लुभाने में लगे शाह और राहुल, किसके खेमे में जाएंगे गुजरात के पाटीदार?

राहुल गांधी ने सौराष्ट्र के जरिए जहां पटेल समुदाय को जोड़ने की कवायद की तो वहीं बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी अपने परंपरागत वोटों (पटेल) को साधने के लिए हर संभव कोशिश में लग गए हैं.

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बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह

कुबूल अहमद

  • नई दिल्ली,
  • 02 अक्टूबर 2017,
  • अपडेटेड 1:17 PM IST

गुजरात में विधानसभा चुनाव की सरगर्मियां तेज हो गई हैं. कांग्रेस जहां सत्ता में वापसी के लिए हाथ पांव मार रही है, तो बीजेपी अपनी सत्ता को बरकरार रखने की जद्दोजहद में है. दोनों पार्टियों की नजर राज्य के पटेल वोटों पर है. राहुल गांधी ने सौराष्ट्र के जरिए जहां पटेल समुदाय को जोड़ने की कवायद की तो वहीं बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी अपने परंपरागत वोटों (पटेल) को साधने के लिए हर संभव कोशिश में लग गए हैं.  

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गुजरात के किंगमेकर

गुजरात में पाटीदार मतदाता करीब 20 फीसदी हैं. मौजूदा सरकार में करीब 40 विधायक और 7 मंत्री पटेल समुदाय से हैं. पाटीदार समाज बीजेपी का परंपरागत वोटर रहा है.  2014 में नरेंद्र मोदी के गुजरात के सीएम से देश का पीएम बन जाने के बाद से पाटीदारों पर बीजेपी की पकड़ कमजोर हुई है. हार्दिक पटेल के नेतृत्व में शुरू हुए पटेल आंदोलन ने बीजेपी की पकड़ को और कमजोर कर दिया है. हार्दिक पटेल बीजेपी के खिलाफ लगातार माहौल बनाने के लिए हर संभव कोशिश में लगे हैं और पिछले दिनों तो उन्होंने संकल्प यात्रा भी निकाली थी.

2012 में पटेलों की पहली पसंद बीजेपी

गुजरात में पटेलों में दो उप-समुदाय हैं. इनमें एक लेउवा पटेल और दूसरा कड़वा पटेल. हार्दिक, कड़वा पटेल हैं. केशुभाई पटेल लेउवा समुदाय से हैं.1990 के दशक से ही दो-तिहाई से ज्यादा पटेल, बीजेपी के पक्ष में वोट करते आए हैं. पाटीदार समुदाय में लेउवा का हिस्सा 60 फीसदी और कड़वा का हिस्सा 40 फीसदी है. कांग्रेस को कड़वा के मुकाबले लेउवा से ज्यादा समर्थन मिलता रहा है. पाटीदार समुदाय संगठित होकर मतदान करता है. पिछले चुनाव 2012 के आंकड़े को देखें तो लेउवा पटेल के 63 फीसदी और कड़वा पटेल के 82 फीसदी वोट बीजेपी को मिले थे

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पाटीदारों पर बीजेपी का चाणक्य दांव

पटेलों की नाराजगी दूर करने के लिए बीजेपी के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह ने कमान संभाल ली है. अमित शाह ने गुजरात चुनाव का शंखनाद कर दिया है. पटेलों को साधने के लिए बीजेपी ने सरदार पटेल के गांव करमसद से 'मिशन गुजरात' का आगाज किया. रविवार को गुजरात के डिप्टी CM नितिन पटेल के नेतृत्व में गौरव यात्रा निकली, जिसे अमित शाह ने हरी झंडी दिखाई.

लेउवा पटेल को साधेंगे जीतू वाघाणी

गुजरात गौरव यात्रा का दूसरा चरण बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष जीतू वाघाणी की अगुवाई में आज पोरबंदर से शुरू हो रहा है. जीतू वाघाणी लेऊवा पटेल हैं. इस तरह शाह दोनों पटेल नेताओं को पूरे गुजरात के दौरे पर भेजकर पाटीदार समुदाय को साधने की कोशिश कर रहे हैं.

गौरव यात्रा के जरिए 149 विधानसभा पर नजर

नितिन पटेल और जीतू वाघाणी के नेतृत्व में निकली दोनों यात्राएं 4700 किमी से अधिक की दूरी तय करेंगी और राज्य के कुल 182 विधानसभा क्षेत्रों में ग्रामीण क्षेत्र की 149 सीटों से होकर गुजरेंगी. इसका समापन 16 अक्टूबर को होगा और पीएम नरेंद्र मोदी सभा को संबोधित करेंगे.

सरदार पटेल के सहारे बीजेपी

बीजेपी अध्यक्ष शाह ने कांग्रेस को घेरने के लिए बाकायदा सरदार पटेल का सहारा लिया. उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने सरदार पटेल को देर से क्यों दिया भारत रत्न ? शाह ने नर्मदा बांध के मुद्दे पर भी कांग्रेस को घेरा और कहा, कांग्रेस ने क्यों रोका था बांध का काम?

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पटेलों पर गुजरात सरकार मेहरबान

विजय रुपानी के नेतृत्व वाली गुजरात की बीजेपी सरकार ने पटेल समुदाय के आरक्षण के लिए आयोग को मंजूरी दी है. इसके अलावा जिन पटेल समुदाय के लोगों पर आंदोलन की वजह से केस दर्ज हुआ था, उसे भी सरकार वापस लेने पर विचार कर रही है. बीजेपी सरकार ने पाटीदार समुदाय के प्रतिनिधियों से बातचीत की और पाटीदारों को खुश करने के लिए कई कदमों का ऐलान किया है.

पटेलों पर राहुल की नजर

कांग्रेस भी पटेलों को जोड़ने की कवायद में लगी है. पिछले दिनों कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने गुजरात में अपना चुनावी आगाज पटेलों के दुर्ग सौराष्ट्र से किया. राहुल ने पटेलों का दिल जीतने के लिए सभी कवायद की.  राहुल ने पटेल समुदाय को संबोधित करने से लेकर उनके आत्मगौरव माने जाने वाले बोडलधाम मंदिर तक में माथा टेका.

कांग्रेस का बनता समीकरण

पिछले दो दशक से बीजेपी सत्ता में है. यही वजह है कि बीजेपी सरकार के खिलाफ एंटीइकंबेंसी का भी माहौल है. ऐसे में कांग्रेस को सत्ता में लौटने की उम्मीद भी नजर आने लगी है. 1985 में कांग्रेस का वोट 55.6 फीसदी था जो गिरकर 2012 में 38.9 फीसदी रह गया. इसी अवधि में बीजेपी का ग्राफ 15 फीसदी से बढ़ते हुए 48 फीसदी तक पहुंच गया. पिछले तीन चुनावों में बीजेपी के लिए, ये 48-50 फीसदी के बीच रहा है. कांग्रेस ने भी 1990 में 30.7 फीसदी से अपना प्रदर्शन सुधारते हुए 2012 में इसे 39 फीसदी तक पहुंचाया. औसतन बीजेपी और कांग्रेस के बीच 10 फीसदी वोटों का अंतर रहा है. 2015 में जिला पंचायत के चुनाव में सौराष्ट्र की 11 सीटों में से 8 पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी.

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