मिशन साउथ को पूरा करने के लिए बीजेपी जमीन पर उतर चुकी है. वामपंथी दुर्ग कहा जाने वाला केरल बीजेपी का नया सियासी अखाड़ा है, जहां पार्टी आलाकमान अमित शाह से लेकर मोदी कैबिनेट के मंत्री सड़क पर उतर चुके हैं. बीजेपी इस कवायद के जरिए कम से कम अगले विधानसभा चुनाव तक केरल में मुख्य विरोधी दल के रूप में पहचान बनाने की जुगत में है.
बीजेपी के लिए केरल अहम
देश की सत्ता पर विराजमान होने के बाद बीजेपी का सबसे बड़ा लक्ष्य पश्चिम बंगाल और केरल ही हैं. ये राज्य न सिर्फ सियासी रूप से उसके लिए अहम हैं बल्कि वामपंथ से वैचारिक दुश्मनी के चलते भी वो इन राज्यों में अपना आधार खड़ा करना चाहती है.
केरल का सामाजिक स्वरूप
केरल के सामाजिक हालात देश के बाकी हिस्सों से एकदम अलग हैं. केरल में हिंदुओं की आबादी करीब 52 फीसदी है. इसके अलावा 27 फीसदी मुस्लिम और 18 फीसदी ईसाई आबादी है. केरल में मुख्य सियासी मुकाबला लेफ्ट और कांग्रेस गठबंधन के बीच रहता है.
हिंदू मतों पर कब्जे के लिए लड़ रहे लेफ्ट और बीजेपी
केरल में वामपंथी पार्टियों का आधार हिंदू मतदाता हैं तो वहीं कांग्रेस का ईसाई और मुस्लिम बेस है. बीजेपी अभी तक केरल में सियासी जगह बनाने में सफल नहीं हो सकी है. लेकिन बदलते माहौल में बीजेपी का ग्राफ देश के कई राज्यों में बढ़ा है, 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का वोट केरल में 6.4 फीसदी से बढ़कर 10.45 तक हो गया था. एनडीए का कुल वोट राज्य में 15 फीसदी रहा. 2016 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को एक सीट भी मिली. इससे वामपंथी गठबंधन में बेचैनी है.
जनसुरक्षा के सियासी मायने
केरल में बीजेपी और आरएसएस कार्यकर्ताओं की लगातार हत्याएं हो रही हैं. राजनीतिक हिंसा के इसी माहौल में बीजेपी को अपने लिए उम्मीद भी दिख रही है. पार्टी ने राज्य में 15 दिन तक वामपंथी सरकार के खिलाफ जनसुरक्षा यात्रा शुरू की है. केरल के कन्नूर से तिरुअनंतपुरम तक ये पदयात्रा होगी. राज्य के 14 में से 11 जिलों से होकर ये गुजरेगी.
जनसुरक्षा के जरिए बीजेपी बनाएगी जमीन
जनसुरक्षा यात्रा का आगाज पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने किया है. दूसरे दिन बीजेपी के फायर ब्रांड नेता व यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ इसमें शामिल हुए और 10 किमी पदयात्रा की. इस यात्रा में हर दिन बीजेपी का कोई न कोई बड़ा नेता शामिल होगा. बीजेपी जनसुरक्षा यात्रा के जरिए अपनी सियासी जमीन को मजबूत करने में जुटी है.
कुबूल अहमद