कुछ फिल्में क्यों बनाई गई हैं, ये सवाल उन्हें देखने के बाद अक्सर आता है. कम से कम सुशांत और जैकलीन की ड्राइव देखकर तो ऐसा ही लगता है. पढ़िए धर्मा प्रोडक्शन तले बनी, तरुण मनसुखानी की डायरेक्ट ड्राइव का रिव्यू.
कभी सोचा है हॉलीवुड फिल्म फास्ट एंड फ्यूरियस और धूम 2 को मिलाकर बनाया जाए और उसमें सलमान खान की फिल्मों की एंडिंग डाली जाए, तो क्या होगा? सुशांत सिंह राजपूत और जैकलीन फर्नांडिस की सस्ती कॉपी फिल्म ड्राइव का जन्म होगा, जिसके पहले सीन से आखिरी सीन तक आप खुद से यही सवाल पूछेंगे कि मैं अपने आप पर ये जुल्म क्यों कर रहा हूं?
फिल्म में कहानी के नाम पर बस कन्फयूजन
इस फिल्म की कहानी क्या है ये आप न जाने तो ही अच्छा है. इतनी उलझी और घिसी-पीटी कहानी पर एक नई फिल्म बनाने की जरूरत क्यों थी ये मुझे समझ नहीं आया. जो मुझे समझ आया वो ये कि जैकलीन फर्नांडिस का किरदार तारा एक चोर है, जिसे रेसिंग का शौक है. सुशांत सिंह राजपूत एक मिस्टीरियस लड़के के किरदार में हैं, जिनका नाम पूरी फिल्म में बताया ही नहीं गया है. हां, उन्हें फिल्म के अंत में मिस्टर शर्मा जरूर कहा जाता है.
तारा (जैकलीन) के दो दोस्त हैं बिक्की (विक्रमजीत विर्क) और नैना (सपना पब्बी), जो काफी फ्रॉड इंसान हैं. सुशांत और जैकलीन इन दोनों दोस्तों संग मिलकर एक बड़ी चोरी प्लान करते हैं, जो कि पता है कहा करनी है? *ड्रम रोल्स* राष्ट्रपति भवन में !
जी हां, इन दोनों फालतू चोरों की फालतू चोरी, दिल्ली के राष्ट्रपति भवन में होने वाली है, जहां एक भ्रष्ट अफसर ने अपना करोड़ों का काला धन छुपाकर रखा है. उस ही पैसे हो सुशांत-जैकलीन चुराना चाहते हैं. फिल्म की कहानी तो घिसी-पिटी थी ही, साथ ही इसका ट्रीटमेंट उससे भी ज्यादा खराब था.
रेसिंग से लेकर चोर का चोरी करना और दूसरी चोरी के लिए क्लू छोड़कर जाना ऐसी चीजें हैं, जो हम हॉलीवुड से लेकर बॉलीवुड में देख चुके हैं. इतना ही नहीं इस फिल्म को देखकर आपको उन सभी फिल्मों की याद भी आएगी, जिनमें आप ऐसी रेसिंग और चोरी की कहानी देख चुके हैं. फास्ट एंड फ्यूरियस को कॉपी करने की कोशिश अच्छी थी, लेकिन जो मुंह के बल मेकर्स गिरे हैं, वो भी कमाल था.
अगर आपने धूम 2 देखी है तो आपको याद होगा कि ऋतिक रोशन का उस फिल्म में चोरी करने का अंदाज एकदम अलग था. इसके साथ ही वो हर चोरी के साथ अपनी निशानी छोड़कर जाते थे, बस वही पूरा सीक्वेंस यहां कॉपी-पेस्ट किया गया है, लेकिन उसको बेहतर बनाने की जगह एकदम बेकार कर दिया गया है.
क्योंकि ये दिल्ली की कहानी है तो रेसिंग भी दिल्ली में ही होगी. अब अगर आप सोच रहे हैं कि दिल्ली में ये लोग कहां रेस लगाएंगे तो बता दूं कि डायरेक्टर तरुण मनसुखानी ने इसके लिए जगह भी ढूंढ निकाली है. जैकलीन की धुआंदार रेस इंडिया गेट से छत्तरपुर के एरिया में होती है. इस 'कमाल' की कहानी को डायरेक्टर तरुण मनसुखानी ने लिखा है.
एक्टिंग के नाम पर 'कलंंक' है फिल्म
फिल्म में एक्टिंग की बात ना ही की जाए तो अच्छा होगा. सुशांत सिंह राजपूत, जहां हम सभी को छिछोरे, काई पो छे, एमएस धोनी में अपने काम से सुपर खुश कर चुके हैं, वो इस फिल्म में क्या कर रहे हैं और सबसे बड़ा सवाल- क्यों कर रहे हैं? ये मेरी समझ के पार है. जैकलीन फर्नांडिस पूरा समय एक्टिंग करने की कोशिश कर रही हैं बस.
इन दोनों के अलावा बोमन ईरानी, पंकज त्रिपाठी और विभा छिब्बर जैसे बढ़िया एक्टर्स इस फिल्म में हैं और एक का भी काम अच्छा नहीं है. मुझे इस फिल्म को देखने से पहले पता ही नहीं था कि पंकज त्रिपाठी खराब एक्टिंग भी कर सकते हैं. बोमन को देखकर भी बहुत निराशा हुई. सपना और विक्रमजीत की बात ना करें तो अच्छा होगा.
फिल्म में डायलॉग्स तो बुरे हैं ही साथ ही एक्टर्स की डायलॉग डिलीवरी भी खराब है. फिल्म के सीक्वेंस मजेदार नहीं हैं. रेसिंग का एक भी सीन असली नहीं है. नकली सीन में भी जबरदस्त रेस होती देखने में कोई मजा नहीं है. फिल्म में सिनेमेटोग्राफी के नाम पर आपको सिर्फ जैकलीन का अड्डा और राष्ट्रपति भवन देखने को मिलेगा.
VFX के नाम पर फिल्म में मजाक हुआ है
इसके अलावा ज्यादातर सीन्स ग्रीन स्क्रीन पर फिल्माए लगते हैं. VFX के नाम पर फिल्म में मजाक हुआ है. फिल्म में गिनती की 2 रेस और 2 कार चेसिंग सीक्वेंस हैं और इनमें से एक में भी असली गाड़ियों का इस्तेमाल नहीं हुआ है. सब कुछ बहुत सस्ते और घटिया VFX से बनाया गया है. इन सीन्स को देखकर आपको बहुत लो क्वालिटी वाले, नकली से कार वीडियो गेम की याद आती है, जिसे आप खेलना भी नहीं चाहेंगे.
एक्शन के नाम पर फनी सीन्स की भरमार
फिल्म में सुशांत, जैकलीन, सपना और विक्रम चोरी से पहले राष्ट्रपति भवन में एंट्री के लिए अफसरों के साइन भी लेते हैं और बाद में चोरी के लिए मैक्वीन चैलेंज की मदद भी लेते हैं. फिल्म में जोक्स जबरदस्ती घुसाने की कोशिश की गई है, जो बिल्कुल भी फनी नहीं थे. एक चेस सीक्वेंस में तो सभी चोर अपनी गाड़ी साधारण रोड से एयरपोर्ट के रनवे तक ले जाते हैं. इतना ही नहीं एयरप्लेन से टक्कर होने की कगार पर भी आ जाते हैं.
इससे भी बड़ी बात ये कि दिल्ली पुलिस की जीप फरारी जैसी रेसिंग कार का पीछा भी कर रही हैं और उनकी स्पीड को मैच भी कर रही हैं. इतना सबकुछ कम था तो सलमान भाई की फिल्मों से प्रेरित होकर इस फिल्म की एंडिंग बना दी गई. भाई की फिल्मों में तो लोग किसी तरह उन एंडिंग्स को पचा लेते हैं, लेकिन यहां तो वो भी नहीं हो सकता.
फिल्म में सुनने लायक है एक गाना
आखिर में बात फिल्म के म्यूजिक की. इस फिल्म का म्यूजिक भी पूरी फिल्म की तरह खराब है. सिर्फ और सिर्फ एक गाना, जिसका नाम है मखना, पूरी फिल्म में अच्छा था. ये गाना कैची तो है ही, साथ ही इसकी सबसे अच्छी बात थी कि इसमें किसी को भी एक्टिंग नहीं करनी थी. सभी एक्टर्स ने एक फोन और सेल्फी स्टिक लेकर ढेर सारी मस्ती की, जिसे इस पूरे गाने में दिखाया गया.
अब एक गाने को देखने के लिए पूरी फिल्म देखने की क्या जरूरत. एक सबसे जरूरी बात ये कि इस फिल्म में करण जौहर के प्रोडक्शन में बनने वाली फिल्म जैसी कोई भी बात नहीं है. तो अगर अपना वीकेंड, वीकडे या फिर कोई भी आम दिन या दिन के दो घंटे बर्बाद ना करने हों, तो फिल्म ड्राइव को भूलकर भी मत देखना.
पल्लवी