Sprinter Animesh Kujur: स्पीड का बादशाह... अनिमेष कुजूर की जीत जज्बे और जर्नी की कहानी

भारत के सबसे तेज धावक अनिमेष कुजूर ने 2025 के कॉन्टिनेंटल टूर में 200 मीटर फाइनल 20.77 सेकंड में जीतकर शानदार प्रदर्शन किया, लेकिन वह खुद अपनी टाइमिंग से संतुष्ट नहीं थे, साल की शुरुआत में घरेलू प्रतियोगिताओं, यूरोप में एक महीने की ट्रेनिंग-प्रतिस्पर्धा और फिर घर लौटकर कॉन्टिनेंटल टूर ने उनके शरीर पर असर डाला.

Advertisement
अनिमेष कुजूर ओडिशा के कलिंगा स्टेडियम में ट्रेनिंग करते हुए. (फोटो- रिलायंस फाउंडेशन) अनिमेष कुजूर ओडिशा के कलिंगा स्टेडियम में ट्रेनिंग करते हुए. (फोटो- रिलायंस फाउंडेशन)

किंशुक कुसारी

  • भुवनेश्वर,
  • 13 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 11:32 AM IST

कॉन्टिनेंटल टूर की गहमागहमी थमने के बाद भारत के सबसे तेज धावक अनिमेष कुजूर ओडिशा के कलिंगा स्टेडियम के ट्रैक पर अपने कोच मार्टिन ओवेंस के साथ सुकून से बैठे थे. सुबह की ट्रेनिंग सत्र के बाद दोनों ने बैठकर बीते थकाऊ सीजन के उतार-चढ़ाव पर गहराई से चर्चा की.

साल की शुरुआत में देशभर में कई तेज-तर्रार घरेलू प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेना, फिर लगभग एक महीने तक यूरोप में ट्रेनिंग और प्रतिस्पर्धा करना, और उसके बाद घर लौटकर कॉन्टिनेंटल टूर में भाग लेना...इन सबका असर अनिमेष पर साफ दिख रहा था.

Advertisement

भारत लौटने के बाद से ही उन्हें जिद्दी सर्दी ने परेशान कर रखा था. भुवनेश्वर में कॉन्टिनेंटल टूर की दौड़ से ठीक एक रात पहले उन्हें दवा खानी पड़ी, ताकि वे रेस के लिए खुद को ठीक-ठाक हालत में रख सकें.

बीमार होने के अलावा प्रतियोगिता की अपनी चुनौतियां भी थीं. अनिमेष ने माना कि दर्शकों के गगनभेदी उत्साह से वे थोड़ा असहज हो गए थे. उनके मन में सवाल था- अगर वे हार गए तो? अगर घरेलू दर्शकों के सामने उनका प्रदर्शन खराब हो गया तो लोग क्या सोचेंगे? और सबसे बुरा- अगर वे पदक से भी चूक गए तो?

लेकिन जैसे ही कलिंगा स्टेडियम में दर्शकों के नारे गूंजे, माहौल उनके लिए सामान्य हो गया. घरेलू पसंदीदा खिलाड़ी ने 200 मीटर फाइनल 20.77 सेकंड में जीत लिया. दौड़ पूरी करने के बाद उन्होंने उसी भीड़ को महसूस किया, जो कुछ पल पहले तक उन्हें डरावनी लग रही थी.

Advertisement

उन्होंने उसैन बोल्ट वाला सेलिब्रेशन पोज बनाया और अपने परिवार के साथ तस्वीर खिंचवाई, जो पहली बार उन्हें रेस करते देखने आया था. यह उनके लिए बेहद रोमांचक पल था.

अनिमेष कुजूर: उसैन बोल्ट वाला सेलिब्रेशन पोज ​​​​​. (Photo- PTI)

दो दिन बाद, जब आयोजन की गहमागहमी पूरी तरह थम गई, अनिमेष फिर उसी ट्रैक पर बैठे थे. इस बार सन्नाटा और खाली स्टैंड के बीच. उन्होंने माना कि कांटिनेंटल टूर में उनकी टाइमिंग अच्छी नहीं थी.

उन्होंने कहा,'अब मेरा शरीर वैसा नहीं रहा. मैं 400 मीटर धावकों के साथ ट्रेनिंग करता हूं, इसलिए मेरा शरीर कम से कम 300 मीटर की पीक स्पीड के लिए तैयार होता है. जैसे-जैसे सीजन आगे बढ़ता है, यह दूरी घटती जाती है. अभी यह 210, शायद 200 मीटर रह गई है.'

खाली ट्रैक और सूने स्टैंड ने उन्हें और मार्टिन को अपने प्रदर्शन पर विचार करने और पिछले आयोजनों से सीखी बातें याद करने का मौका दिया.

हर प्रतियोगिता से दो बातें सीखना और उन्हें अपनी टीम से साझा करना, अनिमेष का नियम है. कॉन्टिनेंटल टूर में उन्होंने घरेलू दर्शकों के दबाव को संभालना सीखा. इससे पहले यूरोप में उन्होंने प्रोफेशनल एथलीट्स से उनके प्रोसेस देखकर पेशेवराना अंदाज अपनाना सीखा.

सेशन खत्म होने से पहले उनके फिजियो ने मजाक में कहा कि अनिमेष काफी कम बोलते हैं. वो अपने में रहते हैं, पौधों की देखभाल करते हैं, और डॉक्यूमेंट्री व एक्शन फिल्में देखना पसंद करते हैं.

Advertisement

शायद यह स्वभाव उनके बचपन का नतीजा है. छोटी उम्र में ही उन्हें घर से करीब 600 किलोमीटर दूर छत्तीसगढ़ के कांकेर स्थित सैनिक स्कूल में भेज दिया गया था. यहां रहते हुए वे माता-पिता से दूर हो गए, जबकि उनका सपना फुटबॉलर बनने का था.

छुट्टियों में ही वे माता-पिता से मिल पाते थे. आज भी वे मानते हैं कि अपने पिता से खुलकर बात करने में दिक्कत होती है, हालांकि वे इस पर काम कर रहे हैं.

उन्होंने कहा, 'मां-पापा ने तब ही समझ लिया था कि मुझे खेलों से लगाव है. पांच साल की उम्र में फुटबॉल पकड़ा दिया, लेकिन आंख झपकते ही मैं बोर्डिंग स्कूल में था-घर से दूर, मैदान के बीच.उस समय मैं परिवार से दूर हो गया. हॉस्टल में 80 बच्चे थे और सिर्फ एक लैंडलाइन फोन था, जिसमें सिर्फ इनकमिंग कॉल आती थी. जिसे मौका मिलता, वो 5–10 मिनट के लिए घर से बात कर पाता था. अब वो हालात बदल गए हैं.'

फुटबॉल से एथलेटिक्स की ओर कैसे मुड़े? 

फुटबॉल उनका पहला प्यार था, लेकिन उन्हें पहली बार शोहरत तब मिली जब उन्होंने एक स्थानीय एथलेटिक्स प्रतियोगिता में 5 गोल्ड मेडल जीत लिए- वो भी संयोग से.

उन्होंने कहा, 'मैं सैनिक स्कूल में था और आर्मी के जवानों के साथ ट्रेनिंग करता था. मेरी लंबाई अच्छी थी, जो फायदा देती थी. पांच गोल्ड जीतने के बाद मैं स्थानीय अखबारों में आया, लेकिन तब भी मैं एथलेटिक्स को गंभीरता से नहीं लेता था.'

Advertisement

यह बदलाव रातोरात नहीं आया. कॉलेज के पहले साल में ही उन्हें लगने लगा था कि पढ़ाई और सरकारी नौकरी की तैयारी उनकी मंजिल नहीं है. लेकिन दिक्कत थी...उन्होंने ये बात माता-पिता को नहीं बताई थी.

उन्होंने कहा, 'आज भी मुझे मां-पापा से अपनी इच्छाएं कहने में दिक्कत होती है जैसे, मुझे कुछ चाहिए, तो कह नहीं पाता.'

सेमेस्टर परीक्षा से ठीक पहले वे अपनी मौसा के पास बैठे थे और उन्होंने उनसे पिता को यह बात बताने को कहा.

मौसा के लिए यह हैरानी की बात थी. परिवार में पहले कभी कोई प्रोफेशनल एथलीट नहीं रहा था और छत्तीसगढ़ के हालात के कारण प्रेरणादायक उदाहरण भी नहीं थे.

उस रात मौसा ने पिता को घर बुलाया. अनिमेष के लिए हैरानी की बात यह थी कि पिता ने तुरंत हामी भर दी- 'करो, कौन रोक रहा है? जो करना है, करो.' मां और मौसी इसके खिलाफ थीं, लेकिन पिता और मौसा ने उन पर भरोसा किया.

यह भरोसा आज भी अनिमेष अपने साथ लिए चलते हैं. कॉन्टिनेंटल टूर में मौसा पूरे परिवार के साथ मौजूद थे और उन्हें दौड़ते देख गर्व महसूस कर रहे थे.

मार्टिन ओवेंस की कोचिंग से मिला नया मुकाम

एथलेटिक्स को गंभीरता से लेने के बाद उनकी प्रगति तेज रही. उन्होंने रिलायंस फाउंडेशन के बारे में ज्योति याराजी और अम्लान बोरगोहेन से जाना और इंस्टाग्राम पर डायरेक्टर ऑफ एथलेटिक्स, जेम्स हिलियर को लंबा मैसेज भेजा. जवाब नहीं मिला, लेकिन 2024 में जेम्स ने वह मैसेज देखा और माफी मांगी.

Advertisement

उनकी असली शुरुआत तब हुई जब मार्टिन ओवेंस ने उन्हें U-23 टूर्नामेंट में दौड़ते देखा और तुरंत ट्रेनिंग प्रोग्राम में शामिल कर लिया. शुरुआत में वे पूरा स्क्वॉट तक नहीं कर पाते थे, तैरना नहीं आता था- बस तेज दौड़ना जानते थे.

लेकिन मार्टिन के भरोसे का फल मिला और धीरे-धीरे वे अनुशासित, व्यवस्थित और संवेदनशील बन गए. अब वे कचरा बर्दाश्त नहीं करते, पौधों की देखभाल करते हैं और डॉक्यूमेंट्री देखते हैं.

... अभी लंबा सफर बाकी

100 मीटर में उनका सर्वश्रेष्ठ समय 10.18 सेकंड है, और कोच का मानना है कि बेहतर स्टार्टिंग ब्लॉक होते तो यह 10.08 हो सकता था.

यूरोप के डायमंड लीग में U-23 कैटेगरी में 200 मीटर दौड़ने वाले वे पहले भारतीय बने. उन्होंने वहां सीखा कि वॉर्म-अप भी पूरी ताकत से करना चाहिए, यहां की सोच के विपरीत कि ज्यादा वॉर्म-अप से थक जाओगे.

वे हफ्ते में पांच दिन ट्रेनिंग करते हैं- तीन दिन ट्रैक पर दौड़ और दो दिन स्ट्रेंथ व कंडीशनिंग. सुबह 5 बजे उठकर 6 से 9:30 तक ट्रेनिंग, फिर नाश्ता, जिम या पूल सेशन, दोपहर की नींद और फिर शाम की ट्रेनिंग. रात 9 बजे के बाद फोन नहीं और जल्दी सोना.

2025 में उनका पूरा ध्यान अनुभव, निरंतरता और सुधार पर है. टोक्यो वर्ल्ड चैम्पियनशिप (सितंबर 2025) से लेकर 2026 एशियाई खेल, 2026 ग्लासगो कॉमनवेल्थ गेम्स और 2028 लॉस एंजेलिस ओलंपिक तक.

Advertisement

फुटबॉल से एथलेटिक्स में आया यह सफर अब विश्वास, ढांचे और शांत दृढ़ता से एक तय रास्ते में बदल चुका है, मेहनत बाकी है, लेकिन दिशा साफ है.

 

 

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement