प्रियंका या सिंधिया- राहुल गांधी ने यूपी में किसे दिया ज्यादा मुश्किल टास्क?

उत्तर प्रदेश की कुल 80 लोकसभा सीटों में से अगर लखनऊ को सेंट्रल प्वाइंट मानते हैं तो पश्चिम यूपी में 43 और पूर्वांचल में 37 लोकसभा सीटें आती हैं. इस तरह से ज्योतिरादित्य सिंधिया के जिम्मे प्रियंका गांधी से ज्यादा सीटें आई हैं.

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ज्योतिरादित्य सिंधिया, प्रियंका गांधी (फोटो-aajtak) ज्योतिरादित्य सिंधिया, प्रियंका गांधी (फोटो-aajtak)

कुबूल अहमद

  • नई दिल्ली,
  • 24 जनवरी 2019,
  • अपडेटेड 3:55 PM IST

उत्तर प्रदेश में वेंटिलेटर पर पड़ी कांग्रेस को 2019 लोकसभा चुनाव से पहले जिंदा करने के लिए पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपना सबसे बड़ा दांव चल दिया है. इसके लिए राहुल ने अपने सबसे दो खास लोगों प्रियंका गांधी और जियोतिरादित्य सिंधिया को मोर्चे पर उतार दिया है. राहुल ये जानते हैं कि देश जीतना है तो पहले यूपी जीतना होगा. प्रियंका गांधी के राजनीति में कदम रखने के साथ ही उन्हें पूर्वांचल की जिम्मेदारी सौंपी गई है तो पश्चिम यूपी का प्रभार ज्योतिरादित्य सिंधिया के कंधों पर है. ऐसे में सवाल है कि दोनों नेताओं में से किसके सामने ज्यादा बड़ी चुनौती है.

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43 सीट सिंधिया और 37 सीट प्रियंका के जिम्मे

बता दें कि उत्तर प्रदेश की कुल 80 लोकसभा सीटों में से अगर लखनऊ को सेंट्रल प्वाइंट मानते हैं तो पश्चिम यूपी में 43 और पूर्वांचल में 37 लोकसभा सीटें आती हैं. इस तरह से ज्योतिरादित्य सिंधिया के जिम्मे प्रियंका गांधी से ज्यादा सीटें आई हैं.

इसके अलावा 2014 के लोकसभा चुनाव को देखें तो पश्चिम यूपी में एक भी सीट कांग्रेस को नहीं मिली थी. जबकि कांग्रेस के खाते में आने वाली दो सीटें अमेठी और रायबरेली भी पूर्वांचल के खाते में हैं. इतना ही नहीं इस बार के लोकसभा के चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन ने भी इन दोनों सीटों पर अपने उम्मीदवार को नहीं उतारने का फैसला किया है. इस ऐलान ने प्रियंका की राह को और भी आसान कर दिया है.

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सिंधिया के लिए यूपी नया, प्रियंका पहले से सक्रिय

उत्तर प्रदेश की सियासी रणभूमि प्रियंका गांधी के लिए नई नहीं है. 1999 से प्रियंका रायबरेली और अमेठी में चुनाव प्रचार की कमान संभालती रही हैं. इसके चलते आसपास के जिलों में भी उनका प्रभाव रहा है. दोनों जिलों के संगठन और क्षेत्र के लोगों से लगातार संपर्क बनाए रखती हैं. सूबे में 'प्रियंका लाओ-यूपी बचाओ' के पोस्टर कई बार लग चुके हैं. वहीं, ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्य प्रदेश की सियासत में सक्रिय रहे हैं, उनके लिए पश्चिम यूपी नया है. यहां न तो पार्टी के नेताओं से बहुत ज्यादा पहचान है और न ही इस इलाके का कोई अनुभव है.

2014 में पूर्वांचल से ज्यादा पश्चिम में बेहतर

हालांकि, पिछले लोकसभा चुनाव के नतीजों पर गौर करें तो सिंधिया से ज्यादा प्रियंका के लिए चुनौतीपूर्ण पूर्वी उत्तर प्रदेश है. कुशीनगर और प्रतापगढ़ लोकसभा सीट को छोड़कर पार्टी पूर्वांचल के किसी भी सीट पर बेहतर चुनाव नहीं लड़ सकी थी. जबकि पूर्वी उत्तर प्रदेश में सहारनपुर, गाजियाबाद, कानपुर, धौरहरा, रामपुर जैसी सीटों पर कांग्रेस एक लाख से ज्यादा वोट पाने में सफल रही थी. इसके अलावा कई सीटें थीं, जहां पार्टी एक लाख के करीब वोट पाई थी.

ज्योतिरादित्या का मुकाबला अखिलेश-माया से

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अखिलेश यादव और मायावती का सबसे ज्यादा आधार पश्चिम यूपी में है, क्योंकि दोनों नेता इसी क्षेत्र से आते हैं. इन दोनों पार्टियों ने गठबंधन किया है और माना जा रहा है चौधरी अजित सिंह की पार्टी आरएलडी भी इसका हिस्सा बन सकती है. ऐसे में जातिय समीकरण के लिहाज से गठबंधन का पल्ला भारी दिख रहा है. इस तरह से सिंधिया को कांग्रेस की जमीन को मजबूत करने के लिए अखिलेश और मायावती से मुकाबला करना होगा.

प्रियंका गांधी का मुकाबला मोदी-योगी से

वहीं, पूर्वी उत्तर प्रदेश बीजेपी का मजबूत गढ़ माना जाता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बनारस से सांसद हैं और सीएम योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से आते हैं. इसके अलावा बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्रनाथ पांडेय भी पूर्वांचल से आते हैं. इस तरह से प्रियंका गांधी को मोदी-योगी से सीधे मुकाबला करना होगा. हालांकि ये इलाका एक दौर में कांग्रेस का मजबूत गढ़ रहा है. इन इलाकों से आने वाले कमलापति त्रिपाठी और वीर बहादुर सिंह जैसे नेता कांग्रेस की ओर से सीएम रहे हैं. कांग्रेस प्रियंका के जरिए पूर्वांचल में ब्राह्मणों को साध कर अपनी नैया पार लगाना चाहती है. 

पश्चिम में जिताऊ उम्मीदवार की कमी

लोकसभा चुनाव में महज तीन महीने से भी कम वक्त बचा हुआ है. ऐसे में पश्चिमी यूपी में कांग्रेस पार्टी के अंदर जान फूंकने की जिम्मेदारी सिंधिया के कंधों पर होगी और पार्टी के लिए जिताऊ उम्मीदवारों की तलाश करना भी एक बड़ी चुनौती है. मुजफ्फरनगर, मेरठ, कैराना, बिजनौर, रामपुर, संभल, अमरोहा, गौतमबुद्धनगर, मुरादाबाद, अलीगढ़ और आगरा जैसी सीटों पर जिताऊ कैंडिडेट कांग्रेस के पास नजर नहीं आ रहे हैं. हालांकि पूर्वांचल में भी ऐसी ही किल्लत है, लेकिन प्रियंका गांधी के आने के बाद जिस तरह से पार्टी में उत्साह दिख रहा है, उससे कांग्रेस की ये परेशानी दूर हो सकती है.

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