अमर सिंह यारों के यार थे. रिश्ते निभाना ही नहीं, जीना जानते थे. कॉरपोरेट के साथ जितने सहज थे गंवई लोगों से भी उसी तरह से घुल-मिल जाते थे. बलिया, बनारस और गाजीपुर में जनसभा करने के बाद वह रात को ग्लैमरस पार्टियों में शामिल होने का माद्दा रखते थे. एक समय राजनीति के गलियारों से लेकर ग्लैमर की गलियों तक वो अपरिहार्य से हो गए थे. उन्हें शिखर चूमने की तमन्ना थी. फिल्मों के शौकीन थे. घूमना अच्छा लगता था. उनमें ठाकुरों की ठसक थी. जिनसे व्यक्तिगत रिश्ते होते उसकी जान बन जाते. जिससे खटक जाती, उसकी सार्वजनिक रूप से लानत-मलानत करने में भी संकोच नहीं करते. तंज कसते तो शेरो- शायरी का सहारा लेते. मौज लेनी होती तो गानों के बोल बोलते. वह मदद करते और खुलकर चाहते कि उनका एहसान माना जाए. वह लंबे समय से बीमारी से जूझ रहे थे. 1 अगस्त 2020 को सिंगापुर के एक अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली.
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अमर सिंह का लालन पालन कोलकाता में हुआ था. पिता बिजनेस में थे और चाहते थे कि अमर सिंह परिवार का कारोबार संभालें. पिता स्कूली शिक्षा को बहुत महत्व नहीं देते थे लेकिन अमर सिंह अच्छे से अच्छे स्कूल में पढ़ना चाहते थे. उन्होंने कोलकाता के सेंट जेवियर स्कूल से पढ़ाई की. वहीं लॉ कॉलेज से डिग्री ली.
वह कांग्रेस छात्र परिषद के सदस्य रहे. उन्हें इस बात का एहसास था कि पैसा और पावर से ही दुनिया उन्हें जानेगी. उन्हें राजनीति में लाने का श्रेय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे वीर बहादुर सिंह को जाता है. एक इंटरव्यू में अमर सिंह ने बताया था कि वीर बहादुर सिंह एक बार पश्चिम बंगाल की दुर्गापूजा देखने गए. अमर सिंह वीर बहादुर सिंह से मिले और उन्हें कोलकाता की दुर्गापूजा दिखाई. यहीं से यह दोस्ती परवान चढ़ती गई. अगर वह होते तो अमर सिंह की राजनीति कहीं और होती, लेकिन मुख्यमंत्री रहते ही वीर बहादुर सिंह का निधन हो गया था.
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इसके बाद अमर सिंह की मुलाकात कांग्रेस के कद्दावर नेता माधव राव सिंधिया से हुई. वह उनके लिए काम करने लगे. एक इंटरव्यू में अमर सिंह ने बताया था कि दोनों साथ में छुट्टियां बिताने हर साल लंदन जाया करते थे. माधव राव, अमर सिंह पर विश्वास करते थे, उन्हें टिकट बांटने की जिम्मेदारी तक दे दी थी.
अमर सिंह ने एक बार बताया था कि चुनाव में दिए पैसे बचाकर उन्होंने माधव राव को दिया था. तब माधव राव सिंधिया ने उनसे कहा था कि पैसे बचाने के लिए नहीं खर्च करने के लिए होते हैं. और यह बात अमर सिंह ने गांठ बांध ली थी. अमर सिंह धीरे-धीरे तरक्की की सीढ़ियां चढ़ रहे थे. अपना दायरा बढ़ा रहे थे.
इसी बीच माधव राव सिंधिया और उनके रास्ते अलग हो गए. कहा जाता है कि अमर सिंह को एक बड़ा फलक चाहिए था, जहां सब कुछ वो निर्धारित कर सकें. लेकिन कांग्रेस में रहते हुए यह संभव नहीं था. न वह माधव राव सिंधिया से ऊपर हो सकते थे न कांग्रेस से.
मुलायम से मुलाकात
इस बीच वीर बहादुर सिंह के लखनऊ आवास पर अमर सिंह की मुलाकात मुलायम सिंह से हो चुकी थी. लेकिन असली परिचय उनके पारिवारिक मित्र ईशदत्त यादव ने कराया था. बीबीसी को दिए इंटरव्यू में अमर सिंह ने बताया था कि आजमगढ़ के पारिवारिक मित्र विधायक, सांसद ईशदत्त यादव ने मुलायम सिंह यादव को उनके बारे में विस्तार से बताया था.
इसके बाद वह मुलायम से मिले थे. और जैसे-जैसे मुलाकातें बढ़ती गईं, वह मुलायम सिंह यादव के होते गए. मुलायम ने उन्हें देशज भाषा, देशज भूषा और देशज भोजन अपनाने की सलाह दी थी और इसे उन्होंने अपनाया भी. अमर सिंह कहा करते थे कि उन्हें इलीट माना जाता है यह लोगों का भ्रम है, मैं आमलोगों के साथ भी उतना ही सहज हूं, जितना कॉरपोरेट के साथ.
समाजवादी पार्टी में हासिल की ऊंचाई
समाजवादी पार्टी में आने के साथ ही अमर सिंह नई ऊंचाइयां हासिल करते गए. 1996 में वह पहली बार राज्यसभा में भेजे गए. 2002 में पार्टी ने उन्हें फिर राज्यसभा में भेजा. इसके साथ ही उन्हें पार्टी महासचिव बनाया गया. उन्होंने एक देसी पार्टी को नया कलेवर दिया. फिल्मी सितारों से लेकर कॉरपोरेट तक के लोगों को समाजवादी पार्टी से जोड़ने में सफल रहे.
2003 से 2007 के बीच जब मुलायम यूपी के सीएम थे उन्होंने यूपी में उद्योगपतियों और बॉलिवुड के लोगों का कई बार जमावड़ा कराया. जया बच्चन से लेकर जया प्रदा और संजय दत्त तक को सपा में लाने का श्रेय उन्हें ही दिया जाता है. एक समय ऐसा आ गया जब अमर सिंह के बिना समाजवादी पार्टी में कोई फैसला नहीं लिया जाता था. खांटी नेता किनारे कर दिए गए. ऐसे में नेताओं का एक तबका नाराज रहने लगा. आजम खान और बेनी प्रसाद बर्मा जैसे कद्दावर नेताओं ने पार्टी छोड़ दी.
2007 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी की हार हुई और इसके लिए अमर सिंह को जिम्मेदार बताया जाने लगा. 2009 के लोकसभा चुनाव तक रिश्ते और तल्ख हो गए. पार्टी में अमर सिंह का विरोध तेज हो गया. आरोप लगा कि उनकी सरपरस्ती में सपा शहरी हुई न गांव की हो पाई. हालात ऐसे बन गए कि 2010 में अमर सिंह ने सपा के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने वह पार्टी छोड़ दी जिसने उन्हें 1996, 2002, 2008 में राज्यसभा भेजा था.
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इसके बाद अमर सिंह ने नई पार्टी राष्ट्रीय लोकमंच बनाई. 2012 के यूपी विधानसभा चुनाव में उन्होंने उम्मीदवार भी उतारे लेकिन शायद ही कोई उम्मीदवार जमानत बचा पाया. समाजवादी पार्टी की पूर्ण बहुमत से सरकार बनी. इस बीच अमर सिंह लगातार मुलायम पर कम और अखिलेश पर ज्यादा हमलावर रहे.
अमर सिंह अगर किसी के लिए कुछ करते थे तो उसे सार्वजिनक कहने से भी नहीं हिचकते थे. उन्होंने ही बताया था कि अखिलेश का एडमिशन ऑस्ट्रेलिया में कराने के लिए वो साथ गए थे. डिंपल-अखिलेश की शादी के लिए मुलायम तैयार नहीं थे, लेकिन उन्होंने तैयार किया था.
ऐसा कहा जाता है कि मुलायम और अमर की दोस्ती देवगौड़ा के प्रधानमंत्री बनने के दौरान ज्यादा परवान चढ़ी. देवगौड़ा को हिंदी नहीं आती थी और मुलायम को इंग्लिश. दोनों के बीच सूत्रधार होते थे अमर सिंह. लेकिन बाद में एक ऐसा वक्त भी आया, जब अमर सिंह ने मुलायम के खिलाफ बेबाक राय रखी.
मनमोहन सरकार को बचाना अमर की सबसे बड़ी उपलब्धि
2008 में अमेरिका से न्यूक्लियर डील से नाराज वामपंथी पार्टियों ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया था. सरकार गिरने के कगार पर आ गई थी. कांग्रेस ने अमर सिंह से संपर्क साधा. अमर सिंह ने मुलायम सिंह से. कहा जाता है कि मुलायम इसके लिए पहले तैयार नहीं थे लेकिन अमर सिंह उन्हें लेकर तत्कालीन राष्ट्रपति कलाम के पास पहुंचे.
मुलायम कलाम की बहुत इज्जत करते थे. उन्होंने मुलायम सिंह को बताया कि न्यूक्लियर डील भारत के लिए क्यों जरूरी है. मुलायम को बात समझ में आ गई और उन्होंने यूपीए को समर्थन का ऐलान कर दिया. राजनैतिक जीवन में यह अमर सिंह की सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जाती है.
अमिताभ से दोस्ती और दुश्मनी
अमर सिंह ने एक इंटरव्यू में बताया था कि वह अमिताभ से कोलकाता में मिले थे. अमर सिंह को पता चला था कि अमिताभ इस होटल में ठहरे हैं तो वह सीधे उनसे मिलने चले गए. यहीं से उनकी दोस्ती की शुरूआत हुई. एक समय ऐसा आया जब अमर सिंह राजनीति और कॉरपोरेट में नई ऊंचाइयां छू रहे थे वहीं अमिताभ एबीसीएल बनाकर मुश्किलों में फंस गए थे. अमिताभ के दिवालिया घोषित होने की नौबत आ गई.
बकौल अमर सिंह उन्होंने ही अमिताभ को इससे उबारा. सहारा श्री और अमिताभ की मुलाकात उन्होंने ही कराई. बीबीसी को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि मुंबई में अमिताभ के घर में एक कमरा उनके लिए रिजर्व रहता था. अमिताभ की असहमति के बावजूद उन्होंने जया प्रदा को सपा से राज्यसभा भिजवाया. दोस्ती शबाब पर थी लेकिन हालात ऐसे बने कि अमर सिंह को सपा छोड़नी पड़ी. वह चाहते थे कि जया बच्चन भी पार्टी छोड़ दें लेकिन ऐसा नहीं हो पाया और अमर सिंह अमिताभ बच्चन के खिलाफ मुखर हो गए.
उन्होंने कई इंटरव्यू में कहा कि अमिताभ प्रैक्टिकल आदमी हैं. उन्हें इस बात का ज्यादा रंज था कि वोट फॉर कैश मामले में जब वो जेल में बंद थे तब भी बच्चन परिवार उनसे मिलने नहीं आया. वो जेल से तो बाहर आ गए लेकिन खटास बनी रही. सिंगापुर में एडमिट होने के दौरान जब उनके पिता की पुण्यतिथि पर अमिताभ ने संदेश भेजा तब अमर सिंह पिघले और कहा कि जिंदगी और मौत से जूझ रहा हूं. बच्चन परिवार पर टिप्पणियों के लिए माफी मांगता हूं.
फिल्मी दुनिया का साथ
अमर सिंह को ग्लैमर से लगाव था, फिल्म इंडस्ट्री के लोग भी उनसे सहज महसूस करते थे. कहीं किसी को यूपी में शूटिंग में दिक्कत हो रही हो, कहीं किसी को प्रशासन से मदद न मिल रही हो, हमेशा अमर सिंह को याद किया जाता था. समाजवादी पार्टी के प्रचार के लिए वह कई सितारों को मैदान में उतार देते थे. बिपाशा बसु से बातचीत का एक विवादित टेप भी सामने आया लेकिन वायरल होने से पहले ही अमर सिंह सुप्रीम कोर्ट से इसके खिलाफ सख्त आदेश पारित कराने में कामयाब रहे.
अमिताभ बच्चन को लेकर एक बार अमर सिंह शाहरुख खान से भिड़ गए थे. अमिताभ के जन्मदिन पर अमर सिंह ने एक बार पार्टी दी थी और उसमें अमिताभ के साथ काम कर चुकी हर अभिनेत्री को बुलाया था. यह पार्टी चर्चा की विषय बनी थी. बोनी कपूर-श्रीदेवी से लेकर, शिल्पा शेट्टी, इम्तियाज अली से लेकर मुजफ्फर अली से उनकी पटती थी. उन्होंने उत्तर प्रदेश में फिल्म विकास परिषद की स्थापना कराई थी और कई सितारों को जोड़ा था. 2016 में जया प्रदा को उन्होंने इसका उपाध्यक्ष नामित करा दिया था.
सपा से फिर नजदीकी
अमर सिंह अपनी पार्टी बनाकर देख चुके थे. उसमें कोई भविष्य नहीं दिख रहा था. मुलायम को वह बहुत कुछ कह चुके थे लेकिन मुलायम सिंह यादव ने कभी भी उनके खिलाफ कुछ नहीं कहा था. अखिलेश यूपी के मुख्यमंत्री थे और परिवार में सिर फुटौव्वल मची थी. ऐसा कहा जाता है कि मुलायम को किनारे करने की कोशिश की जा रही थी. उधर अमर सिंह को भी मजबूत साथ की जरूरत थी. दोनों फिर एकदूसरे के करीब आए.
सपा के समर्थन से 2016 में एक बार फिर अमर सिंह राज्यसभा में पहुंचने में सफल रहे. इस बीच 2015 में मुलायम के पोते की शादी लालू की बेटी से संपन्न हुई. इसमें प्रधानमंत्री मोदी भी शामिल हुए. अमर सिंह इसका श्रेय लेने से भी नहीं हिचके, उन्होंने कहा था कि यह उनका किया धरा था कि पीएम मुलायम सिंह यादव के पोते की शादी में शामिल होने पर राजी हुए.
आखिर में वह बीजेपी के करीब भी आए. जुलाई 2018 में लखनऊ में उद्योगपतियों की बैठक हुई थी, पीएम मोदी ने इसका उद्घाटन किया था. उस समारोह में अमर सिंह भगवा कुर्ते में पहुंचे थे. उन्हें बीजेपी के कई नेताओं से आगे की पंक्ति में जगह दी गई थी. पीएम मोदी ने कहा था हम उनमें से नहीं हैं जो उद्योगपतियों के साथ न खड़े हों लेकिन कुछ लोग ऐसे हैं जिनकी एक भी फोटो उद्योगपति के साथ नहीं पाएंगी.
लेकिन विदेश का कोई ऐसा उद्योगपति नहीं होगा, जिसने उनके घर में दंडवत न किया हो. मोदी ने आगे कहा था कि यहां अमर सिंह बैठे हुए हैं. ऐसे लोगों की सारी कुंडली निकाल देंगे. बाद में आजतक से बातचीत में अमर सिंह ने मोदी की साफगोई के लिए प्रशंसा की थी. ऐसा माना जाने लगा था कि अमर सिंह बीजेपी में जा सकते हैं लेकिन यह चर्चा से आगे नहीं बढ़ पाई.
विवादों से नाता
अमर सिंह पर यह आरोप भी लगे कि जिसके साथ रहे उसका घर टूटा. वह अमिताभ के साथ रहे तो ऐसा हुआ. अनिल अंबानी के साथ रहे तो दोनों भाइयों में दूरियां बढ़ती गईं. मुलायम परिवार में कलह का उन्हें भी जिम्मेदार माना गया. अखिलेश ने तो सार्वजनिक मंच से उन्हें दलाल कह दिया था.
आजम से अदावत
अमर सिंह आजम खान को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानते थे और उनके खिलाफ खुलकर बोलते थे. उनका मानना था कि मुलायम और अखिलेश से दूर करने में आजम खान का ही सबसे बड़ा हाथ है. 2019 के चुनाव में उन्होंने आजम खान के खिलाफ रामपुर से जया प्रदा को मैदान में उतार दिया था और आजम को जीत के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी.
राजबब्बर से रार
अमर सिंह वैसे तो फिल्मी हस्तियों से सहज रहते थे लेकिन राजबब्बर से उनकी नहीं बन पाई. मुलायम ने राजबब्बर को 1994 में राज्यसभा भेजा था जबकि अमर सिंह को 1996 में. मुलायम के कहने पर राजबब्बर ने लखनऊ से अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ चुनाव भी लड़ा था. सपा से वह दो बार 1999 और 2004 में आगरा से सांसद रहे. लेकिन 2006 में उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया.
राज ने इसका सारा ठीकरा अमर सिंह पर फोड़ा और उन्हें दलाल तक कह दिया. 2008 में राजबब्बर ने कांग्रेस ज्वाइन कर ली. 2009 में अखिलेश यादव कन्नौज और फिरोजाबाद दो जगहों से जीते थे. उन्होंने फिरोजाबाद सीट खाली कर पत्नी डिंपल को मैदान में उतार दिया. इधर कांग्रेस ने राजबब्बर को टिकट दे दिया और डिंपल 85000 वोटों से कांग्रेस के राजबब्बर से हार गईं. ऐसा कहा जाता है कि इसके बाद ही अमर सिंह की राह सपा में मुश्किल हो गई. पार्टी के नेता मुलायम सिंह को समझाने में सफल रहे कि अमर सिंह की वजह से राजबब्बर बाहर हुए और यह दिन देखना पड़ा.
पारिवारिक जिंदगी
अमर सिंह खुलकर स्वीकार करते थे कि 18 साल में उन्हें घर छोड़ना पड़ा या यह कहिए कि घर से निकाल दिया गया. उनके पिता की जिद थी कि बेटा घर का कारोबार संभाले लेकिन उन्हें यह मंजूर नहीं था. अमर सिंह ने 31 साल की अवस्था में पंकजा सिंह से शादी की जो एक राजपरिवार से आती थीं. उन्होंने उन्हें पहले ही बता दिया था कि वह मैरिज मटीरियल नहीं हैं. परिवार को समय देने की अपेक्षा उनसे नहीं की जा सकती.
पंकजा को ऐतराज नहीं था और दोनों परिणय सूत्र में बंध गए. उनकी दो जुड़वां बेटियां हैं जिनका नाम दृष्टि और दिशा है. 2016 में राज्यसभा में नामांकन के दौरान अपनी संपत्ति 131 करोड़ बताई थी. एक इंटरव्यू में बताया था कि गाजियाबाद में एक केमिकल की फैक्ट्री और कर्नाटक में एक पावर प्रोजेक्ट से उनका जीवन मजे में कट जाता है.
अब अमर सिंह नहीं हैं. उन्हें एक ऐसे राजनीतिज्ञ के रूप में हमेशा याद किया जाएगा जो बेलौस जिंदगी जीता था, बेलाग लपेट के बोलता था. मदद करने पर आए तो साम दाम दंड भेद से आपके साथ होता था और नाराज हो जाए तो सार्वजनिक रूप से बड़े से बड़े लोगों की ‘आरती’ उतारने से गुरेज नहीं करता था. जिसने खुद अपनी जगह बनाई थी. जिसके बारे में अमिताभ बच्चन ने कहा था कि अगर अमर सिंह न होते तो मैं टैक्सी चला रहा होता.
मुलायम सिंह ने कहा था कि अमर सिंह न होते तो मैं जेल चला गया होता. फिल्मी दुनिया-कॉरपोरेट और राजनीति के लोगों को एक मंच पर लाने में जिसे महारत हासिल थी. कभी वह युवाओं के दिल में बसने लगे थे. वह ठाकुरों के भी नेता हो गए थे. राजनीतिक चाणक्य से लेकर मीडिया मैनेजमेंट तक में उनकी तूती बोलती थी, अब वो अमर सिंह इस दुनिया में नहीं हैं. लेकिन जब-जब सूत्रधार की बात होगी, मैनेजमेंट की बात होगी, किसी को कैसे मनाया जाए, इसकी बात होगी तो अमर सिंह को जरूर याद किया जाएगा.
अमित राय