाथ के कड़े भी मिले. जिससे भारत सरकार का शक पुख्ता हो गया. क्योंकि गुम हुए भारतीय भी 39 थे और वहां से मिले कंकाल भी. डीएनए जांच की प्रक्रिया शुरू हुई और तीन माह के भीतर एक बाद एक सभी डीएनए लापता भारतीयों के डीएनए से मैच हो गए. इस तरह से खुलासा हुआ कि उन सभी को तीन साल पहले ही कत्ल कर दिया गया था. अब बस उनके कंकाल भारत लाए जा रहे हैं.

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