पूर्व चीन सागर में सेनकाकू द्वीप समूह में तनाव, दक्षिण चीन सागर में हॉन्ग कॉन्ग में तनाव आदि. वर्षों से, चीन के आक्रामक तेवरों ने इस एशियाई दिग्गज की क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं की गवाही दी है. लद्दाख की हालिया घटना के सामने आने से पहले ही दीवार पर लिखी इबारत साफ थी.
चीन ने हाल ही में पूरी गलवान घाटी के अपना क्षेत्र होने का दावा किया है. नई दिल्ली ने बीजिंग के दावे को तत्काल खारिज किया. सैटेलाइट तस्वीरों के गहराई से विश्लेषण से पता चलता है कि कैसे चीन नदी के इकोसिस्टम (पारिस्थितिकी तंत्र) को बदल कर गलवान पर रिक्लेम के लिए आगे बढ़ा.
तस्वीरों में गलवान नदी की चैनलिंग
2010 तक, सैटेलाइट तस्वीरें साफ तौर पर दिखाती हैं कि पूरी गलवान घाटी बहुत ही संकरा स्ट्रैच थी, जहां कोई सड़क इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं था. चीनियों ने 2015-2016 में यहां चोरी छिपे सड़कों का निर्माण शुरू किया. तब की सैटेलाइट तस्वीरों में बिना कोई सैनिक तैनाती सिर्फ एक झोपड़ीनुमा ढांचा दिखता है.
लेकिन, इस साल मई के महीने में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) ने सैन्य अभ्यास के बहाने इस क्षेत्र में मोर्चाबंदी की और LAC तक नदी के किनारों के साथ-साथ सभी जगहों पर सैनिकों को इकट्ठा किया.
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चीनियों ने जल्द ही महसूस किया कि इस वाटरवे (जलमार्ग) के साथ बड़े पैमाने पर सैनिक तैनाती के लिए जगह नहीं है. फिर चीनी इंजीनियरों ने जगह बनाने के लिए एक अनोखा तरीका निकाला- बुलडोजरों और जेसीबी की मदद से गलवान नदी का आकार सीमित करने के लिए इससे पानी के कई चैनल निकालना.
कई विदेशी और भारतीय मीडिया आउटलेट्स ने दावा किया कि PLA की ओर से दर्जनों बुलडोजरों के साथ गलवान नदी को ब्लॉक किया जा रहा है. इसने 15 जून की रात को नदी की नीचे की ओर धारा (डाउनस्ट्रीम) से भारतीय चौकियों पर बाढ़ आने की अफवाहों को जन्म दिया.
16 जून को देखे गए ब्लॉक से साफ था कि एक दिन पहले डाउनस्ट्रीम किसी क्षेत्र में बाढ़ नहीं आई. 16 जून की सैटेलाइट तस्वीरों में देखा गया कि एक बुलडोजर असल में नदी के उत्तरी किनारे पर एक चैनल बना रहा है ताकि दो पुलों की जरूरत से बचा जा सके.
तस्वीरें साफ तौर पर दिखाती हैं कि चीनी गलवान नदी के किनारों पर LAC से पूरे 40 किलोमीटर तक जगह बनाने और फिर निर्माण के लिए कवायद कर रहा है. इसके लिए वो क्षेत्र या नदी की इकोलॉजी का भी कोई ध्यान नहीं रख रहा.
जमीन के लिए जगह बनाने को पहाड़ों वाली दिशा को खोदा जा रहा है. ये बिना सोचे समझे कि ऐसी गतिविधियों से दीर्घकालिक तौर पर पर्यावरण पर कितना बुरा असर पड़ेगा.
इस तरह हासिल जमीन पर पानी के जमाव को देखा जा सकता है. जो वक्त बीतने के साथ सूख जाएगा या पम्पों से निकाल दिया जाएगा.
LAC के पास काम करने वाले चीनी इंजीनियर्स नदी की दिशा बदलने के साथ उसकी चौड़ाई भी कम कर रहे हैं ताकि भविष्य में सैनिकों की तैनाती और स्थाई बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए बड़े पैमाने पर जमीन उपलब्ध हो सके.
चीनी क्लेम लाइन (CCL) जिसे LAC के नाम से जाना जाता है, श्योक और गलवान नदियों के संगम के बहुत करीब है. इस संगम को गलवान माउथ के तौर पर भी जाना जाता है. ये LAC से लगभग 4 किमी पश्चिम में स्थित है.
इस स्थान की अहमियत इसलिए बढ़ जाती है क्योंकि दरबुक से श्योक होते हुए दौलत बेग ओल्डी तक सड़क, भारतीय लैंडिंग स्ट्रिप, पश्चिमी तट पर श्योक नदी के साथ समानांतर चलती है.
इसलिए, हालिया तनाव बढ़ाए जाने को PLA की इस साजिश के तौर पर देखा जा रहा है चीनी ना सिर्फ क्षेत्र पर कब्जा जमाना चाहते हैं बल्कि LAC के पास भारतीय इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण को भी रोकना चाहते हैं.
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तस्वीरों में बिल्ड-अप
29 मई की हालिया सैटेलाइट तस्वीरों में गलवान टकराव वाले प्वाइंट से करीब 40 किमी पूर्व में चीनी सैनिकों का बड़ा बिल्ड-अप देखा जा सकता है. PLA की नापाक गतिविधियों को इंडिया टुडे टीवी ने 18 जून 2020 को बेनकाब किया.
चीन की रिक्लेमेशन दक्षता
चीन की रिक्लेमेशन में अपनी खास दक्षता है. इसने दुनिया को बहुत साफ तौर पर दिखाया है कि वो गहरे समुद्र में भी क्षेत्रों को प्राप्त कर सकता है. चीन ने 18 महीनों के भीतर दक्षिण चीन सागर में 3,200 एकड़ से अधिक क्षेत्र को हासिल किया, जिसने पूरी दुनिया को हैरान कर दिया.
चीन के हालिया दावे
महाराजा रणजीत सिंह की सेना के एक डोगरा जनरल जोरावर सिंह कलहुरिया (1784-1841) ने पैंगोंग त्सो समेत तिब्बत के पश्चिमी हिस्सों पर विजय हासिल की. पूर्वी लद्दाख बहुत लंबे समय से भारत का हिस्सा रहा है.
ब्रिटिश हुकूमत के दौरान, संप्रभुता का दावा करने के लिए इन बंजर क्षेत्रों में कई अभियान चलाए गए. हालिया गलवान गतिरोध ने भारत और चीन दोनों के लिए गलवान नदी की अहमियत को दर्शाया है. दोनों देश, जो पूर्वी लद्दाख या अक्साई चिन क्षेत्र पर क्षेत्रीय अधिकार का दावा कर रहे हैं. यहां बीजिंग ने 1950 के दशक में कब्जा कर लिया था और 1962 में अपने दावों को और बढ़ा कर पेश किया.
इस महीने जो खुलासा हुआ, वह यह भी बताता है कि चीनी PLA का मंसूबा यहां स्थायी तौर पर टिकने के लिए है. साथ ही उसकी निश्चित रूप से थोड़े समय के भीतर ही आधुनिक सड़कों और रिहाइशी बुनियादी ढांचा का नेटवर्क खड़ा करने की मंशा है.
(कर्नल (रिटायर्ड) विनायक भट इंडिया टुडे के कंसल्टेंट हैं, वे सैटेलाइट तस्वीरों के विश्लेषक हैं और उन्होंने 33 वर्ष तक भारतीय सेना में सेवा की)
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