खेलों में बहुत कम ऐसे मौके आते हैं, जब कोई आत्मविश्वास से कह सके- ‘जीतेगा तो इंडिया ही’. आप यह क्रिकेट, हॉकी, बैडमिंटन या किसी अन्य खेल में शायद ही कह सकते हैं. लेकिन शतरंज में आजकल आप निश्चिंत होकर कह सकते हैं कि ‘जीतेगा तो इंडिया ही'. अब शतरंज में भारत की ताकत और गहराई सबसे अलग है. बातुमी (जॉर्जिया) में हुआ FIDE वर्ल्ड कप -2025 भारत की इसी मजबूत पकड़ को दिखाता है.
जरा हालात पर गौर कीजिए. कोनेरू हम्पी और दिव्या देशमुख के बीच यह फाइनल मुकाबला 'पीढ़ियों की टक्कर' कहा जा रहा था. हम्पी, जो भारतीय महिला शतरंज की प्रेरणा रही हैं- अपने से आधी उम्र की खिलाड़ी के खिलाफ खड़ी थीं. मां बनने के बाद खेल को छोड़ चुकी हम्पी ने वापसी कर दो बार वर्ल्ड रैपिड खिताब जीता और खुद को फिर साबित किया. वहीं, दिव्या ने ओलंपियाड और जूनियर स्पर्धाओं में उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं.
वर्ल्ड कप की शुरुआत में हम्पी को खिताब की प्रबल दावेदार माना जा रहा था. वहीं, दिव्या के बारे में कहा जा रहा था कि वह कुछ चौंकाने वाले नतीजे दे सकती हैं. लेकिन जैसे-जैसे टूर्नामेंट आगे बढ़ा, दोनों खिलाड़ी फाइनल तक पहुंचीं. दिव्या ने चीन की शीर्ष खिलाड़ियों (जिनेर झू और टैन झोंगयी) को हराया. इसके अलावा दिव्या ने पिछले महीने वर्ल्ड रैपिड एंड ब्लिट्ज चैम्पियनशिप में वर्ल्ड नंबर वन हाउ यिफान को भी मात दी थी, जिसकी सराहना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी की थी. दूसरी ओर हम्पी ने टिंगजेई ली और अलेक्जांद्रा कोस्टेनिउक को हराया.
फाइनल में दोनों खिलाड़ियों ने मौके बनाने की कोशिश की, लेकिन मुकाबला ड्रॉ रहा. जब मुकाबला रैपिड टाईब्रेक्स में गया, तो माना जा रहा था कि दो बार की वर्ल्ड रैपिड चैम्पियन हम्पी को बढ़त होगी. लेकिन दिव्या के पास भी बढ़त थी- उन्होंने पिछले साल टाटा स्टील मास्टर्स के रैपिड मुकाबले में हम्पी को हराया था.
शिष्या दिव्या ने 'गुरु' हम्पी को दी मात
बातुमी के फाइनल में दिव्या ने ही ज्यादा मौके बनाने की कोशिश की. पहला गेम एक मानसिक जंग के समान था, जिसमें दिव्या ने ड्रॉ तब स्वीकारा जब कोई भी काउंटरप्ले संभव नहीं था. दूसरे गेम में स्थिति पूरी तरह ड्रॉ लग रही थी, लेकिन हम्पी की एक बड़ी चूक ने मुकाबले का रुख बदल दिया. दिव्या ने आक्रामकता में थोड़ा फिसलते हुए जीत को खतरे में डाला, लेकिन समय दबाव में हम्पी की दो बड़ी गलतियों ने दिव्या को वर्ल्ड कप खिताब दिला दिया.
यह मुकाबला दिव्या के खेल की असली झलक था- एक ऐसा ओपनिंग जो शुरुआत में ड्रॉ जैसा लग रहा था, लेकिन उसमें गलतियों की संभावना बनी रही. दिव्या ने चालें तेजी से चलीं, जिससे उनके पास समय ज्यादा बचा. वहीं, हम्पी ने ज्यादा समय लिया और आखिर में दबाव में गलती कर बैठीं. यह जीत साफ दिखाती है कि दिव्या ने गुरु हम्पी को बेहद नाटकीय तरीके से हरा दिया.
भारतीय शतरंज के लिए सोने पर सुहागा
कोनेरू हम्पी के खिलाफ दिव्या देशमुख की जीत सिर्फ महिला शतरंज ही नहीं, बल्कि पूरे भारतीय शतरंज के लिए सोने पर सुहागा है. दिसंबर 2023 में गुकेश के कैंडिडेट्स के लिए क्वालिफाई करने के बाद से भारत ने शतरंज के हर स्तर पर अभूतपूर्व सफलता हासिल की है.
गुकेश ने कैंडिडेट्स जीता, फिर व्यक्तिगत और टीम दोनों स्तर पर डबल गोल्ड जीते. यही बात दिव्या पर भी लागू होती है - ओलंपियाड में उन्होंने व्यक्तिगत और टीम गोल्ड जीता और भारत ने ऐतिहासिक डबल गोल्ड हासिल किया. गुकेश की वर्ल्ड चैम्पियनशिप में डिंग लिरेन को हराकर 11 साल बाद देश में शतरंज फिर सुर्खियों में आया.
तब से लेकर अब तक गुकेश की सफलता का असर पूरे भारतीय शतरंज पर पड़ा है, जिससे बाकी खिलाड़ी भी लगातार कामयाबी हासिल कर रहे हैं. प्रज्ञानानंद ने UzChess, टाटा स्टील चेस और सुपरबेट रोमानिया जैसे बड़े टूर्नामेंट जीते हैं. गुकेश ने मैग्नस कार्लसन को रैपिड और क्लासिकल- दोनों फॉर्मेट में हराया, जो ऐतिहासिक था. खासकर क्लासिकल मुकाबला कार्लसन के गढ़ – स्टावेंगर, नॉर्वे में हुआ था. यह एक शानदार चक्र था, जिसमें गुकेश ने मैग्नस के साथ वही किया जो मैग्नस ने 2013 में चेन्नई में विश्वनाथन आनंद के साथ किया था.
अर्जुन एरिगैसी लगातार चमक बिखेर रहे हैं और निहाल सरीन ने भी कई सफलताएं हासिल की हैं. जूनियर वर्ग में प्रणव वेंकटेश वर्ल्ड जूनियर चैम्पियन बने, जबकि जॉर्जिया में फाइडे वर्ल्ड कप कैडेट्स 2025 में भारत ने अंडर-10 और अंडर-12 वर्ग में तीन स्वर्ण पदक जीते.
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यह सफलता भारतीय कामयाबी की अगली कड़ी
दिव्या की सफलता लगातार जारी भारतीय कामयाबी की अगली कड़ी है. अब सबकी नजरें 2026 पर टिकी हैं, जहां दिव्या और हम्पी दोनों के पास कैंडिडेट्स जीतने का मौका है. अगर ओपन और महिला दोनों वर्गों में कोई भारतीय खिलाड़ी कैंडिडेट्स जीतता है, तो यह पूरी तरह साबित हो जाएगा कि भारतीय शतरंज का दबदबा कोई संयोग नहीं है. 2025 में मेहनत रंग लाई है, अब जरूरत है इस सफलता को बनाए रखने की.
सिद्धार्थ विश्वनाथन