कौन जीतेगा अगला लोकसभा चुनाव? DUSU के नतीजों से मिलते हैं अहम संकेत

दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संगठन (डूसू) का चुनाव भी अपने आप में बेहद दिलचस्प होता है क्योंकि यहां के परिणाम देश की राजनीतिक भविष्य का भी एक तरह से फैसला करते हैं. कम से कम पिछले 5 परिणाम इसकी तस्दीक करते हैं.

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डूसू के परिणाम आम चुनाव के लिए हैं रुझान डूसू के परिणाम आम चुनाव के लिए हैं रुझान

सुरेंद्र कुमार वर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 13 सितंबर 2018,
  • अपडेटेड 11:03 AM IST

किसी अन्य छात्र संगठन के चुनाव की तुलना में दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संगठन (डूसू) का चुनाव बेहद खास होता है. दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संगठन का आज चुनाव परिणाम आना है जिस पर हर किसी की नजर रहेगी, खासकर बीजेपी और कांग्रेस की.

लोकसभा चुनाव से पहले हुए डूसू के चुनाव देश के अगले आम चुनाव के भविष्य की ओर इशारा कर सकते हैं. जो भी राजनीतिक दल छात्र संगठन के इस चुनाव में बाजी मारेगा उसी से संबंधित दल के अगले लोकसभा चुनाव में जीतने की संभावना प्रबल हो जाएगी.

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लोकसभा से ठीक पहले हुए पिछले 5 डूसू चुनाव के परिणाम लोकसभा चुनाव का एक तरह के परिणाम बता देते हैं. यही कारण है कि बीजेपी और कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व डूसू चुनाव के लिए उम्मीदवारों के चयन में सीधे-सीधे शामिल रहा.

मुख्य मुकाबला एबीवीपी और एनएसयूआई में

डूसू चुनाव में मुख्य मुकाबला अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी ) और नेशनल स्टूडेंटस यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई) के बीच रहा है. एबीवीपी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की छात्र शाखा है और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) जिसकी राजनीतिक शाखा है. जबकि एनएसयूआई कांग्रेस का छात्र संगठन है.

डूसू चुनाव में एबीवीपी और एनएसयूआई के बीच मुख्य मुकाबला देखने को मिलता है जबकि दिल्ली के एक अन्य प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में लेफ्ट पार्टी का दबदबा रहा है.

केंद्र में बीजेपी या कांग्रेस ही सत्तारुढ़ होती है और इसी से संबंधित छात्र संगठन डूसू के चुनाव में जीत हासिल करते रहे हैं. आइए, नजर डालते हैं कि 5 पिछले आम चुनाव से पहले हुए दिल्ली के छात्र संगठन के चुनाव परिणाम पर जिसका असर अगले लोकसभा चुनाव में भी दिखा.

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पिछले 5 चुनाव और लोकसभा

1997 में डूसू चुनाव में एबीवीपी ने सभी 4 प्रमुख सीटों (अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव और महासचिव) पर कब्जा जमा लिया था. जबकि 1998 के आम चुनाव में बीजेपी की अगुवाई में एनडीए ने जीत हासिल की और सत्ता पर काबिज हुई. तब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने थे.

1998 में डूसू चुनाव में एबीवीपी को 2 अहम पदों (अध्यक्ष और महासचिव) पर जीत हासिल की थी जबकि एनएसयूआई के खाते में उपाध्यक्ष और सचिव का पद आया था. इसके अगले साल यानी 1999 में हुए चुनाव में एनडीए फिर से सत्ता में लौटी.

2003 के डूसू चुनाव परिणाम की बात करें तो इस बार एनएसयूआई ने सभी चारों सीटों पर कब्जा जमाते हुए क्लीन स्वीप कर लिया था. फिर 2004 में हुए आम चुनाव में वाजपेयी की अगुवाई में एनडीए को अप्रत्याशित रूप से हार का सामना करना पड़ा और कांग्रेस की अगुवाई में यूपीए सत्ता में लौटने में कामयाब रही.

2008 में एबीवीपी ने डूसू चुनाव में अध्यक्ष पद पर जीत हासिल की, लेकिन बाकी 3 सीटों पर उसे हार मिली. वर्तमान में बीजेपी की प्रवक्ता नुपूर शर्मा ने तब अध्यक्ष पद पर जीत हासिल की थी. बाकी में उनकी पार्टी को हार मिली थी. इसका असर 2009 के लोकसभा चुनाव में भी दिखा जब एक बार फिर एनडीए को हार का सामना करना पड़ा और मनमोहन सिंह की अगुवाई में यूपीए सत्ता पर लगातार दूसरी बार पकड़ बनाए रखने में कामयाब हो गई.

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अब बात करते हैं 2013 के डूसू चुनाव की. इस बार छात्र संगठन के चुनाव में एबीवीपी ने जोरदार प्रदर्शन किया और 4 में से 3 सीटों पर कब्जा जमा लिया. उसके खाते में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और संयुक्त सचिव का पद गया. इसके बाद 2014 के चुनाव में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की और 543 सीटों पर हुए चुनाव में 282 सीटों पर कब्जा जमाया. जबकि एनडीए के खाते में 325 सीटें आई.

डूसू के जिस तरह से पिछले 5 परिणाम आए हैं उसके आधार पर हर किसी की नजर इस बार के भी छात्र संगठन के चुनाव पर है क्योंकि सभी दल अगले आम चुनाव में अभी से जुट गए हैं. आज गुरुवार को डूसू का परिणाम आने वाला है. अब देखना होगा कि बीजेपी और कांग्रेस आज के परिणाम देखकर अपनी रणनीति में किस तरह का बदलाव करते हैं.

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