किसी पर हद से ज्यादा भरोसा करना ठीक नहीं या अपनी कोई सिक्रेट बातें भी किसी को नहीं बतानी चाहिए. आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र में बताया है कि दुष्ट दोस्तों से दूर रहना चाहिए, लेकिन अच्छे दोस्तों को भी अपनी छिपाकर रखी बातें शेयर नहीं करनी चाहिए. आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र में दूसरे अध्याय के 5वें श्लोक में बताया है-
परोक्षे कार्यहन्तारं प्रत्यक्ष प्रियवादिनम्।
वर्जयेत्तादृशं मित्रं विषकुंभम् पयोमुखम्।।
इस श्लोक में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जो भी साथी या मित्र हमारे मुंह पर मीठी-मीठी बातें करते हैं, वो हमारे पीछे में बुराई करते हैं. वो हमारे काम को बिगाड़ने की कोशिश करते हैं. उनसे दोस्ती नहीं रखनी चाहिए. उनके अलग हो जाने में ही भलाई है.
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि ऐसे दोस्त के मुख पर दूध दिखाई दता है, लेकिन इनके भीतर जहर भरा होता है. इनसे दोस्ती हमारे लिए हानिकारक होता है, इसलिए ऐसे लोगों से दोस्ती रखने से बचना चाहिए.
आगे आचार्य चाणक्य अपने नीति शास्त्र में दूसरे अध्याय के ही 6वें श्लोक में कहते हैं कि बुरे लोगों का भरोसा नहीं करना चाहिए.
न विश्वसेत् कुमित्रे च मित्रे चाऽपि न विश्वसेत्।
कदाचित् कुपितं मित्रं सर्वं गुह्यं प्रकाशयेत्।।
इस श्लोक में चाणक्य कहते हैं कि हमें कुमित्र पर विश्वास नहीं करना चाहिए. वे कहते हैं कि ध्यान रहे कि जो लोग हमारे दोस्त हैं उन पर भी बहुत ज्यादा विश्वास नहीं करना चाहिए. चाणक्य कहते हैं कि आगामी भविष्य में कभी उन दोस्तों से लड़ाई हो गई तो वे हमारी छिपी बातें सबके सामने उजागर कर सकते हैं. इससे हमारी समस्याएं बढ़ सकती हैं और फिर इससे नुकसान हमें ही होगा.
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