टॉप इंटरनेशनल रिलेशन्स एक्सपर्ट बोले, अमेरिका ने चीन के उदय को खाद-पानी देने की मूर्खता की

राजनीतिक विज्ञानी और शिकागो यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के विचारक जॉन मियरशाइमर ने कहा कि अमेरिका ने पिछली सदी के आखिरी दशक और इस सदी के पहले डेढ़ दशक में चीन को आर्थिक दृष्टि से और अधिक ताकतवर बनने में सहयोग किया, असल में हमने संभावित समकक्ष प्रतिस्पर्धी खड़ा कर लिया. ये हैरान करने वाली मूर्खता है.

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सांकेतिक तस्वीर (Courtesy- Reuters) सांकेतिक तस्वीर (Courtesy- Reuters)

राहुल कंवल

  • नई दिल्ली,
  • 21 जून 2020,
  • अपडेटेड 10:07 AM IST

  • जॉन मियरशाइमर ने कहा- प्रभुत्ववादी शक्ति बनने का इच्छुक है चीन
  • भारत के साथ सरहद की यथास्थिति बदलना चाहता हैः मियरशाइमर

राजनीतिक विज्ञानी और शिकागो यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के विचारक जॉन मियरशाइमर ने 20 साल पहले भविष्यवाणी की थी कि 21वीं शताब्दी में चीन का उदय शांतिपूर्ण नहीं होगा. चीन और अमेरिका के बीच सुरक्षा प्रतिस्पर्धा होगी, जिसका अंत युद्ध में होगा.

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इंडिया टुडे विशेष संवाद में वैश्विक चिंतकों के साथ हिस्सा लेते हुए जॉन मियरशाइमर ने कहा कि चीन प्रभुत्ववादी शक्ति बनने का इच्छुक है और साथ ही भारत के साथ अपनी सरहद की यथास्थिति बदलना चाहता है.

क्या अमेरिका चीन की बढ़ती ताकत को एडजस्ट करने में नाकाम रहा है? इस सवाल के जवाब में प्रो. मियरशाइमर ने कहा कि अमेरिका चीन को एडजस्ट करने में नाकाम रहने से भी बढ़कर कुछ खराब किया.

प्रोफेसर ने कहा, “अमेरिका ने पिछली सदी के आखिरी दशक और इस सदी के पहले डेढ़ दशक में चीन को आर्थिक दृष्टि से अधिक और अधिक ताकतवर बनने में सहयोग किया, असल में हमने संभावित समकक्ष प्रतिस्पर्धी खड़ा कर लिया. ये हैरान करने वाली मूर्खता है.’’

मियरशाइमर ने साथ ही यह भी कहा कि अमेरिका ने खतरे को पहचाना और फिर चीन पर काबू पाने की कोशिश में तेजी से कदम उठाए. पारम्परिक तौर पर अंतरराष्ट्रीय संबंधों को लेकर एक और थ्योरी है, जिसे जाने-माने पूर्व एशियाई राजनयिक और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के पूर्व अध्यक्ष किशोर महबूबानी जैसे थिंकर्स की ओर से बढ़ाया जाता है. महबूबानी नई किताब ‘’Has China won? The Chinese Challenge to American Primacy” (क्या चीन जीत चुका है? अमेरिकी प्रधानता को चीनी चुनौती) के लेखक हैं.

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महबूबानी का तर्क है कि चीन 21वीं सदी में अमेरिका के विश्व आधिपत्य वाले दर्जे पर कब्जा कर लेगा. हालांकि उनका मानना है कि चीन यथास्थिति वाली शक्ति है, न कि क्रांतिकारी, और चीन से टकराव अपरिहार्य और टाला जा सकने वाला, दोनों ही है.

एशिया और पश्चिम में बढ़ते टकराव संबंधी महबूबानी के नजरिए की प्रतिक्रिया में मियरशाइमर ने कहा, ‘’ये पश्चिम के खिलाफ एशिया का नहीं, ये अपने कई पड़ोसियों के खिलाफ चीन का मुद्दा है, जिनमें भारत और चीन भी हैं.”

प्रो मियरशाइमर ने कहा, “आप ऐसी स्थिति को देखने जा रहे है कि भारत और अमेरिका, वियतनाम और अमेरिका, भारत-जापान, ऑस्ट्रेलिया-अमेरिका, सभी चीन के खिलाफ संतुलनवादी सहयोग के लिए हाथ मिला सकते हैं.”

एशिया के सर्वाधिक प्रभावकारी थिंक टैंक्स में से एक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के अध्यक्ष समीर सरन भी वैश्विक चिंतकों के पैनल में शामिल रहे जिन्होंने इंडिया टुडे पर भारत-चीन की स्थिति पर विमर्श किया.

सरन से जब पूछा गया कि LAC पर मौजूदा टकराव के संदर्भ में भारत की क्या भूमिका देखते हैं, साथ ही चीन और अमेरिका के बीच टकराव पर उनकी क्या राय है, तो उन्होंने “ 3-M फ्रेमवर्क” का हवाला दिया.

सरन ने कहा, “आप एक मिडिल किंगडम पहचान का दोबारा बड़ा उदय होते देखेंगे. वे (चीन) मानते हैं कि वो विश्व के सेंटर में है और नियम उनके वैश्विक और घरेलू व्यवहार पर रोक नहीं लगा सकेंगे.”

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सरन ने अन्य ‘M’ को लेकर कहा. चीनी अपवाद को दो और ‘M’ समर्थन देते हैं- ‘’मॉडर्न टूल्स ऑफ एंगेजमेंट (अनुबंध के आधुनिक औजार) और मध्ययुगीन मानसिकता.’’

सरन ने कहा, उन्होंने वैश्विक मंचों को हासिल करना और उन पर प्रभुत्व दिखाना शुरू कर दिया, आधुनिक सेनाओं में निवेश करना शुरू किया और इसे बहुत बेहतर ढंग से किया. हालांकि वो मिडिल किंगडम हो सकते हैं, मानसिकता मध्ययुगीन हो सकती है. वो इनोवेशन, उद्यमिता और व्यक्तियों पर कंट्रोल में विश्वास रखते हैं. उन्होंने अधिनायकवादी और दमनकारी शासनों के साथ भागीदारी की. उन्होंने टकरावों के दौरान कीलें जड़ी लोहे की छड़ों और कंटीले तारों वाले बेसबास बैट्स का इस्तेमाल किया. वो भी ये प्रतिबद्धता जताने के बाद कि हथियारों का इस्तेमाल नहीं होगा.’’

गलवान घाटी में हिंसक टकराव उन रास्तों के अंतर को दिखाता है जो चीन और भारत एशिया के भविष्य को लेकर सोचते हैं. चीन सोचता है कि सूरज सिर्फ पूर्व में उग सकता है. वहीं भारत विश्व मंच पर प्लेयर बनने की प्रतिबद्धता रखता है, जो अपनी क्षमताओं को तेजी से विकसित करना चाहता है लेकिन किसी भी देश का बिना सवाल अनुसरण करने वाला नहीं बनना चाहता.

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