सपा-कांग्रेस गठबंधन के बाद धीरे-धीरे सीटों पर बंटवारा होता जा रहा है. गुरुवार को कांग्रेस के लिए सबसे महत्वपूर्ण अमेठी और रायबरेली जिले की 10 सीटों का बंटवारा हो गया. सपा दोनों जिलों में कुल दो सीटों पर और कांग्रेस 8 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. दरअसल, सपा ने पहले कुछ सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिए थे जिस वजह से गठबंधन के बाद उम्मीदवार असमंजस की स्थिति में थे.
गुरुवार को पांचवे चरण की 52 सीटों पर अधिसूचना जारी हो गई है. पांचवे चरण में बलरामपुर, गोंडा, फैजाबाद, अंबेडकर नगर, बहराइच, श्रावस्ती, सिद्धार्थनगर, बस्ती, संतकबीरनगर, सुल्तानपुर और अमेठी में चुनाव होंगे.
कांग्रेस के विधायक हो चुके हैं सपा में शामिल
अमेठी और रायबरेली की सीटों के अलावा पांचवे चरण की एक और सीट पर कांग्रेस और सपा का पेंच फंसा हुआ था. यह सीट है बहराइच जिले की पयागपुर विधानसभा सीट. इस सीट से पहले विधायक हैं मुकेश श्रीवास्तव. मुकेश ने पहली बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था और सपा की लहर के बीच यह सीट कांग्रेस के झोली में दिलाई थी. लेकिन, चुनावों से ठीक पहले उन्होंने कांग्रेस छोड़ सपा ज्वाइन कर ली थी. मुकेश को शिवपाल और आजम की मौजूदगी में अखिलेश ने ही सपा ज्वाइन करवाई थी. सपा ने इस सीट से मुकेश श्रीवास्तव के टिकट की घोषणा पहले ही कर रखी थी.
गुरुवार को कांग्रेस ने उतारा अपना उम्मीदवार
पयागपुर सीट से कांग्रेस ने भगत राम मिश्रा को अपना उम्मीदवार बनाया है. इस सीट पर सपा ने मुकेश श्रीवास्तव को टिकट दिया था. लेकिन, गठबंधन के बाद इस सीट पर भी असमंजस बना हुआ था क्योंकि इस सीट पर मुकेश कांग्रेस के टिकट पर जीते थे. गौरतलब है कि कुछ महीनों पहले मुकेश श्रीवास्तव कांग्रेस छोड़ सपा में शामिल हो गए थे.
कांग्रेस सीट की खातिर बना रही थी दबाव
सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस इस सीट पर काफी लंबे समय से अपना हक जता रही थी. गठबंधन की शर्तों के मुताबिक कांग्रेस चाहती थी कि यह सीट उसे मिले. हाल ही में लखीमपुर की चुनावी रैली में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मुकेश को एक बार फिर चुनाव लड़ाने का आश्वासन दिया था जिसके बाद कांग्रेस खेमे में माहौल गर्म हो गया था.
मुकेश लड़ के पास है यह विकल्प
पयागपुर विधानसभा सीट कांग्रेस के खाते में जाने के बाद युवा नेता मुकेश श्रीवास्तव के पास दो विकल्प हैं. पहला यह कि राकेश वर्मा को मिली कैसरगंज से सपा के टिकट पर चुनाव लड़ें और दूसरा पयागपुर विधानसभा सीट से ही निर्दलीय चुनाव लड़ें. आपको बता दें कि राज्यसभा सांसद बेनी प्रसाद वर्मा के बेटे और पूर्व कारागार मंत्री राकेश वर्मा ने कैसरगंज सीट से चुनाव लड़ने से मना कर दिया था. वे रामनगर सीट से उम्मीदवारी चाहते थे लेकिन अखिलेश ने वहां अरविन्द सिंह गोप को प्राथमिकता दी.
बीजेपी ने एक बार फिर दिया सुभाष को मौका
बीजेपी ने एक बार फिर पूर्व एमएलसी सुभाष त्रिपाठी को मैदान में उतारा है. पिछले चुनावों में सुभाष त्रिपाठी तीसरे नंबर पर रह गए थे. इसकी वजह थी ओबीसी और ब्राह्मण वोटों का मुकेश के पक्ष में वोट करना और क्षत्रिय वोट का अजीत प्रताप सिंह की ओर झुकना.
तेजी से बदल रहे समीकरण
सपा-कांग्रेस के बीच फंसी इस सीट पर बीजेपी ने नजर गड़ा रखी है. अपने गढ़ को वापस लाने के लिए वह लगातार जमीनी स्तर पर लोगों को एकजुट करने में लगी हुई है. बीएसपी ने यहां अपना उम्मीदवार बदल दिया है. पहले मायावती ने वृषभ तिवारी को मैदान में उतारा था लेकिन अब एक मुस्लिम उम्मीदवार उतार कर उन्होंने समीकरण बदल दिए हैं. अब पयागपुर विधानसभा सीट पर बीएसपी से शेख मुशर्रफ मैदान में हैं.
2012 में वजूद में आई थी सीट
पयागपुर विधानसभा सीट 2012 के विधानसभा चुनावों के पूर्व हुए परिसीमन में बनी थी. परिसीमन से पहले पयागपुर और विशेश्वरगंज विकास खंड इकौना विधानसभा क्षेत्र के हिस्सा थे. नए परिसीमन में इकौना विधानसभा सीट खत्म हो चुकी है. इकौना विधानसभा सीट सुरक्षित वर्ग में आती थी.
बीजेपी का गढ़ था इकौना
इकौना विधानसभा क्षेत्र बीजेपी का गढ़ माना जाता रहा है. 1989 से 2007 तक इस सीट पर बीजेपी का कब्जा था. बीजेपी ने लगातार पांच बार इस सीट पर जीत दर्ज कराई थी. 1989 और 1991 के चुनावों में इस सीट से बीजेपी नेता विष्णु दयाल विधानसभा पहुंचे थे तो 1993, 1996 और 2002 के चुनावों में अक्षयवर लाल ने जीत दर्ज कराई थी.
2007 में बीएसपी ने छीना था बीजेपी का गढ़
2007 के चुनावों में बीएसपी के रामसागर अकेला करीब 7हजार वोटों से अक्षयवर लाल को हरा कर सीट पर बीजेपी का आधिपत्य समाप्त किया था. 2012 के चुनावों में पयागपुर सीट से कांग्रेस के मुकेश श्रीवास्तव ने बीएसपी के अजीत प्रताप सिंह को हराया था. यहां से बीजेपी ने पूर्व एमएलसी सुभाष त्रिपाठी को टिकट दिया था लेकिन, उनका प्रदर्शन निराशाजनक रहा था.
संदीप कुमार सिंह