नरगिस की एक फिल्म वयस्क क्यों हो गई थी?

दिलचस्प हैं फिल्मों में अश्लीलता और भड़काऊ कंटेंट को रोकने की जिम्मेदारी ओढ़े सेंसर बोर्ड के अतीत में लिए गए कुछ फैसले-

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धीरेंद्र राय

  • नई दिल्ली,
  • 16 जनवरी 2015,
  • अपडेटेड 7:47 PM IST

डेरा सच्चा सौदा के बाबा राम रहीम की फिल्म मैसेंजर ऑफ गॉड सेंसर बोर्ड ने तो पास कर दी है. हल्ला तो सुप्रीम कोर्ट की आपत्ति के बाद मच रहा है. इससे पहले इसी बोर्ड  की अनुमति से रागिनी एमएमएस-2 और ग्रैंड मस्ती जैसी फिल्में भी सिनेमाघरों तक पहुंची हैं. लेकिन दिलचस्प हैं फिल्मों में अश्लीलता और भड़काऊ कंटेंट को रोकने की जिम्मेदारी ओढ़े इस एजेंसी के अतीत में लिए गए कुछ फैसले-

1. 1949 में आई बरसात को सेंसर बोर्ड ने 'ए' (वयस्क) श्रेणी में डाल दिया था. सिर्फ इसलिए कि फिल्म के कुछ सीन में नरगिस बिना दुपट्टा पहने नजर आ रही थीं.
2. 1961 में आई चौदवी का चांद. उन दिनों कलर फिल्मों का चलन शुरू ही हुआ था. गुरुदत्त ने अपनी इस फिल्म का टाइटल गीत कलर में फिल्माया. गाने के एक सीन में वहीदा रहमान के चेहरे को नजदीक से फिल्माया गया. सेंसर बोर्ड की आपत्ति थी कि वहीदा की आंखें लाल नजर आने से वह उत्तेजित कर रही हैं. बोर्ड की इस बात पर गुरुदत्त ने काफी बहस की और सेट पर आकर हंसते हुए सिर्फ यही कहा- ये सेंसर वाले भी ना...
3. 1975 में आई फिल्म आंधी को सेंसर बोर्ड ने बैन कर दिया. चर्चा थी कि फिल्म की कहानी इंदिरा गांधी के जीवन को चित्रित करती है. लेकिन इसी फिल्म को 1977 में आई जनता सरकार के शासन में पास भी कर दिया.
4. 2003 में सिक्ख दंगों की पृष्ठभूमि पर बनी फिल्म हवाएं को सेंसर बोर्ड ने पास तो कर दिया, लेकिन दिल्ली, जम्मू-कश्मीर, पंजाब और हरियाणा में इसे दिखाने की अनुमति नहीं दी. जबकि यहीं उन दंगों के सबसे ज्यादा पीड़ि‍त रहते हैं.
5. चित्रकार राजा रवि वर्मा के जीवन पर बनी फिल्म रंग रसिया को सेंसर बोर्ड ने पिछले साल बिना आपत्ति के पास कर दिया. इस फिल्म के एक सीन में तो अभिनेता रणदीप हुड्डा और अभिनेत्री नंदना सेन को पूरी तरह नग्न दिखाया गया है. बोर्ड का कहना था कि उसको इस नग्नता में आर्ट दिखाई दिया है.

...और 'किस्सा कुर्सी का'
इस फिल्म का प्रदर्शित न हो पाना सेंसर बोर्ड के कामकाज में राजनीतिक दखल का सबसे बड़ा उदाहरण है. इमरजेंसी के दौर में कांग्रेस सरकार के तौर-तरीकों पर कटाक्ष करती हुई यह फिल्म 1977 में जब मंजूरी के लिए सेंसर बोर्ड के दफ्तर पहुंची तो संजय गांधी के समर्थक इस फिल्म की सभी रीलें ही उठा ले गए और उसे जला दिया. यह फिल्म बाद में दोबारा बनाई गई.

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