वोटिंग, आहट और डर... बीजेपी की चरण दर चरण बदलती 'रणनीति'

जानकार तो यहां तक कह रहे हैं कि यूपी चुनाव के परिणाम का असर 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में दिखेगा.

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जीत के लिए बीजेपी की रणनीति में हर रोज बदलाव जीत के लिए बीजेपी की रणनीति में हर रोज बदलाव

अमित कुमार दुबे

  • नई दिल्ली,
  • 27 फरवरी 2017,
  • अपडेटेड 1:09 PM IST

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए 5वें चरण की वोटिंग जारी है. लोकसभा चुनाव में शानदार सफलता के बाद बीजेपी के लिए इस विधानसभा चुनाव में बहुत कुछ दांव पर लगा है. जानकार तो यहां तक कह रहे हैं कि यूपी चुनाव के परिणाम का असर 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में दिखेगा. यूपी में अब तक हर चरण की वोटिंग के बाद बीजेपी की चुनाव प्रचार की रणनीति में बदलाव हो जा रही है. खबरों के मुताबिक सबकुछ क्षेत्रीय परिस्थितियों को देखकर किया जा रहा है.

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पहला चरण: मोदी सरकार की नीतियों का गुणगान
पहले चरण की वोटिंग से पहले बीजेपी नेता चुनाव प्रचार के दौरान विकास के मुद्दे पर फोकस कर रही थी. केंद्र सरकार की नीतियों के बारे में लोगों को बताया जा रहा था. सूबे में पहले चरण के लिए 11 फरवरी को 73 सीटों पर वोट डाले गए. बीजेपी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के नेतृत्व में जोरदार प्रचार अभियान चलाया गया. मुस्लिम बहुल मुजफ्फरनगर और शामली में वोटिंग की वजह से बीजेपी के निशाने पर कांग्रेस, सपा और बसपा तीनों थी. पीएम मोदी ने प्रदेश को स्कैम यानी एस-सपा, सी-कांग्रेस, ए-अखिलेश और एम-मायावती से मुक्त करने का नारा दिया. साथ महिलाओं के प्रति अपराध और सांप्रदायिक दंगों प्रमुखता से उठाया गया.

दरअसल मुजफ्फरनगर दंगे ने यूपी की सियासत का रुख पलट दिया था और 2014 में मोदी लहर के बूते केंद्र में बीजेपी की सरकार बनी थी. दंगों को लेकर हुई सियासत को फिर से ताजा रखने की कवायद चली गई. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में करीब 21 फीसदी दलित, 20 फीसदी मुस्लिम, 17 फीसदी जाट और 13 फीसदी यादव हैं. ब्राह्मण और ठाकुर वोट करीब 28 फीसदी है. जाट पर अजीत सिंह की अच्छी पकड़ मानी जाती है. ऐसे में बीजेपी जाटों मनाने की भरपूर कोशिश की.

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दूसरा चरण: निशाने पर मुलायम परिवार
दूसरे चरण की वोटिंग से पहले बीजेपी की रणनीति में एक बड़ा बदलाव देखने मिला. क्योंकि इस बार इलाके ऐसे थे जहां सपा की पकड़ पिछले चुनाव में बेहद मजबूत थी. साथ ही कई मुस्लिम बाहुल्य इलाके थे, जिसमें यूपी कैबिनेट मंत्री आजम खां और महबूब अली जैसे दिग्गज मैदान में थे. दूसरे में चरण में 15 फरवरी को 67 सीटें दांव पर लगी थी, जिसमें से 2012 में बीजेपी को 10 सीटें मिली थी. जबकि सपा को 34 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. बीजेपी का दूसरे चरण के चुनाव प्रचार के दौरान मुलायम परिवार खासे निशाने पर रहा. इलाके में पिछड़ेपन के मुद्दों को बीजेपी ने हवा देने की कोशिश की.

तीसरा चरण: ध्रुवीकरण की कोशिश
तीसरे चरण में दांव पर कानपुर, उन्नाव, लखनऊ, बाराबंकी जैसे इलाके थे. तीसरे चरण की चुनाव प्रचार से पहले स्टार प्रचारकों की लिस्ट में मुरली मनोहर जोशी और वरुण गांधी का नाम जुड़ गया. ब्राह्मण वोटरों को ध्यान में रखते हुए फटाफट जोशी जी को जगह दी गई. क्योंकि पहले दो चरण की वोटिंग के बाद बीजेपी को ग्राउंड से अच्छ संकेत नहीं मिल रहे थे. एसपी-कांग्रेस के गठबंधन के बाद एक संभावना यह थी कि ब्राह्मण वोट बीजेपी के पास से खिसक सकते हैं. इसकी मुख्य वजह यह थी कि ब्राह्मण मतदाताओं का एक वर्ग कांग्रेस का परम्परागत वोटर रहा है. तीसरे चरण के 69 सीटों के लिए मतदान 19 फरवरी वोट डाले गए.

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उत्तर प्रदेश के शुरुआती दो चरणों के उलट बीजेपी बाकी चरणों के लिए अलग प्रचार रणनीति अपनाने जुट गई. रणनीतिकार को समझ में आ गया कि पश्चिमी यूपी के सामाजिक ध्रुवीकरण के मुकाबले बाकी पांच चरणों की 263 सीटों पर जातीय समीकरण ज्यादा हावी रहेंगे. बीजेपी ने इसी कोण से अपने प्रचार अभियान और बूथ प्रबंधन को अंतिम रूप देने में जुट गई है. बीजेपी बाकि के पांच चरणों में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और झारखंड के मुख्यमंत्रिओं को भी प्रचार मैदान में उतारने की तैयारी कर रहे हैं.

वहीं दूसरे दलों से आए स्वामी प्रसाद मौर्य, ब्रजेश पाठक और रीता बहुगुणा जोशी जैसे नेता मैदान में थे. पूर्वी उत्तर प्रदेश में पार्टी गैर यादव पिछड़ी जातियों और दलितों पर ज्यादा ध्यान केंद्रित कर दिया. साथ ही यूपी से सटे तीन राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भी प्रमुखता से प्रचार अभियान में उतारने की प्लानिंग की गई. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, छत्तीसगढ़ के रमन सिंह और झारखंड के रघुवर दास को मोर्चे पर लाया गया. यही नहीं, दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष मनोज तिवारी भी पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में चुनाव प्रचार का मोर्चा संभाल लिए.

चौथा चरण: 'श्मशान और कब्रिस्तान' की गूंज
चौथे चरण में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के संसदीय निर्वाचन क्षेत्र रायबरेली के साथ-साथ प्रतापगढ़, कौशाम्बी, इलाहाबाद, जालौन, झांसी, ललितपुर, महोबा, बांदा, हमीरपुर, चित्रकूट और फतेहपुर जिलों की 53 सीटों पर 23 फरवरी को वोट डाले गए. इन इलाकों में बीजेपी उन वोटरों की खींचने की रणनीति में जुट गई जो परंपरागत रूप से कांग्रेस और बसपा से जुड़े थे. वोटिंग से पहले बीजेपी ने 'श्मशान और कब्रिस्तान' का मुद्दा उठा दिया. खुद पीएम मोदी ने चुनावी सभा के दौरान अखिलेश सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि जब रमजान में 24 घंटे बिजली मिल सकती है तो फिर दिवाली पर भी 24 घंटे बिजली मिलनी चाहिए. बीजेपी ने ध्रुवीकरण की चाल दी और फिर विकास, भ्रष्टाचार का मुद्दा गायब हो गया. जबकि 'श्मशान और कब्रिस्तान' पर चुनाव भाषणों में टिक गया.

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पांचवां चरण: 'गधा' भाषण में, मुद्दे गायब
5वें चरण आज (सोमवार) को अमेठी समेत 11 जिलों की 51 सीटों पर वोटिंग हो रही है. पहले चार चरणों के मतदान में सीटों के अंक गणित में फिसलने की खबर से चिंतित भाजपा ने बचे तीन चरणों के लिए पूरी ताकत लगाने और संघ के सहयोग से बचे तीन चरणों में पूरा दम लगाने की रणनीति तय की है. साथ ही अखिलेश 'गधा' बयान पर अपना पूरा फोकस कर दिया. पीएम पांचवें चरण के चुनाव प्रचार के दौरान हर सभाओं में अखिलेश इस बयान को लेकर पलटवार का मौका नहीं छोड़ा. साथ ही अमित शाह ने 'कसाब' यानी क- कांग्रेस, स- सपा, ब-बसपा का नया परिभाषा दे डाला.

बता दें, भाजपा भले ही पहले चार चरणों की 262 सीटों में से 175 सीटें जीतने का दावा कर रही हो लेकिन संघ के जमीनी कार्यकर्ताओं की और से संघ को चार चरणों के चुनावों के बाद जो जमीनी रिपोर्ट संघ ने अपने कार्यकर्ताओं से एकत्रित कर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को भेजी है. वह भाजपा के लिए ​चिंता का कारण बन गई है.

भाजपा मुख्यालय पहुंची खबर में कहा गया है कि चार चरणों के चुनाव के बाद भाजपा बमुश्किल 75 सिटों के आसपास सिमट सकती है. भाजपा के जमीनी कार्यकर्ताओं ने भी भाजपा हाईकमान को भेजी रिपोर्ट में 75 से 80 सीटों का आकलन भेजा. जमीनी रिपोर्ट से आ रहे फीडबैक ने भाजपा की चिं​ता को बढ़ा दिया और दौड़ में बने रहने और सत्ता पाने के लिए भाजपा ने बचे हुए तीन चरणों के लिए आक्रामक चुनाव अभियान अपनाने, संघ का पूरा सहयोग लेने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलिया बढ़ाने की रणनीति तय की है.

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जमीनी कार्यकर्ताओं पर फोकस
चौथे चरण की वोटिंग के बाद संघ के जमीनी कार्यकर्ताओं का बूथ मैनेजमेंट और मतदाताओं को घर से निकालकर मतदान तक ले जाने का जिम्मा सौंपा गया. संघ का अपने बस्ती, मोहल्ला, नगर स्तर से लेकर प्रांत और क्षेत्र के पदाधिकारीयों को भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने का निर्देश. साथ ही पीएम मोदी की रैलियां बढ़ाने पर भी फोकस किया गया.

वहीं यूपी में बाकी दो चरणों के चुनाव प्रचार चरम पर है. छठे चरण में महाराजगंज, कुशीनगर, गोरखपुर, देवरिया, आजमगढ, मउ और बलिया जिलों की 49 सीटों पर 4 मार्च को मतदान होगा. 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा को 27, भाजपा को 8, बसपा को 8 और कांग्रेस को 4 सीटें मिली थी. जबकि सातवें और अंतिम चरण में गाजीपुर, वाराणसी, चंदौली, मिर्जापुर, भदोही, सोनभद्र, जौनपुर जिले की 40 सीटों पर 8 मार्च को मतदान होगा. 2012 के चुनाव में यहां से समाजवादी पार्टी को 23, भाजपा को 4, कांग्रेस को 3 और बसपा को 5 सीटें मिली थी.

बाकी दो चरणों में बीजेपी क्षेत्रीय मुद्दों के साथ-साथ अखिलेश सरकार पर सीधे टारगेट कर रही है. साथ ही अखिलेश के गधा बयान को लेकर भी छोड़ नहीं रही है. खुद अमित शाह हर दिन चुनावी रणनीति की समीक्षा कर रहे हैं और क्षेत्र के हिसाब से मुद्दों को उठाया जा रहा है.

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